नमस्कार दोस्तों कैसे हो आप सब उम्मीद करता हूँ आप सब स्वस्थ मस्त होंगे। आज मैं आपके लिए लेकर आया हूँ कि स्त्री जनन तंत्र (FEMALE REPRODUCTIVE SYSTEM) क्या होता है, स्त्री के यौवनारंभ में क्या क्या परिवर्तन देखने को मिलते हैं तो चलिए शुरू करते हैं।
स्त्री जनन तंत्र में एक जोड़ी अण्डाशय (ovaries),वाहिनी तन्त्र (duct system), जैसे फेलोपियन नलिकाएँ अथवा अण्डवाहिनियाँ, गर्भाशय, योनि, स्तन ग्रन्थियाँ (mammary glands), तथा बाह्य जननांग अथवा वाल्वा (valva) मिलते हैं।
अण्डाशय (Ovaries)
अण्डाशय बादाम की आकृति की 3 सेमी० लम्बी, 2 सेमी चौड़ी तथा । सेमी मोटी संरचना है जो वृक्क के समीप मेजोवेरियम (mesovarium) द्वारा उदर गुहा से जुड़ी होती है। इसका दूसरा भाग अण्डाशयी लिगामेंट (ovarian ligament) द्वारा गर्भाशय से जुड़ा होता है। अण्डाशय उदर गुहा में स्थित होते हैं। ये अण्डों का निर्माण करते हैं तथा इससे मादा के इस्ट्रोजन (estrogen) व प्रोजेस्ट्रान (progesterone) हार्मोन का स्राव होता है।

अण्डाशय की आन्तरिक संरचना (INTERNAL STRUCTURE OF OVARY)
अण्डाशय की बाह्य परत जनन एपीथीलियम (germinal epithelium) तथा अन्त: भाग स्ट्रोमा (stroma) द्वारा निर्मित होता है। स्ट्रोमा में रुधिर कोशिकाएँ, तन्त्रिका तन्त्र तथा ओवेरियन फॉलिकल अथवा ग्रॉफियन फॉलिकल (विभिन्न अवस्थाओं में) मिलते हैं।

स्तनी जन्तुओं में ग्रॉफियन फॉलिकल कोशिकाओं का एक ऐसा समूह है जिसकी कोई एक कोशिका अन्य की अपेक्षा तीव्रता से वृद्धि कर अण्डाणु बनाती है। शेष कोशिकाओं को फॉलिकुलर कोशिकाएँ कहते हैं। परिपक्व ग्रॉफिअन फालिकल में बाहरी बहुस्तरीय मेम्ब्रेना ग्रेनुलोसा (membrana granulosa) तथा भीतर फालिकुलर गुहा (follicular cavity) होती है जिसमें रंगहीन द्रव भरा रहता है।

फालिकुलर गुहा के अन्दर अण्डाणु अथवा ऊसाइट (oocyte) मिलता है। इसमें अन्दर चारों ओर पतली विटेलाइन कला (vitelline membrane) तथा बाहर मोटा पारदर्शी जोना पेलुसिडा (zona pellucida) अथवा जोना रेडिएटा (zona radiata) होता है जिसके बाहर की कोशिकाएँ कोरोना रेडिएटा (corona radiata) का निर्माण करती हैं।
परिपक्व अण्डाणु का मेम्ब्रेना ग्रेनुलोसा से सम्बन्ध बनाने वाली फॉलिकल कोशिकाएँ डिस्कस प्रोलिजेरस (discus proligerous) कहलाती हैं। अण्डाशय में स्थित फॉलिकल सूक्ष्म प्रवर्गों के समान दिखाई देते हैं जो परिपक्व होने पर अण्डाशय की ऊपरी सतह पर आते हैं तथा फटकर अण्डाणुओं को मुक्त कर देते हैं।
फॉलिकल की गुहा तब रक्त से भर जाती है। फॉलीकुलर कोशिकाएँ रक्त के थक्के के साथ कार्पस लूटियम (corpus luteum) बनाती हैं जो पीले रंग की ग्रन्थिल संरचना है तथा निषेचन के बाद भी बनी रहती है। इससे प्रोजेस्ट्रान हार्मोन का स्रवण होता है जो गर्भाशय व स्तन ग्रन्थियों को सक्रिय करता है। निषेचन न होने पर कार्पस लूटियम नष्ट हो जाता है तथा एक धब्बे के रूप में रह जाता है। इसे कार्पस एल्बिकेन्स (corpus albicans) कहते है।
