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भारत में बेरोजगारी की समस्या पर निबंध | Essay on Unemployment in India

प्रस्तावना | Preface

बेरोजगारी (Unemployment) वह स्थिति है, जब कोई योग्य व काम करने के लिए इच्छुक व्यक्ति प्रचलित मजदूरी की दरों पर कार्य माँगता हो और उसे काम न मिलता हो। बालक, वृद्ध, रोगी, अक्षम एवं अपंग व्यक्तियों को बेरोजगारों की परिधि ( Child, old, sick, disabled and handicapped persons in the periphery of the unemployed ) में नहीं रखा जा सकता। जो व्यक्ति काम करने के इच्छुक नहीं हैं और परोपजीवी हैं, वे भी बेरोजगारी (Unemployment) की सीमा में नहीं आते।

बेरोजगारी (Unemployment) एक अभिशाप –

बेरोजगारी किसी भी देश उल्टा समाज के लिए लांछन है। राजनीतिक बेरोजगारी का तर्क है कि बेरोजगारी कृत्रिम रूप से मजदूरी को बहुत अधिक रखने के कारण होती है। ट्रेड यूनियनों, न्यूनतम मजदूरी और श्रम नियमों जैसी चीजों के माध्यम से, मजदूरी को बढ़ाया जाता है ताकि श्रमिक व्यवसायों ( labor occupations ) के लिए बहुत महंगे हो जाएं और इसलिए वास्तविक नौकरियों की तुलना में अधिक लोग नौकरियों की तलाश में हैं।

चोरी, डकैती, हिंसा अपराध-वृत्ति एवं आत्महत्या आदि के मूल में एक बड़ी सीमा तक बेरोजगारी ही विद्यमान है। बेरोजगारी एक ऐसा भयंकर विष है, जो सम्पूर्ण देश के आर्थिक, सामाजिक तथा राजनैतिक जीवन को दूषित कर देता है; अतः बेरोजगारी के कारणों की खोज करके उनका निराकरण नितान्त आवश्यक है।

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भारत में बेरोजगारी की समस्या पर निबंध  Essay on Unemployment in India
भारत में बेरोजगारी की समस्या पर निबंध Essay on Unemployment in India

बेरोजगारी (Unemployment) के कारण-

हमारे देश में बेरोजगारी (Unemployment) के अनेक कारण हैं। यहाँ कुछ प्रमुख कारणों का उल्लेख किया जा रहा है-

जनसंख्या में समृद्धि (prosperity in population)-

बेरोजगारी (Unemployment) का प्रमुख कारण है – जनसंख्या में तीव्रगति से वृद्धि। विगत कुछ दशकों में भारत में जनसंख्या का विस्फोट हुआ है। देश में प्रतिवर्ष जनसंख्या में 2.5% की वृद्धि हो जाती है, जबकि इस दर से बेरोजगार व्यक्तियों के लिए रोजगार की व्यवस्था नहीं हो पाती है।

दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली (education system)-

भारतीय शिक्षा सैद्धान्तिक अधिक और व्यावहारिकता से शून्य है। इसमें पुस्तकीय ज्ञान पर ही विशेष ध्यान दिया जाता है। फलतः यहाँ के स्कूल-कॉलेजों से निकलनेवाले छात्र दफ्तर के बाबू ही बन पाते हैं, वे निजी उद्योग-धन्धे आरम्भ नहीं कर पाते।

कुटीर उद्योगों की उपेक्षा (neglect of cottage industries) –

ब्रिटिश सरकार की कुटीर उद्योग विरोधी नीति के कारण देश में उद्योग-धन्धों का पतन हो गया। फलस्वरूप अनेक कारीगर बेरोजगार हो गए। स्वतन्त्रता-प्राप्ति के पश्चात् भी कुटीर उद्योगों के विकास की ओर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया; अत: बेरोजगारी (Unemployment) में निरन्तर वृद्धि होती गई।

औद्योगीकरण की मन्द प्रक्रिया (recession of industrialization) –

विगत पंचवर्षीय योजनाओं में देश के औद्योगिक विकास के लिए प्रशंसनीय कदम उठाए गए हैं; किन्तु समुचित रूप से औद्योगीकरण नहीं किया जा सका है। तात्पर्य यह है कि बेरोजगार व्यक्तियों के लिए वांछित मात्रा में रोजगार नहीं जुटाए जा सके हैं।

कृषि का पिछड़ापन (backwardness of agriculture)-

भारत की लगभग 72% जनता कृषि पर निर्भर है। यहाँ की कृषि अत्यन्त पिछड़ी हुई दशा में है; अत: स्वाभाविक रूप से बेरोजगारी (Unemployment) की समस्या व्यापक हो गई है।

अविकसित सामाजिक दशा –

हमारे देश में जाति-प्रथा, बाल-विवाह, सामाजिक असमानताएँ आदि बुराइयाँ भी बेरोजगारी (Unemployment) को उग्र बनाने में सहायक हुई हैं।इनके अतिरिक्त मानसून की अनियमितता, अधिक संख्या में शरणार्थियों का आना, मशीनीकरण के फलस्वरूप होनेवाली श्रमिकों की छंटनी, श्रम की माँग एवं पूर्ति में असन्तुलन, आर्थिक साधनों की कमी आदि से भी बेरोजगारी में वृद्धि हुई है‌। देश को बेरोजगारी (Unemployment) से उबारने के लिए इन समस्याओं का समुचित समाधान परम आवश्यक है।

