आचरण का विकास | कक्षा-12 अपठित गद्यांश
June 2, 2022मनुष्य का जीवन इतना विशाल है कि उसके आचरण को रूप देने के लिए नाना प्रकार के ऊँच-नीच और भले-बुरे […]
मनुष्य का जीवन इतना विशाल है कि उसके आचरण को रूप देने के लिए नाना प्रकार के ऊँच-नीच और भले-बुरे […]
जिसे भारतीय संस्कृति कहा जाना चाहिए, वह आज भारतीय, मानसिक क्षितिज में क्रियाशील नहीं है। आज एक प्रकार की अव्यवस्थित […]
शान्ति, सद्भावना, सदाशयता एवं परहित निरन्तरता आदर्श समाज के प्रमुख गुण हैं। भारतीय मनीषा ने इन मानव सुलभ विशेषताओं पर […]
प्रकृति के अनेक अभिकर्त्ता अपनी तरह से अपना काम करते हैं। हवा, पानी, तूफान, बादल, बिजली आदि सभी अपना काम […]
माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है। इसी प्रकार पृथिवी पर बसनेवाले जन बराबर हैं। उनमें ऊँच और नीच का भाव नहीं है। जो मातृभूमि के उदय के साथ जुड़ा हुआ है वह समान अधिकार का भागी है। पृथिवी पर निवास करनेवाले जनों का विस्तार अनन्त है।
गांधीगिरी और गांधित्व- कहने को चाहे भारत में स्वशासन हो और भारतीयकरण का नारा हो, किन्तु वास्तविकता में सब ओर […]
शनि हमारे सौरमण्डल का सबसे सुन्दर ग्रह है। सौरमण्डल के सबसे बड़े ग्रह बृहस्पति के बाद शनि का दूसरा स्थान है। यह ग्रह हमारी पृथ्वी से करीब 750 गुना बड़ा है। सूर्य से शनि की दूरी 143 करोड़ किलोमीटर है। हमारी पृथ्वी सूर्य से 15 करोड़ किलोमीटर दूर है।
हमने मातृभाषा का अनादर किया है। इस पाप का कड़वा फल हमें जरूर भोगना पड़ेगा। हममें और हमारे घर के लोगों के बीच कितना ज्यादा व्यवधान पैदा हो गया है, इसके साक्षी इस सम्मेलन में आनेवाले हम सभी हैं। हम जो कुछ सीखते हैं, वह अपनी माताओं को नहीं समझाते और न समझा सकते हैं।
धार्मिक शिक्षा के सन्दर्भ में धर्म को सीमित अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए। इसका अर्थ मानव-धर्म या विश्वधर्म है जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का भाव अपने में निहित रखता है। इसका अभिप्राय उस धर्म से है जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः’ का सन्देश देता है। धर्म एक उच्च मानवीय अनुशासन है जो व्यक्ति को संस्कारवान् बनाता है।