अण्डवाहिनी (Fallopian Tubes)
ये लगभग 12 सेमी० लम्बी कुण्डलित नलिका हैं जिनके तीन भाग होते हैं—
- रोमाभि कीप (Ciliated funnel)—यह कीपाकार अग्र भाग है जो अण्डाशय के साथ लगा रहता है। इसके छिद्र को आस्टियम (ostium) कहते हैं। आस्टियम उदर गुहा में खुलता है। कीप के किनारे पर अंगुलियों के समान अनेकों प्रवर्ध होते हैं। इन प्रवर्धी को फिम्ब्री (fimbriae) कहते हैं।
- फेलोपियन नलिका (Fallopian tube ) — यह कीप के पिछले सिरे पर स्थित लम्बी नलिका है। इसकी दीवारे कुंचनशील हैं जो अन्दर की ओर रोमाभि उपकला ( ciliated epithelium) द्वारा स्तरित होती है।
- इस्थमस (Isthmus)—यह अण्डवाहिनी का अन्तिम भाग है जो गर्भाशय में खुलता है। अण्डाशय से मुक्त अण्डाणु उदर गुहा में आते हैं फिर फिम्बी द्वारा फेलोपियन नलिका में धकेले जाते हैं जहाँ से वे गर्भाशय में आते हैं।
गर्भाशय (Uterus)
यह एक नाशपाती समान पेशीय संरचना है जो स्त्री के श्रोणि प्रदेश (pelvic region) में स्थित होती है। दोनों ओर की अण्डवाहिनियाँ इसमें खुलती हैं। इसका ऊपरी भाग काय (body) व निचला संकरा भाग सरविक्स (cervix) कहलाता है। गर्भाशय की त्रिस्तरी भित्तियाँ बाह्य पेरिटोनियल स्तर मध्य में अरेखित पेशियों की बनी मायोमीट्रियम (myometrium) तथा भीतरी एन्डोमीट्रियम (endometrium) की बनी होती हैं। निषेचित अण्ड का वर्धन अण्डाशय में होता है।
योनि (Vagina)
योनि वह स्थान है जहाँ सरविक्स खुलता है। यह स्वयं एक संकरे छिद्र द्वारा बाहर की ओर खुलती है तथा स्त्री का मैथुन कक्ष बनाती है। कुंआरी कन्याओं में योनि के मुख पर झिल्ली के समान पर्दा होता है जिसे योनिच्छद (hymen) कहते हैं। पर्दे के मध्य उपस्थित छिद्र होता हैं जिसमें से रजस्राव बाहर निकलता है।
लैंगिक सम्पर्क, शारीरिक परिश्रम अथवा व्यायाम से यह पर्दा भजित हो जाता है। योनि की भित्ति में लेक्टोबेसिली (Lactobacilli) जीवाणु मिलते हैं जो ग्लाइकोजन का अपघटन कर कार्बनिक अम्ल बनाते हैं। इससे योनि में अम्लीयता का माध्यम रहता है जो रोगाणु के आक्रमण की सम्भावना को कम करता है।
यह योनि में प्रविष्ट होने वाले शुक्राणुओं के लिए भी हानिकारक होता है परन्तु वीर्य का क्षारीय अंश इस अम्लीयता को समाप्त करता है। योनि के मुख के दोनों ओर दो ग्रन्थियाँ होती हैं। जिन्हें बार्थोलिन ग्रन्थियाँ (Bartholin’s glands) कहते हैं। इनसे यौन उत्तेजना के समय द्रव का स्रवण होता है जो योनि व गर्भाशय में शुक्राणुओं को आगे बढ़ने में सहायता करता है।
बाह्य जननांग (Vulva)
