नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में हम कोशिका विभाजन, निषेचन, भ्रूण जनन के बारे में जानेंगे। तो चलिए शुरू करते हैं।
सभी विषमयुग्मकी जीवों मे दो प्रकार के युग्मक बनते हैं नर व मादा। युग्मक सदैव अगुणित (haploid) होते हैं। चाहे जनक अगुणित हो अथवा द्विगुणित (diploid)। यदि जनक अगुणित हो (यूलोथ्रिक्स) तब सूत्री विभाजन द्वारा युग्मक बनते हैं। परन्तु यदि जनक द्विगुणित (एक्टोकार्पस) हो तो अर्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप युग्मक बनते हैं। जैसे कि पहले भी बताया जा चुका है अर्धसूत्री विभाजन एक बार अवश्य होता है।
लैंगिक चक्र में अर्थात् यदि युग्मी विभाजन के फलस्वरूप अगुणित जनक से युग्मकों बनता है तो युग्मको के संलयन (निषेचन) के पश्चात् बने द्विगुणित युग्मनज (zygote) में अर्धसूत्री विभाजन होगा तथा मियोस्पोर बनेंगे। जिनके अंकुरण से अगुणित पौधा बनेगा।
मोनेरा, फंजाई, शैवाल, तथा ब्रायोफाइटा वर्ग के अनेक पादपों का शरीर अगुणित होता है। टेरिडोफाइटा जिम्नोस्पर्म तथा एन्जियोस्पर्म में मुख्य पादप स्पोरोफाइट अर्थात् द्विगुणित होता है। इनमें नर व मादा युग्मक गुरूबीजाणु मातृकोशिका (Megaspore mother cell) अथवा लघु बीजाणु मातृ कोशिका (Pollen mother cell) में अर्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप बनते हैं। मातृ कोशिकाओं को जो द्विगुणित होती हैं मियोसाइट (meiocyte) भी कहते हैं। युग्मक में केवल एक सेट गुणसूत्र (one set of chromosome) मिलते हैं।
तालिका में कुछ जीवों में मियोसाइट (द्विगुणित, 2n) तथा युग्मक (अगुणित, n) में गुणसूत्र संख्या
जीव का नाम | मियोसाइट में गुणसूत्र संख्या | युग्मक में गुणसूत्र संख्या |
---|---|---|
मानव | 46 | 23 |
मक्खी | 12 | 6 |
चूहा | 42 | 21 |
कुत्ता | 78 | 39 |
बिल्ली | 38 | 19 |
ड्रोसोफ़िला | 8 | 4 |
ओफीयोग्लोसम | 1260 | 630 |
सेब | 68 | 34 |
धान | 24 | 12 |
मक्का | 20 | 10 |
आलू | 48 | 24 |
तितली | 380 | 190 |
प्याज | 32 | 16 |
युग्मक स्थानान्तरण (Gamete transfer)
नर व मादा युग्मकों के बनने के पश्चात संलयन से पूर्व उनका आपस में एक-दूसरे तक पहुँचना आवश्यक है। सामान्यतः अधिकांश जीवों में नर युग्मक चल (motile) होता है तथा मादा अचल (non motile)। अत: केवल नर युग्मक ही एक स्थान से दूसरे पर पहुँच सकता है परन्तु उसके लिए उसे माध्यम (medium) की आवश्यकता होती है। नर युग्मक सदैव छोटे होते हैं तथा अधिक संख्या में बनते हैं ताकि मादा युग्मक तक पहुँचकर निषेचन की क्रिया सुनिश्चित हो सके। अधिकांश नर युग्मक इससे पहले ही मर जाते हैं।
बीजी पौधों में पराग कण में ही नर युग्मक होता है तथा बीजाण्ड (ovule) में अण्ड (egg)। पौधे अचल होते हैं।नर युग्मकों को अण्ड तक पहुँचने के लिए मादा पुष्प के वर्तिकाग्र तक पराग कणों का पहुँचना आवश्यक होता है। इस क्रिया को परागण (Pollination) कहते हैं। परपरागण मे परागण के लिए निश्चित एजेंसी होती है जैसे– जल, वायु कीट, पक्षी, आदि। स्वपरागित पुष्पों में बाह्य एजेंसी की आवश्यकता नहीं होती है। जन्तुओं में शुक्राणुओं (नर) को अण्ड तक पहुँचाने के लिए कोई अलग से एजेंसी नहीं होती है। स्वयं नर को सहवास (mating) अथवा मैथुन (copulation) के द्वारा शुक्राणु पहुँचाने पड़ते हैं।
