ओमकारेश्वर मंदिर भारत देश के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जनपद के उखीमठ में स्थित हैं। जो समुद्र तल से 1311 मीटर की ऊंचाई पर है। जो रुद्रप्रयाग जनपद से 41 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। जहां से बाबा केदार की डोली 6 माह ग्रीष्मकालीन केदारनाथ जाती है। तथा 6 महीने शीतकालीन पूजा जो बाबा केदारनाथ की डाली उखीमठ के ओमकारेश्वर मंदिर में होती है यह हिंदू तीर्थ मन्दिर स्थान हैं।
ओंकारेश्वर मंदिर का परिचय
ओंमकारेश्वर मंदिर प्राचीन मंदिरों में से एक मंदिर है तथा यहां पर बाबा केदार की डोली और मद्महेश्वर की डोली (नवंबर से अप्रैल) माह के दौरान भगवान की पूजा इस मन्दिर में हाेती हैं। यह डोली चार दिनों की पैदल यात्रा की बाद उखीमठ पहुंच जाती है। तथा बाबा केदार की डोली के साथ भक्त जयकारों के साथ मंदिर पहुंचती है। मंदिर की परिक्रमा के बाद भगवान को भोग मूर्ति काे गर्भ गिरोह में विराजमान किया जाता है। तथा डोली के साथ कहीं महिलाएं पुरुष पार देवता का रूप भी दिखाई देता है। तथा यहाँ पर वर्ष भर कपाट खुले रहते हैं तथा यहां पर लाखों की संख्या मैं प्रत्येक वर्ष दर्शन करने के लिए आते हैं।
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ओमकारेश्वर मंदिर का इतिहास
प्राचीन समय में ओमकारेश्वर मंदिर में बाणासुर (लड़की के पिता)की उषा नाम की एक कन्या थी। एक बार उषा सपना में श्री कृष्ण के पौते परिधुम्य से पुत्र अनिरुद्ध को देखा और उसके ऊपर मोहित हो गया। फिर उषा भी अनिरुद्ध पार मोहित हो गया। वहीं उसके साथ महल में ही रहने लगे। तथा उषा अनिरुद्ध को पति के रूप में पानी की कामना करती थी। जिसमें उषा वाड़ासुर की पुत्री थी। अनिरुद्ध भी उषा पर मोहित हो गया। वह दोनों एक ही महल मे रहने लगे। फिर बाणासुर क्रोधित हो गया। और अनिरुद्ध को युद्ध के लिए ललकारा।

बाणासुर ने अनिरुद्ध के सारे सिफाई भाई को मार दिया। और दोनों में धाेर युद्ध होने लगा। बाणासुर ने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया। फिर द्वारका में अनिरुद्ध की खोज होने लगी। फिर बाणासुर के नगर शेणितपुर पहुंचे। आक्रमण सुन कर बाणासुर अपनी सेना के साथ लेकर आ गया। और घोर युद्ध होने लगा। परंतु बाणासुर तेज दिमाग का था। उसे लगने लगा कि में कृष्णा को नहीं हरा सकता हूँ। बाणासुर की आवाज सुनकर शिव के रूद्रगणाें वह अपनी सेना सहायता के लिए भेज दिया। और श्री कृष्णा पर चारों ओर से हमला हो गया।
फिर कृष्ण रूद्र रणभूमि में आ गए हैं भगवान शिव बहुत समझाया परंतु कृष्णा समझे नहीं। फिर बाद में भयानक युद्ध होने लगा। लेकिन शिव के जाने के बाद कृष्ण पुनः बाणासुर पर टूट पड़े। तथा दोनों सेना आपस में टूट पड़े। फिर कृष्ण ने बाणासुर की चारभुजा छोड़कर सारी भुजाएं काट दी उन्हें क्रोध होने के कारण बाणासुर को मारने की ठान ली। और बाद में बाणासुर को अनिरुद्ध को मुक्त करने की आज्ञा की। फिर बाणासुर ने खुशी खुशी अपनी पुत्री का हाथ अनिकेत के हाथ में दे दिया और श्री कृष्ण का समुचित सत्कार कर उन्हें विदा कर दिया।
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केदारनाथ और पंचमुखी का स्थान गर्व ओमकारेश्वर मंदिर है। तथा अंदर एक मूर्ति और है। जो कभी यहाँ राज करता था। वें 14 वर्ष वैराज देश के भ्रमण करते करते जिस स्थान पर पहुंच जाते हैं। इस स्थान पर उन्होंने 12 वर्ष तक उन्होंने एक पाव जमीन पर रखकर कठिन तपस्या की तथा भोलेनाथ प्रसन्न होकर उन्हें दर्शन दिए मां कोटेश्वर के नाम दर्शन इसलिए इस मंदिर का नाम ओमकारेश्वर नाम पड़ा। जब बाबा केदार के कपाट बंद हो जाते हैं। तब भोलेनाथ की समाधि योग ध्यान में बैठा देते हैं तथा भगवान भोलेनाथ की मूर्ति को गर्व मंदिर में रखा जाता है।
ओमकारेश्वर मंदिर का रास्ता
- हरिद्वार (204) से ऋषिकेश (181)होते हुए श्रीनगर (74)से रुद्रप्रयाग(44) से अगस्मुनि (25)चंद्रपुरी (18) से भीरी से कुंड (8) किलाे०मीटर से होते हुए उखीमठ बाजार से 200 मीटर नीचे से ऐक रास्ता मंदिर के लिए निकलता है।
- अगर आप केदारनाथ की साइट से आ रहे हो ताे पहले आपको गुप्तकाशी (18) आना पड़ेगा फिर वहां से कुंड आना पड़ेगा। फिर कुंड से उखीमठ के बीच से मन्दिर के लिए एक रास्ता जाता हैं।
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