शुष्क भूमि को पानी की कमी से परिभाषित किया जाता है। शुष्क भूमि ऐसे क्षेत्र हैं जहां वर्षा को सतहों से वाष्पीकरण और पौधों द्वारा वाष्पोत्सर्जन द्वारा संतुलित किया जाता है। संयुक्त राष्ट्र में पर्यावरण कार्यक्रम ओर शुष्क भूमि (Drylands) को 0.65% से कम के शुष्कता सूचकांक के साथ उष्णकटिबंधीय (tropical) और समशीतोष्ण (temperate) क्षेत्रों के रूप में परिभाषित करता है।
शुष्क भूमि – भूमि का एक बड़ा क्षेत्र जिसमें कुछ पौधे और थोड़ा पानी होता है और जहां मौसम हमेशा शुष्क रहता है। शुष्क भूमि एक प्रमुख विशेषता वाले भूमि क्षेत्र हैं: वे वर्षा या हिमपात के रूप में अपेक्षाकृत कम मात्रा में वर्षा प्राप्त करते हैं। 40 प्रतिशत शुष्क भूमि दुनिया के अधिक महत्वपूर्ण पारिस्थितिक तंत्रों में से एक है, जिसमें पृथ्वी की पूरी 40% भूमि की सतह शामिल है
सूखा क्या है? | sukha kise kahate hain
सूखा एक प्राकृतिक आपदा है। इसमें कृषि, पशुपालन तथा मनुष्य की सामान्य जल आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए जल का अभाव उत्पन्न हो जाता है।कम वर्षा होना सूखा की स्थिति माना जाता है। सामान्यतः गंभीर सूखे की स्थिति ज्यादा देर से आती है। गंभीर सूखा तब माना जाता है, जब वर्षा में 50% से अधिक कमी आए या 2 वर्षों तक निरंतर वर्षा ना हो।

सूखा पड़ने के कारण | Sukha padne ke kya karan hai
सूखा एक भयंकर प्राकृतिक प्रकोप है जो कुछ स्थानों पर विभिन्न प्राकृतिक दिशाओं के कारण स्थाई रूप से स्थापित हो जाता है। इससे मानव की आर्थिक क्रियाएं इतनी प्रभावित होती हैं। कि उसे मजबूर होकर उस स्थान से पलायन तक करना पड़ जाता है।वास्तव में इसके विस्तार एवं विधि में प्रकृति के साथ साथ मानवीय क्रियाएं भी कम उत्तरदाई नहीं है। सूखा उत्पन्न होने के प्रमुख कारण निम्नलिखित है।
- सूखे का सबसे प्रमुख कारण वर्षा ना होना है। वर्षा ना होने के पीछे विभिन्न भौतिक दशाएं, जलवायु परिवर्तन एवं वन विनाश महत्वपूर्ण कारण है।
- वन जलवायु को संतुलित रखते हैं तथा वर्षा के लिए अनुकूल दशाएं उत्पन्न करते हैं। अतः वनों के विनाश से वातावरण में आंध्र ता की मात्रा न्यूनतम हो जाती है और सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- भूमिगत जल का यदि अत्याधिक दोहन किया जाता है, कुआं तथा अन्य भूमिगत जल स्रोत सूख जाते हैं इसलिए सूखे की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- वैज्ञानिकों का मत है कि पृथ्वी तापन ग्लोबल वार्निंग में वृद्धि भी सूखे के लिए उत्तरदाई है।
सूखे के कारण उत्पन्न प्रभाव | Sukhe se utpann prabhav
वास्तव में, सूखा एक विनाशकारी प्राकृतिक आपदा है, क्योंकि इसका सीधा संबंध मानव की तीन आधारभूत आवश्यकताओं-वायु, जालौर भोजन से है।सूखे से अनेक दुष्परिणाम मानव के सामने उत्पन्न होने लगते हैं ऐसे ही कुछ दुष्परिणाम निम्नलिखित हैं।
- सूखा पड़ने पर कृषि उपजें नष्ट होने लगती हैं, जिससे भोजन की कमी हो जाती है।
- सूखा पड़ने से पशुओं के लिए चारे की कमी हो जाती है, कभी-कभी चारे की कमी के कारण पशुओं की मृत्यु हो जाती है।
- ग्रामीण की अर्थव्यवस्था का आधार कृषि है, परंतु सूखे के कारण कृषि नष्ट हो जाती है इसलिए ग्रामीण में किसानों को आर्थिक हानि का सामना करना पड़ता है।
- ग्रामीण में कृषि पर आधारित रोजगार ओं की प्रधानता होती है परंतु सूखे के कारण ग्रामीण में रोजगार की कमी हो जाती है।
- लंबी अवधि तक सूखा पड़ने पर दुर्लभ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है, जिससे भुखमरी के कारण व्यापक रूप में मानव एवं पशुओं की मृत्यु होने लगती है।
- और संतुलित की समस्या उत्पन्न होने लगती है।
- सूखा पड़ने पर उद्योगों के लिए कृषि आधारित कच्चे माल की कमी हो जाती है।
सूखे के प्रभाव से मुक्त होने के लिए युक्तियां
वास्तव में, सूखे का सबसे बड़ा कारण वर्षा की अल्पता या जल का अभाव है, जिसके लिए मानव के प्रकृति विरोधी कार्य अधिक उत्तरदाई हैं।अतः समग्र रूप से विभिन्न प्रयासों द्वारा जलवायु एवं पर्यावरण को संतुलित बनाए रखना सूखा से मुक्ति पाने का सबसे उत्तम उपाय है, जिसके लिए निम्नलिखित युक्तियां महत्वपूर्ण सिद्ध हो सकती हैं।
- वर्षा जल का संरक्षण एवं संवर्धन करना, नेहरों एवं नदियों के जल का समुचित उपयोग, वातावरण में उपलब्ध आंध्र ता का संरक्षण आदि के प्रबंधन की समुचित रणनीतियां बनाई जाए।
- हरित पट्टी का विस्तार किया जाए, आंध्र ता बनाए रखने में भी सहयोग होता है।
- सड़क मार्ग के दोनों ओर 5 मीटर में हरित पेटी का विकास किया जाना सर्वाधिक उपयोगी रहता है। इससे सूखे पर नियंत्रण और क्षेत्रीय पर्यावरण संतुलन दोनों में सहायता मिलती है।
- सार्वजनिक स्तर पर जन सेवी संस्थाओं के माध्यम से गंदे जल के निकास की उचित व्यवस्था होनी चाहिए।
- ग्रामीण एवं नगरीय क्षेत्रों में वर्षा जल का संचय अनिवार्य रूप से किया जाना चाहिए।
- अंगूर के अलावा, हमने पाया है कि कैलिफोर्निया में टमाटर, कद्दू, तरबूज, खरबूजे, शीतकालीन स्क्वैश, जैतून, गारबानोज़, खुबानी, सेब, विभिन्न अनाज और आलू सभी फसलें हैं जो सफलतापूर्वक सूखे खेती की जाती हैं।
भारत के मानचित्र में सूखाग्रस्त क्षेत्र दिखाई गई हैं।
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