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उत्तराखंड के 13 प्रमुख लोक नृत्य हैं?

सामाजिक उत्तरदायित्व, स्वैच्छिकता, श्रमदान क्या है

भारतीय संस्कृति में उत्तराखंड गढ़वाल का संस्कृति का पहला स्थान है । यहां के जनजीवन मैं किसी न किसी रूप में संपूर्ण भारत के दर्शन सुलभ है इस स्वस्थ भावना को जाने के लिए यहां पर लोक नृत्य पवित्र साधन है।

धार्मिक नृत्य

उत्तराखंड के लोक नृत्य
उत्तराखंड की संस्कृति

धार्मिक नृत्य यहां पर देवी देवताओं से लेकर अंछरियाें (अप्सराओं) और भूत पिचास तब की पूजा धार्मिक नृत्य के अभिनव द्वारा संपन्न की जाती है इन मृत्यु में गीतों एवं वाद्य यंत्रों के स्वराें द्वारा देवता विशेष पार अलाैकिक कंपन के रूप में होता है। कंपन की चरम सीमा पर वह उठकर बैठकर नृत्य करने लगता है। ऐसे देवताओं का आना कहते हैं जिस पर देवता आता है वह पस्वा कहलाता है। धार्मिक नृत्य की चार अवस्थाएं है-

विशुद्ध देवी देवताओं का नृत्य ऐसे नृत्य में जाकर लगाने हैं। उसमें प्रत्येक देवता का आह्वान पूजन एवं नृत्य होता है।

देवता रूप में पांडवों का पण्डाैं नृत्य पाण्डवों की संपूर्ण कथा वार्ता रूप मैं गाकर विभिन्न शैलियों में नृत्य होता है। संपूर्ण उत्तरी पर्वतीय शैलियों में पांडवों का निर्माण किया जाता है।

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मृत अशांत आत्मा नृत्य मृतक की आत्मा को शांत करने के लिए अत्यंत कारूणिका गीत रसों का गायन होता है और डमरो तथा थाली के स्वरों में नृत्य का बाजा बजाया जाता है।

रणभूत देवता युद्ध में मेरे वीर योद्धा भी देव रूप में पूजे तथा नचाए जाते हैं। बहुत पहले कत्यूराें और राणा वीरू का घमासान युद्ध हुआ था आज भी उन वीरों की अशांत आत्मा उनके विश्व अंजू के सिर पर आती है भंडारी जातिक पर कत्यूरी वीर और रावत जाति पर रातारात वीर आता है।

सामाजिक नृत्य इस प्रकार के नृत्यांगना मैं मुद्राओं नर्तन अभिनव एवं रस का पूर्ण परिपाक मिलता है ऐसे नृत्यों में गीतों का महत्व अधिक होता है इन में प्राचीन भारतीय नृत्याें मध्यकालीन भारतीय नृत्याें एवं आधुनिक भारतीय नृत्य का सम्मिश्रण दिखाई पड़ता है कुछ नृत्य इस प्रकार हैं

उत्तराखंड के लोक नृत्य
उत्तराखंड की संस्कृति

थडया नृत्य संत पंचमी से लेकर विश्वत मकर संक्रांति तंत्र अनेक सामाजिक एवं देवताओं के नृत्य गीतों के साथ खुले मैदान में गोलाकार होकर स्त्रियों द्वारा किए गए लास्य कोटी के नृत्य हैं।

खुदेड़ नृत्य जो आध्यात्मिक क्षुधा में विहल, मायके स्मृति मैं डूबी हुई नायिकाओं का ह्रदय विदारक गतिमय नृत्य है।

चोफुला नृत्य थडया नृत्य की भांति चोफुला नृत्य भी है परंतु इसमें तालियों की गड़गड़ाहट एवं चूड़ियों एवं पाजेबाें की झनझनाहट का विशिष्ट स्थान होता है गुजराती गरबा या गरीबी नृत्य का छाप इस प्रकार है।

तलवार नृत्य इस नृत्य में चोलिया नृत्य भी कहते हैं ढोल दमोऊ के स्वरों मैं तलवारों का स्त्री पुरुष का नृत्य वीर भावनाओं के ओत प्रोत है।

भैला नृत्य यह दीपावली (बग्वाल) की रात मैं तथा हरि बाेधनी (इगास) की रात में गढ़वाल के गांवों में यह नृत्याेंत्सव मनाया जाता है।

जांत्रा नृत्य पूर्व विशेषाें पर स्त्रियों द्वारा द्वारा किया गया यह नृत्य है जिसमें किसी पर्व या देवता का निर्णय मुख्य होता है। बंगाल का जांत्रा नृत्य इसी के समान है।

चोलिया नृत्य चाेलिया नृत्य के साथ कोई भी गीत नहीं गाया जाता है इसके राजपूत वीरों की लड़ाई के दृश्य हाथ में तलवार एवं ढोल लेकर दर्शाते हैं ।

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