निषेचन (Fertilization)
नर तथा मादा युग्मक के संलयन (संयुग्मन) को निषेचन (fertilization) कहते हैं। इसे सिनगेमी (syngamy) भी कहा जाता है। इसके परिणामस्वरूप द्विगुणित जाइगोट (zygote) अथवा युग्मनज बनता है।
यदि किसी कारणवश संलयन अथवा निषेचन की क्रिया पूर्ण न हो तो नर युग्मक तो मर जाता है परन्तु कभी-कभी मादा युग्मक मे विकास की क्रिया होती है और अनिषेचित जीव बनता है। इस क्रिया को अनिषेक जनन (Parthenogenesis) कहते हैं। जैसे कुछ मधुमक्खियों में, टर्की पक्षी में छिपकली, रोटीफर आदि में इस प्रकार के जीव मिलते हैं। परन्तु ये बन्ध्य (sterile) होते हैं। निषेचन की क्रिया अन्त: (internal) अथवा बाह्य (external) होती है।
- बाह्य निषेचन (External fertilization): यह क्रिया सामन्यतः जलीय जीवों में होती है। शैवाल व मछलियाँ तथा एम्फीबिया वर्ग के जीव मुख्य है। इनमें निषेचन पानी में अर्थात् शरीर के बाहर होता है। अत: इसे बाह्य निषेचन कहते हैं। दोनों नर व मादा अनेकों शुक्राणु व अण्ड अपने चारों ओर पानी में छोड़ देते हैं जहाँ अण्ड व शुक्राणु के संलयन से निषेचन होता है। अस्थि मछलियाँ (Bony fishes) तथा मेंढकों में भी इस विधि से अनेकों संतति बनती हैं। इस क्रिया का सर्वाधिक हानिकारक पक्ष यह है कि इस विधि से बने नए जीवों को शिकारी आसानी से लपक लेते है।
- अन्त: निषेचन (Internal fertilization): जलीय जीवों जैसे कवक, सुरीसृप, पक्षी, स्तनधारी, अधिकांश पौधों जैसे ब्रायोफाइट, टेरीडोफाइट, जिम्नोस्पर्म व एन्जियोस्पर्म आदि में निषेचन मादा के शरीर में होता है। इसे अतः निषेचन (Internal fertilization) कहते है। इन जीवों में अण्ड मादा के शरीर में बनता है। वहीं पर नर युग्मक (शुक्राणु) के साथ संयुग्मन होता है। नर युग्मक चल होता है वह अण्ड तक पहुँचता है तथा संलयन होता है। शुक्राणु अनेक बनते हैं परन्तु अण्ड की संख्या कम होती है। बीजी पादपों में नर युग्मक परागकण में बनता है जिनका अंकुरण वर्तिकाग्र पर होता है तथा पराग नली बनती है। यह पराग नली (Pollen tube) वर्तिका (Style) से होकर अण्डाशय में बीजाण्ड तक पहुँचती है। पराग नली में ही नर युग्मक होते हैं।
पश्च निषेचन अवस्था (Post Fertilization stages)
एक बार निषेचन होने के पश्चात् युग्मनज (zygote) बनता है। यह द्विगुणित होता है।
युग्मनज (Zygote):
सभी जीवों में चाहे वह प्राणी हो या पादप निषेचन के पश्चात् युग्मनज बनता हैं यह एक सार्वभौमिक (universal) क्रिया है। बाह्य निषेचन वाले जीवों में युग्मनज शरीर से बाहर तथा अन्त: निषेचन वाले जीवों में यह मादा शरीर में बनता है। युग्मनज का आगे विकास दो प्रकार से मुख्यतः होता है।
- युग्मनज कुछ समय विश्राम कर सूत्री विभाजन द्वारा नया पादप बनाती है। उच्च पादपों व जन्तुओं में पहले भ्रूण बनता है। जीव द्विगुणित होता है।
