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वर्षा किसे कहते हैं तथा कितने प्रकार की होती है?

वर्षा एक प्रकार से संधनन है। पृथ्वी की सतह से वाष्प के रूप में पानी वाष्पीकरण होकर उपर उठता है और ठण्डा होकर पानी के बूदें के रूप में पुनः धरती पर गिरता है इसे वषोॅ कहते हैं| वर्षा मुख्यता तीन प्रकार के होते हैं?

वर्षा के प्रका

विश्व के विभिन्न प्रदेशों में भिन्न-भिन्न कारणों से मुख्यतः निम्नलिखित तीन प्रकार की वर्षा होती है।

  1. पर्वतीय वर्षा (Orographic Rain)
  2. संवाहनिक वर्षा (Convectional rain),
  3. चक्रवाती या वाताग्र वर्षा (Cyclonic Or frontal rain)

पर्वतीय या पर्वतकृत वर्षा

वर्षा किसे कहते हैं तथा कितने प्रकार की होती है

उष्ण पवनों के मारो में जब तक कोई पवन या पठार अवरोध स्वरूप आ जाता है तो पवने पर्वतीय ढाल के सहारे सहारे ऊपर उठती है वायुमंडल मैं ऊपर पहुंच कर निम्न तापमान के कारण पवनें ठंडी वर्षा कर देती है इस प्रकार की वर्षा पर्वतीय वर्षा कहलाती है।

पर्वत का जो भाग पवनों के सम्मुख पड़ता है सबसे अधिक वर्षा प्राप्त करता है जबकि विमुख ढालों पर पवनों के न पहुंच पाने के कारण वर्षा नहीं हो पाती अथवा बहुत ही कम होती है जिसे वृष्टिछाया प्रदेश (rain-shadow area) कहते हैं जैसे हिमालय का वृष्टिछाया प्रदेश तिब्बत है| मानसूनी जलवायु प्रदेशों मैं ग्रीष्म ऋतु मैं पर्वतीय वर्षा होती है पर्वतों के पवनभिमुख ढालों को सर्वाधिक वर्षा प्राप्त होती है उनसे दूर हटाने पर वर्षा का मात्रा कमी आती है विश्व में सर्वाधिक वर्षा पर्वतीय द्वारा ही प्राप्त होती है हिमालय पर्वत के दक्षिण डालो पार मानसूनी पवनों से तथा राकी पर्वत के ऊपरी डालो पर पछुआ पवनों से इइसी प्रकार की वर्षा होती है।

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संवहनीय वर्षा

संवहनीय वर्षा- भूपटल पर जब किसी स्थान पर अत्याधिक तापमान उत्पन्न होता है तो वहां कि वायु गर्म होकर वायुमंडल मैं ऊपर उठने लगती हैं यही प्रक्रिया संवहन कहलाती है जब जब धरती से ऊपर जाकर फैलने से वायु ठंडी हो जाती हैं जिससे आकाश में गहरे कपासी बादल छा जाते हैं तथा तेज गर्जना एवं विद्युत की चमक के साथ घनघोर वर्षा होने लगती है इस प्रक्रिया की वर्षा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में होती हैं ग्रीष्म ऋतु मैं तीव्र गति के कारण संवहनीय वर्षा प्रतिदिन तीसरे पहर में गर्जन तर्जन के साथ होती है।

चक्रवाती वर्षा

चक्रवाती वर्षा- जहां पर कम दाब वाले चक्रवात चलती है वहां विभिन्न दिशाओं से पवने केंद्र में एकत्र हो जाती है और भिन्न -भिन्न दिशाओं से आने के कारण इन पवनों के तापमान एवं घनत्व मैं अंतर आ जाता है सीत एवं वायु राशि के संपर्क के कारण शीत प्रधान पवनें उष्ण पवनों को ऊपर की ओर धकेल देती है ऊपर पहुंच कर ताप की कमी के कारण उष्ण वायुराशि धनी भत होकर वर्षा कर देती हैं अनुकूल परिस्थितियों में इनसे बौछारों के रूप में वर्षा होती है इस प्रकार के चक्रवाती वर्षा कहते हैं शीत एवं शीतोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों मै प्रायः ऐसी ही वर्षा होती है भारत में लौटते हुए मानसून अंबाला तमिलनाडु तथा आंध्र प्रदेश के तट होने वाली वर्षा चक्रवाती वर्षा ही है।

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