स्त्री के बाह्य जननांग योनि मुख (vaginal orifice), लेबिया माइनोरा (labia minora) तथा क्लाइटोरिस (clitoris) आदि हैं। ये प्रकोष्ठ (vestibule) में स्थित होते हैं। ये प्रकोष्ट त्वचा के दो जोड़ी मांसल फ्लेप (पल्ले) से ढका होता है। बड़े को लेबिया मेजोरा (labia majora) तथा छोटे को लेबिया माइनोरा (labia minora) कहते हैं।
लेबिया माइनोरा के अग्र भाग में छोटा सा अंग भगशिश्न (clitoris) होता है यह मटर के दाने के समान तथा अत्यधिक संवेदी होता है। यूरिश्रा यूरिथल मुख (urethral orifice) तथा योनि मुख (vaginal orifice) के द्वारा शरीर के बाहर खुलती हैं।
स्तन ग्रन्थियाँ (Mammary glands)
वक्ष के सामने दोनों ओर नर तथा मादा दोनों में ही दो उभरे हुए चूचक (nipples) होते हैं। चूचक के चारों ओर का क्षेत्र वर्णकित होता है जिसे स्तनपरिवेश (areola) कहते हैं। स्त्रियों में चूचक के चारों ओर का काफी भाग वसा के जमाव तथा पेशियों के कारण अधिक उभरा होता है।
प्रत्येक स्तन में भीतर का संयोजी ऊतक 15-20 पालियों में बँटा रहता है जिनके मध्य वसीय ऊतक होता है। प्रत्येक पालि फिर अनेक पालियों में बंटी होती है। प्रत्येक पालि में अंगूर के गुच्छों की भाँति अनेक दुग्ध ग्रन्थियाँ होती हैं जिन्हें ऐल्वियोलाई (Alveoli) कहते हैं। प्रसव के पश्चात् ये एल्वियोलाई फैल जाते हैं तथा दुग्ध का स्राव आरम्भ हो जाता है।

सभी पालियों से निकली वाहिनियाँ लेक्टीफेरस वाहिनियाँ (lactiferous ducts) बनाती हैं। प्रत्येक स्तन में 15-20 लेक्टीफेरस वाहिनियाँ होती हैं जो चूचक के शिखर पर एक पृथक छिद्र से बाहर खुलती हैं परन्तु बाहर खुलने से पहले इसका कुछ भाग एक छोटे से ऐम्पुला के रूप में फूला रहता है। रजोनिवृत्ति (menopause) के बाद यह क्षीण हो जाता है।
मादा में यौवनारम्भ (PUBERTY IN FEMALE)
जब बालिकाओं में जनन तन्त्र परिपक्व होना आरम्भ होता है उस समय को यौवनारम्भ कहते हैं। लड़कियों में लगभग 10 वर्ष की आयु में सर्वप्रथम वक्ष में वृद्धि आरम्भ होती है। 12-13 वर्ष की आयु में अण्डोत्सर्ग (ovulation) तथा रजोदर्शन (menarche) आरम्भ होता है। यौवनारम्भ के समय होने वाले परिवर्तन निम्न हैं-
- बाह्य जननांग व वक्षों का विकास
- अण्डोत्सर्ग तथा रजोस्राव चक्र का आरम्भ
- श्रोणि क्षेत्र का चौड़ा होना
- कक्षीय व जाँघों के बालों का उगना
- जाँघ, नितम्ब व चेहरे पर वसा का जमाव
- मनोवैज्ञानिक परिवर्तन।
यौवनारम्भ में पिट्यूटरी के गोनेडोट्रापिन हार्मोन अण्डाशय के कार्यों का नियमन करते हैं। FSH ग्रॉफियन फालिकल की वृद्धि तथा उससे होने वाले हार्मोन का स्राव व अण्डाणु के परिपक्व को प्रेरित करते हैं। LH हार्मोन के कारण परिपक्व ग्रॉफियन फटता है और अण्डाणु को मुक्त करता है। द्वितीयक मादा लैंगिक लक्षणों की वृद्धि व प्रकार्यों का नियमन करने वाले एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन का स्राव भी इसी से होता है।