बेरोजगारी (Unemployment) की समस्या का समाधान –

बेरोजगारी (Unemployment) को दूर करने के लिए निम्नलिखित तरीके अपनाए जा सकते हैं।

जनसंख्या –

समृद्धि पर नियन्त्रण-जनसंख्या में अप्रत्याशित वृद्धि बेरोजगारी (Unemployment) का मूल कारण है; अत: इस पर नियन्त्रण रखना अत्यावश्यक है। जनता को परिवार नियोजन (परिवार कल्याण) का महत्त्व समझाते हुए उसमें व्यापक चेतना जाग्रत करनी चाहिए।

शिक्षा –

पद्धति में व्यापक बदलाव शिक्षा को व्यवसायोन्मुख बनाया जाना चाहिए तथा शिक्षा में शारीरिक श्रम को उचित महत्त्व दिया जाना चाहिए।

औद्योगिक विकास –

देश में व्यापक स्तर औद्योगीकरण किया जाना चाहिए। वृहद् उद्योगों की अपेक्षा लघु-स्तरीय उद्योगों को अधिक महत्त्व दिया जाना चाहिए।

सहकारी खेती –

कृषि जैसे क्षेत्र में अधिक व्यक्तियों को रोजगार देने के लिए सहकारी खेती को उत्साहित दिया जाना चाहिए।

सहायक उद्योगों का विकास –

ख़ास उद्योगों के साथ-साथ उनके साथ वाले उद्योगों का भी विकास करना चाहिए यथा-कृषि के साथ पशुपालन तथा मुर्गीपालन आदि। इनके द्वारा ग्रामीणजनों को बेरोजगारी (Unemployment) से मुक्त किया जा सकता है।

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राष्ट्र-निर्माण के विविध कार्य-

भारत में बेरोजगारी (Unemployment) को जड़ से खत्म करने के लिए राष्ट्र-निर्माण के विविध कार्यों (various tasks of nation building) तथा सड़कों निर्माण, बाँध-निर्माण, रेल-परिवहन का विकास, पुल-निर्माण, वृक्षारोपण मे तेजी से बदोतरी करना आदि का विस्तार किया जाना चाहिए।

रोजगार कार्यालयों का विस्तार –

भारत में बेरोजगार व्यक्तियों के सम्बन्ध में पूर्ण आँकड़ों के संकलन की उचित व्यवस्था की जानी चाहिए। मालिक तथा मजदूरों को परस्पर सम्बद्ध करने के लिए रोजगार कार्यालयों का विस्तार अपेक्षित है।

उपसंहार –

हमारी सरकार बेरोजगारी (Unemployment) की परेशानी का हल करने की दिशा में जागरूक है। और इस दिशा में उसने महत्त्वपूर्ण कदम भी उठाए हैं।

परिवार नियोजन (परिवार-कल्याण), बैंकों का राष्ट्रीयकरण, कच्चे माल के परिवहन की सुविधा, कृषि-भूमि की हदबन्द, नए-नए उद्योगों की स्थापना , प्रशिक्षु योजना, प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना आदि अनेक ऐसे कार्य हैं, जो बेरोजगारी (Unemployment) को दूर करने में सहायक सिद्ध हुए हैं। आवश्यकता इनको और अधिक विस्तृत तथा अधिक प्रभावी बनाने की है।

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भारत में बेरोजगारी की समस्या से जुड़े प्रश्न ओर अत्तर (FAQ)

बेरोजगारी (Unemployment) का क्या समाधान हो सकता है?

भारत में बेरोजगारी एक गंभीर मुद्दा है। शिक्षा का अभाव, रोजगार के अवसरों की कमी और प्रदर्शन संबंधी समस्याएं कुछ ऐसे कारक हैं व्यापारिक शिक्षा, छोटे उद्योगों को प्रोत्साहन, मशीनीकरण पर नियंत्रण, रोजगार के नए अवसरों की तलाश, जनसंख्या पर रोक आदि उपायों को शीघ्रता से लागु किया जाना चाहिए। जब तक इस परेशानी का सही समाधान नहीं होगा तब तक समाज में न तो सुख शांति रहेगी और न ही राष्ट्र का व्यवस्थित एवं अनुशासित ढांचा खड़ा हो सकेगा।

बेरोजगारी (Unemployment) से क्या अभिप्राय है।

बेरोजगारी (Unemployment) अथवा बेकारी का अभिप्राय उस स्थिति से है, जब कोई योग्य तथा काम करने के लिए इच्छुक व्यक्ति प्रचलित मजदूरी की दरों पर कार्य माँगता हो और उसे काम न मिलता हो।

भारत में बेरोजगारी का कारण क्या है?

भारत में बेरोजगारी के प्रमुख कारण नीचे दिए गए हैं: बड़ी आबादी। व्यावसायिक कौशल की कमी या कामकाजी आबादी के निम्न शैक्षिक स्तर। श्रम प्रधान क्षेत्र, विशेष रूप से विमुद्रीकरण के बाद निजी निवेश में मंदी का सामना कर रहे हैं।

क्या भारत में वास्तव में बेरोजगारी बहुत अधिक है?

मांग में कमी और सरकारी खर्च में बढ़ोतरी की वजह से अब इसमें रिबाउंड देखने को मिल रहा है। लेकिन नौकरियां कम हो रही हैं।

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