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भारतीय संस्कृति में गुरु-शिष्य सम्बन्ध | कक्षा-12 अपठित गद्यांश

जिसे भारतीय संस्कृति कहा जाना चाहिए, वह आज भारतीय, मानसिक क्षितिज में क्रियाशील नहीं है। आज एक प्रकार की अव्यवस्थित […]

संसार के मूलरूप की रक्षा | कक्षा-12 अपठित गद्यांश

संसार को परिभाषित करना बहुत मुश्किल काम है। महाद्वीपों, द्वीपों, महासागरों, पर्वतों, मैदानों, सर-सरिताओं आदि का समेकित नाम ही संसार […]

राष्ट्र निर्माण में जन का योगदान | कक्षा-10 साहित्यिक गद्यांश (450 से 700 शब्द)

माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है। इसी प्रकार पृथिवी पर बसनेवाले जन बराबर हैं। उनमें ऊँच और नीच का भाव नहीं है। जो मातृभूमि के उदय के साथ जुड़ा हुआ है वह समान अधिकार का भागी है। पृथिवी पर निवास करनेवाले जनों का विस्तार अनन्त है।

हमारी सांस्कृतिक एकता | कक्षा-10 साहित्यिक गद्यांश (450 से 700) शब्द

हमारे देश ने आलोक व अन्धकार के अनेक युग पार किए हैं, परन्तु अपने सांस्कृतिक उत्तराधिकार के प्रति वह एकान्त सावधान रहा है। उसमें अनेक विचारधाराएँ समाहित हो गईं, अनेक मान्यताओं ने स्थान पाया, पर उसका व्यक्तित्व सार्वभौम होकर भी उसी का रहा।

अद्भुत शनि | कक्षा-10 साहित्यिक गद्यांश (450 से 700 शब्द)

शनि हमारे सौरमण्डल का सबसे सुन्दर ग्रह है। सौरमण्डल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति के बाद शनि का दूसरा स्थान है। यह ग्रह हमारी पृथ्वी से करीब 750 गुना बड़ा है। सूर्य से शनि की दूरी 143 करोड़ किलोमीटर है। हमारी पृथ्वी सूर्य से 15 करोड़ किलोमीटर दूर है।

राष्ट्र का स्वरूप | कक्षा-10 साहित्यिक गद्यांश (450 से 700 शब्द)

धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियाँ भरी हैं, जिनके कारण यह वसुन्धरा कहलाती है, उनसे कौन परिचित न होना चाहेगा? लाखों-करोड़ों वर्षों से अनेक प्रकार की धातुओं को पृथ्वी के गर्भ में पोषण मिला है। दिन-रात बहनेवाली नदियों ने पहाड़ों को पीस-पीसकर अगणित प्रकार की मिट्टियों से पृथ्वी की देह को सजाया है।

मातृभाषा का महत्त्व | कक्षा-10 साहित्यिक गद्यांश (450 से 700 शब्द)

हमने मातृभाषा का अनादर किया है। इस पाप का कड़वा फल हमें जरूर भोगना पड़ेगा। हममें और हमारे घर के लोगों के बीच कितना ज्यादा व्यवधान पैदा हो गया है, इसके साक्षी इस सम्मेलन में आनेवाले हम सभी हैं। हम जो कुछ सीखते हैं, वह अपनी माताओं को नहीं समझाते और न समझा सकते हैं।

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