- युग्मनज कुछ समय विश्राम कर अर्धसूत्री विभाजन करता है जिससे मियोस्पो बनता है। मियोस्पोर के अंकुरण से अगुणित जीव बनता है। इस प्रकार की क्रिया सामान्यतः शैवालों व कवकों में तथा कुछ निम्न जन्तुओ मे मिलती है।
युग्मनज एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के मध्य जाति की निरन्तरता की कड़ी है। सभी जीवों (जनत व पादप) तथा मानव में एक कोशिकीय द्विगुणित युग्मनज अवश्य बनता है।
भ्रूण जनन (Embryogenesis):
युग्मनज से भ्रूण बनने की क्रिया को भ्रूण जनन (Embryogenecis) कहते हैं। भ्रूण सदैव सूत्री विभाजन होता है उसके पश्चात् कोशिका विभेदन (cell differentiation) होता है।
विभाजन के फलस्वरूप कोशिकाओं की संख्या में बढोतरी होती है परन्तु कोशिका विभेदन के फलस्वरूप ऊतक बनते हैं। जिसके बाद में जीव के अंगों का निर्माण होता है।
जन्तु अण्डज (oviparous) तथा जरायुज (viviparous) होती है। जब भ्रूण मादा के शरीर में बनता है स्थिति जरायुज कहलाती है। मादा शिशु का जन्म देती है। अण्डज स्थिति में अण्डों का निषेचन शरीर से बाहर होता है तथा शिशु भी वहीं बनते हैं। जैसे सरीसृप तथा पक्षी। इस प्रकार के जन्तुओ मे क्योंकि अण्डे शरीर से बाहर होते हैं उन्हें सुरक्षा की अति आवश्यकता होती है। निषेचित अण्ड के बाहर कैल्शियम का कवच (calcareous shell) बन जाता है। अण्ड वातावरण मे ऐसे स्थान पर रखा जाता है जहाँ उसे सेया (hatch) जा सकता है। मादा के शरीर की गर्मी से अण्ड से शिशु बाहर निकलता है। मानव जरायुज है। इसमें शिशु का जन्म होता है। जरायुज जन्तुओ में अण्डे सुरक्षित रहते हैं।
पुष्पी पादपों में युग्मनज बीजाण्ड में बनता है। बीजाण्ड अण्डाशय में सुरक्षित होता है। निषेचन के पश्चात् पुष्प के अन्य अंग जैसे बाह्य दल पुंज, दल पुंज व पुमंग आदि सामान्यतः झड़ जाते हैं। कुछ पौधों जैसे टमाटर, बैंगन, गुलाब आदि में बाह्य दलपुंज, झड़ते नहीं है। युग्मनज से भ्रूण बनता है और बीजाण्ड बीज में परिवर्तित होता है।

अण्डाशय की भित्ति से फल भित्ती (pericarp) बनता है। फल भित्ति फल में बीज को सुरक्षा प्रदान करती है। बीज कवच में भ्रूण सुरक्षित रहता है। बीजों फलों का प्रकीर्णन (dispersal) होने के बाद बीजों का अंकुरण परिस्थितियों में होता है। इसके पश्चात् इससे नया पादप बनता है।
बाह्य निषेचन की व्याख्या करें इसके नुकसान बताएँ।
जब अण्ड व शुक्राणु शरीर से बाहर त्याग दिए जाते हैं और उनमें निषेचन होता है तो उसे बाह्य निषेचन कहते हैं। इस क्रिया का सबसे बड़ा नुकसान यह है कि अण्ड का निषेचन हो। यह निश्चित नहीं होता है। असंख्य युग्मक बनते हैं और नष्ट भी होते हैं।
जूस्पोर (अलैंगिक चल बीजाण्ड) तथा युग्मनज के बीच विभेद करें।
जूस्पोर सामान्यतः कशाभिक होते हैं। यह अगुणित अथवा द्विगुणित हो सकते हैं परन्तु युग्मनज सदैव द्विगुणित होते हैं तथा दो युग्मकों के संलयन से बनते हैं।उत्तर : जूस्पोर सामान्यतः कशाभिक होते हैं। यह अगुणित अथवा द्विगुणित हो सकते हैं परन्तु युग्मनज सदैव द्विगुणित होते हैं तथा दो युग्मकों के संलयन से बनते हैं।