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साणेश्वर मंदिर कहां स्थित है?

साणेश्वर मंदिर भारत देश के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जनपद के अगस्तमुनि क्षेत्र सिल्ला गांव के नामक स्थान पर स्थित है जो समुद्र तल से 9012 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह मंदिर मंदाकिनी नदी के समीप स्थित है। यह मंदिर 17 वीं शताब्दी में इसका निर्माण हुआ था। यह मंदिर अगस्तमुनि से 5.4 किलाे०मीटर की दूरी पर स्थित है यह मंदिर।

साणेश्वर महाराज का परिचय

साणेश्वर मन्दिर
साणेश्वर महाराज मन्दिर

साणेश्वर मंदिर एक प्राचीन मंदिर हैं। यहां पर पंचशिला और साणेश्वर मंदिर और शिव ओर नन्दी के साथ में मां दुर्गा का मन्दिर भी है। यहाँ पर पहले राजा महाराज रहा करते थे। तब से यह मन्दिर आज तक चला आ रहा हैं।

माना जाता है कि साणेश्वर महाराज 12 वर्ष के दौरान दीवार (भरमण) जाता है। इसी दाैरान भाई बहन का मिलन होता है। फिर साणेश्वर महाराज अपने ध्याणी काे न्योता देने के लिए और भक्तों के कुशल पूछने के लिए 3 साल पहले दिवारा यात्रा पर निकलती है।

और मंदिर प्रांगण में डोली को सजाया जाता है। और ढोल ढोल नगाड़ों के यात्रा में निकलती है। साणेश्वर महाराज के साथ आगे क्षेत्रपाल रास्ता दिखाता है। और बीच में साणेश्वर महाराज और पीछे भूखंड, मसाड रहता हैं। हजारों नर नारियों के साथ विशाल यात्रा होती है।

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साणेश्वर महाराज की दीवार यात्रा

साणेश्वर महाराज
साणेश्वर महाराज और कुष्मांडा माता का मिलन

सारणेश्वर महाराज कि दीवार यात्रा अनेक गाँवों से हाेती है जैसे बस्टा, मरोड़ा ,उत्तरसू, बडमा, धरियाज, जखाेली, डंगवाल गाँव, स्वाडा, सेम, काेटी, नाै गाँव, चाका, गदनू, नाकामी, बनियाडी, साेडी, चमेली, रूमसी, भाैतारि, डाेबा, चाेड, चाेपता, आदि गाँव के साथ लगभग 100 से अधिक गाँव के भरमण करते हैं। और अपने प्रिय भक्तों के साथ डाेली बवे गाँव में पहुंचती है।

जहां पर कल्याणी का चौक मैं 5 दिन तक लोगों के द्वारा स्वागत किया जाता है। चारों दिशाओं में बैठी ध्याडी की आस्था के साथ रहती है। यहां पर सारणेश्वर महाराज बैठते हैं। वहां पर पहले अरग (लाेंगाें के भागे) लगाया जाता है। और लोगों के घर घर जाकर दुखाें का निवारण करते हैं।

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साणेश्वर महाराज का महायज्ञ

साणेश्वर महाराज
साणेश्वर महाराज डाेली

साणेश्वर महाराज का यज्ञ 12 वर्षों में भाई बहन का मिलन होता है। जिसमें 20,000 से अधिक लोग यहां पर दर्शन करने के लिए आते हैं। यह महायज्ञ 27 दिनों का होता है। सारणेश्वर महाराज जब दीवारा यात्रा से धर लौटते हैं। कुष्मांडा माता कुमडी गाँव से आती है। साणेश्वर महाराज अपनी बहन को लेने के लिए आधा रास्ता चले जाते हैं। तब सुबह साणेश्वर महाराज और कुष्मांडा माता का मिलन होता है। तब दोनों भाई बहन खेत में मिलने के लिए आते हैं।

जैसे-जैसे साणेश्वर आगे आगे चलते हैं वैसे ही साणेश्वर महाराज बहन को मिलने के लिए उत्सुक रहते हैं भाई बहन का इस मिलन को देखकर भक्तों की आंखाें में आंसू झलक जाते है। साणेश्वर महाराज, कुष्मांडा माता की डोली 1 घंटे से अधिक नृत्य करती है। फिर दोनों की डोली मंदिर में पहुंचती है। फिर अगस्त्यमुनि महाराज की आज्ञा लेकर महायज्ञ का शुभारंभ होता है

साणेश्वर महाराज का इतिहास

प्राचीन काल में सिल्ला गाँव में यहाँ दैत्यों का बाेल बाला था। तथा दैत्य जो भी मंदिर में आता था उसका मांस भक्षण किया करते थे। माना जाता है कि जब मन्दिर का खाली ऐक पुजारी रह गया। तब दक्षिण दिशा से मुनि महाराज आइए और उन्होंने हाेला कि आज की दायित्व में लेता हूँ। जब मुनि महाराज भूग लगा रहे थे। आतापी दैंत ने भाेग में बैठकर पेट में आतंक मचा दिया। अगस्त्यमुनि महाराज ने ध्यान किया और उस दैत्य काे पैट में मार दिया।

फिर आतापी का वातापी दोनों भाई यहां पर आतंक मचा रहे थे। वे दोनों दैत्य पूजा करने नहीं देते थे। फिर मुनि महाराज ने 9 दिन और 9 रात युद्ध हुआ। जैसे ही एक दैत्य काे मार रहें थे वैसे ही 100 दैत्य पैदा हाे रहे थे। फिर मुनि महाराज थक गये थे । तब उन्होंने माता कुष्मांडा का ध्यान किया और मां कुष्मांडा 12 रूपों में प्रकट हुई। जैसे जैसे दैत्य काे मार रहे थे। वैसे वैसे और पैदा हाे रहे थे। फिर दो दैत्य भाग गए एक दैत्य सिल्ली दूसरा दैत्य बद्रीनाथ भाग गया। तब से आज तक बद्रीनाथ में शंक नहीं बजता है।

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