इन ऊर्जा स्रोतों को गैर-नवीकरणीय कहा जाता है क्योंकि उनकी आपूर्ति उस मात्रा तक सीमित होती है जिसे हम पृथ्वी से निकाल सकते हैं या निकाल सकते हैं। कोयले, प्राकृतिक गैस और पेट्रोलियम का निर्माण हजारों वर्षों में प्राचीन समुद्री पौधों और जानवरों के दफन अवशेषों से हुआ है जो लाखों साल पहले रहते थे। इसलिए हम उन ऊर्जा स्रोतों को जीवाश्म ईंधन भी कहते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका में खपत किए जाने वाले अधिकांश पेट्रोलियम उत्पाद कच्चे तेल से बने होते हैं, लेकिन पेट्रोलियम तरल पदार्थ प्राकृतिक गैस और कोयले से भी बनाए जा सकते हैं। परमाणु ऊर्जा यूरेनियम से उत्पन्न होती है, एक गैर-नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत जिसके परमाणुओं को विभाजित किया जाता है (परमाणु विखंडन नामक एक प्रक्रिया के माध्यम से) गर्मी और अंततः बिजली पैदा करने के लिए। वैज्ञानिकों का मानना है।

कि यूरेनियम का निर्माण अरबों साल पहले हुआ था जब तारे बने थे। यूरेनियम पूरे पृथ्वी की पपड़ी में पाया जाता है, लेकिन इसका अधिकांश भाग मेरे लिए बहुत कठिन या बहुत महंगा है और परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के लिए ईंधन में संसाधित होता है। अधिकांश मानव इतिहास के दौरान, पौधों से बायोमास मुख्य ऊर्जा स्रोत था, जिसे गर्मी के लिए और परिवहन और जुताई के लिए उपयोग किए जाने वाले जानवरों को खिलाने के लिए जलाया जाता था। गैर-नवीकरणीय स्रोतों ने संयुक्त राज्य अमेरिका में 1800 के दशक की शुरुआत में अधिकांश नवीकरणीय ऊर्जा उपयोग की जगह लेना शुरू कर दिया, और 1900 की शुरुआत तक, जीवाश्म ईंधन ऊर्जा के मुख्य स्रोत थे।
घरों को गर्म करने के लिए बायोमास का उपयोग ऊर्जा का स्रोत बना रहा, लेकिन मुख्य रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में और शहरी क्षेत्रों में पूरक गर्मी के लिए। 1980 के दशक के मध्य में, बायोमास और नवीकरणीय ऊर्जा के अन्य रूपों का उपयोग बड़े पैमाने पर उनके उपयोग के लिए प्रोत्साहन के कारण बढ़ने लगा, विशेष रूप से बिजली उत्पादन के लिए। कई देश कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन को कम करने और उससे बचने में मदद करने के तरीके के रूप में अक्षय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं।
गैर परंपरागत ऊर्जा के साधन | Ger paramparagat urja strot
सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा, ज्वारीय ऊर्जा, भूतापीय ऊर्जा, जैव पदार्थों से प्राप्त ऊर्जा, कृषि अपशिष्ट एवं मानव मल मूत्र से प्राप्त ऊर्जा आदि गैर परंपरागत ऊर्जा संसाधन कहलाते हैं। यह ऊर्जा से अक्षय या नव्यकरणीय साधन है। इसी विशेषता के कारण इन्हें विश्वसनीय ऊर्जा साधन कहा जाता है। इन संसाधनों का वितरण अग्रलिखित है-
1. पवन ऊर्जा – नौ-परिवहन का उपयोग प्राचीन काल में पवन के माध्यम से ही किया जाता था। पालदार नोकाएं इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। अतः जो शक्ति पवन के संचालन से प्राप्त होती है। उसे पवन ऊर्जा कहा जाता है। भारत में 20000 मेगावाट सौर की उत्पादन क्षमता है। देश में लगभग 85 स्थानों की पहचान की जा चुकी है। इन पवन ऊर्जा की बिजली उत्पादन क्षमता 4500 मेगावाट तक है। और यह स्थान तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, गुजरात, केरल, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और लक्षद्वीप में स्थित है। और गुच्छ नामक जगह मैं देश का सबसे बड़ा पवन ऊर्जा फार्म है जिसकी उत्पादन क्षमता लगभग 150 मेगावाट है। गुजरात राज्य में पवन ऊर्जा के विकास की सर्वाधिक संभावनाएं विद्यमान है।
2. ज्वारीय ऊर्जा- भारत की समुद्री सीमा 6100 किमी लंबी है। तटीय क्षेत्रों में ज्वार भाटा की प्रक्रिया द्वारा ज्वारीय ऊर्जा का उत्पादन सुगमता से किया जा सकता है। यदि ज्वार उठने के समय किसी संयंत्र के माध्यम से ऊर्जा प्राप्त कर ली जाए तो प्राप्त ऊर्जा का उत्पादन बहुत ही सस्ता पड़ता है। यहां ऊर्जा का अक्षय स्रोत है। भारत में कच्छ एवं खंभात की खाड़ी इसकी उत्पादन के आदर्श क्षेत्र है।
3. कृषि अपशिष्टों से प्राप्त ऊर्जा-वर्तमान में भारत में 506 से भी अधिक मिले गन्ने से चीनी का उत्पादन कर रही है जिन से भारी मात्रा में खोई की प्राप्ति होती है। अतः गन्ने की पेराई मौसम में इस खोई से 2000 मेगावाट विद्युत शक्ति का उत्पादन किया जा सकता है। कुछ आधुनिक चीनी मिलें ऊर्जा का उत्पादन कर रही है। कृषि, पशुओं तथा मानव के अपशिष्ट द्वारा उत्पादित ऊर्जा ग्रामीण क्षेत्रों की ओर जा सकता में प्रयुक्त की जा सकती है। इस दिशा में बायोगैस संयंत्र का संचालन महत्वपूर्ण स्थान रखता है।
4. सौर ऊर्जा – गैर परंपरागत ऊर्जा स्रोतों में सौर ऊर्जा सर्वोपरि है। सौर ऊर्जा सूर्य से प्राप्त होती है। इसके लिए सूर्य प्रकाश में एक संयंत्र स्थापित कर दिया जाता है जो सूर्य से प्राप्त होने वाली ऊर्जा को अपने में समाहित कर लेता है। तथा उत्पादित और ऊर्जा का उपयोग विभिन्न घरेलू कार्य में किया जाता है।
इस संबंध में सौर चूल्हो का विकास एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है। वर्तमान में 70000 चूल्हे उपयोग में लाए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में लघु एवं मध्यम आकार के सौर बिजली घरों के निर्माण की योजनाए क्रियान्वित की जा रही है। अतः ब्रह्मांड में जब तक सूर्य विद्यमान रहेगा, इससे सतत् रूप में ऊर्जा की पर्याप्त मात्रा प्राप्त की जाती रहेगी।
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