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ऊर्जा संचालन (power handling) क्या है?

ऊर्जा संचालन क्या है

ऊर्जा संचालन (power handling) –

पर्यावरण की व्यवस्था एवं सन्तुलन में ऊर्जा का विशिष्ट महत्त्व है। ऊर्जा के द्वारा ही अजैविक तथा जैविक वस्तुओं में प्रतिक्रिया होती है। ऊर्जा अपने गुणधर्म के अनुसार किसी भी दिशा में गमन कर सकती है। किन्तु वापस उसी क्रम में नहीं लौटती, इसीलिए ऊर्जा का पथ चक्रीय नहीं होता बल्कि ऊर्जा एक रेखीय पथ पर गति करती है। अत: ऊर्जा संचालन में ऊर्जा चक्र के स्थान पर ऊर्जा प्रवाह का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार ऊर्जा का रेखीय प्रवाह ही ऊर्जा संचालन कहलाता है।

किसी अयुक्त निकाय (isolated system) की कुल ऊर्जा समय के साथ नियत रहती है। अर्थात ऊर्जा का न तो निर्माण सम्भव है न ही विनाश; केवल इसका रूप बदला जा सकता है। उदाहरण के लिये: गतिज उर्जा, स्थितिज उर्जा में बदल सकती है; विद्युत उर्जा, ऊष्मीय ऊर्जा में बदल सकती है; यांत्रिक कार्य से उष्मा (heat) उत्पन्न हो सकती है।

ऊर्जा संचालन क्या है
ऊर्जा संचालन क्या है

ऊर्जा संचालन के स्वरूप –

पर्यावरण में ऊर्जा का सर्वप्रमुख स्रोत सूर्य है। सूर्य के प्रकाश के रूप में ही विकिरण के माध्यम से ऊर्जा की प्राप्ति होती है। इस ऊर्जा का वितरण एवं संचालन (प्रवाह-Flow ) विभिन्न तत्त्वों में विभिन्न रूप से गतिशील रहता है। हरे पेड़ – पौधों में ऊर्जा अवशोषित होती है। कुछ ऊर्जा ताप के रूप में बदलकर पौधों से विलुप्त हो जाती है। ऐसी ऊर्जा की मात्रा अत्यन्त अल्प होती है जो विकिरण के द्वारा प्रसारित होकर भोजन के रूप में निर्मित होकर पेड़-पौधों की जड़ों में संचित होती हैं।

ऊर्जा प्राप्ति करने हेतु दो नियम –

प्रथम नियम –

प्रथम नियम के अनुसार, ऊर्जा का न निर्माण किया जा सकता, न विनाश बल्कि ऊर्जा का स्वरूप परिवर्तित हो जाता है। सूर्य से विकिरण द्वारा प्राप्त ऊर्जा जब किसी छत को गर्म करती है तब वह ताप में बदल जाती है।

यह ताप ठण्डक प्राप्त करने में भी बदला जा सकता है। इस प्रकार पारिस्थितिकी में ऊर्जा एक तत्त्व से दूसरे तत्त्व में परिवर्तित होती हुई गमन करती है तथा पुन: वायुमण्डल में विलीन हो जाती है। इस प्रकार ऊर्जा का प्रथम नियम या स्वरूप पारिस्थितिकी में एक सामंजस्य स्थापित करने का कार्य करता है।

द्वितीय नियम-

द्वितीय नियम के अनुसार, ऊर्जा वितरित स्वरूप में कार्य करती है। वायुमण्डल में ताप के रूप में विद्यमान ऊर्जा वितरित रूप में ही कार्यरत रहती है। इसका उपयोग प्रत्यक्ष रूप में नहीं किया जा सकता। यह प्रक्रिया श्वास क्रिया के रूप में सम्पन्न होती है जिसमें कुछ ऊर्जा का ह्रास होता है।

तथा कुछ ऊर्जा का निर्माण होता है। जीवित रहने के लिए प्रत्येक प्राणी को इसी ऊर्जा की आवश्यकता होती है। यह ऊर्जा ताप के रूप में गमन करती हुई शारीरिक प्रक्रियाओं को संचालित रखती है। मनुष्य भोजन के रूप में ऊर्जा ग्रहण करता है जो ताप में परिवर्तित होकर शरीर को क्रियाशील रखती इस प्रकार प्रत्येक पारिस्थितिकी में ऊर्जा के इन विविध स्वरूपों द्वारा जीवन का संचालन होता रहता है।

प्रश्न ओर उत्तर (FAQ)

ऊर्जा संचालन किसे कहते हैं?

पर्यावरण की व्यवस्था एवं सन्तुलन में ऊर्जा का विशिष्ट महत्त्व है। ऊर्जा के द्वारा ही अजैविक तथा जैविक वस्तुओं में प्रतिक्रिया होती है। ऊर्जा अपने गुणधर्म के अनुसार किसी भी दिशा में गमन कर सकती है। किन्तु वापस उसी क्रम में नहीं लौटती, इसीलिए ऊर्जा का पथ चक्रीय नहीं होता बल्कि ऊर्जा एक रेखीय पथ पर गति करती है। अत: ऊर्जा संचालन में ऊर्जा चक्र के स्थान पर ऊर्जा प्रवाह का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार ऊर्जा का रेखीय प्रवाह ही ऊर्जा संचालन कहलाता है।

ऊर्जा प्राप्त करने हेतु एक नियम बताइए।

प्रथम नियम के अनुसार, ऊर्जा का न निर्माण किया जा सकता, न विनाश बल्कि ऊर्जा का स्वरूप परिवर्तित हो जाता है। सूर्य से विकिरण द्वारा प्राप्त ऊर्जा जब किसी छत को गर्म करती है तब वह ताप में बदल जाती है।

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