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संसार के मूलरूप की रक्षा | कक्षा-12 अपठित गद्यांश

संसार को परिभाषित करना बहुत मुश्किल काम है। महाद्वीपों, द्वीपों, महासागरों, पर्वतों, मैदानों, सर-सरिताओं आदि का समेकित नाम ही संसार नहीं है। कुछ विद्वान् संसार की परिभाषा को निरूपित करने के लिए उक्त भौगोलिक व प्राकृतिक दृश्य-प्रपंचों को ही स्वीकार करते हैं , जो उनकी बहुत बड़ी भूल है। संसार तब बनता है, जब हम उसके प्राकृतिक उपादानों के गुण-अवगुणों को पहचानकर उन्हें जीवनोपयोगी बनाते हैं,

उनका समुचित दोहन करते हैं और उनके साथ अपने मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं। संसार में ‘ तुम और मैं ‘ पदबन्ध भी बहुत बड़ा काम करता है। वास्तव में, संसार इसी पदबन्ध के सहारे चलता है। एक-दूसरे का ख्याल रखनेवाले व्यक्ति ही संसार को परिपूर्णता प्रदान करते हैं।

‘तुम’ प्रकृति का कोई उपादान भी हो सकता है और कोई प्राणी भी। प्रकृति की ओर से परिकल्पित एवं सुगठित संसार के मूलरूप की रक्षा के लिए हमें कृतसंकल्प होना है। इसके निमित्त हमें– ‘माता भूमिः ‘ प्रकथन का अर्थानुसन्धान करते हुए प्रत्येक प्राकृतिक उपादान, प्रत्येक पशु-पक्षी एवं प्रत्येक मानव का ध्यान रखना होगा।

प्रश्न: (क) कुछ विद्वान् संसार को परिभाषित करते समय कौन-सी त्रुटि करते हैं?

प्रश्न: (ख) संसार, असली अर्थों में संसार कब बनता है?

प्रश्न: (ग) ‘तुम और मैं’ पदबन्ध का अर्थ बताइए।

प्रश्न: (घ) ‘अर्थानुसन्धान’ का अर्थ बताते हुए इस गद्यांश के लेखक के विचार की ओर संकेत कीजिए।

प्रश्न: (ङ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए ।

उत्तर: (क) कुछ विद्वान् संसार को परिभाषित करते समय यह त्रुटि करते हैं कि वे संसार की परिभाषा में उसके प्राकृतिक उपादानों के गुण-दोषों तथा जीवन में उनकी उपयोगिता को सम्मिलित नहीं करते।

उत्तर: (ख) संसार, असली अर्थों में संसार तब बनता है, जब उसके प्राकृतिक उपादानों के गुणों-अवगुणों को पहचानकर उन्हें जीवनोपयोगी बनाते हैं, उनका समुचित दोहन करते हैं तथा उनके साथ अपने मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित कर लेते हैं।

उत्तर: (ग) ‘तुम और मैं’ पदबन्ध में ‘तुम’ से आशय संसार के उपादानों से है और ‘मैं’ का आशय उन सभी उपभोक्ताओं से है, जो उन उपादानों का उपभोग करते हुए अपने जीवन को सार्थक बनाते हैं तथा उन उपादानों के साथ मित्रतापूर्ण सम्बन्ध स्थापित करते हैं। इस रूप में ‘तुम और मैं’ पदबन्ध का अर्थ सांसारिक उपादानों और हमारे बीच सामंजस्य स्थापित करने से है।

उत्तर: (घ) ‘अर्थानुसन्धान’ का अर्थ है उपयुक्त अर्थ (पारस्परिक सम्बन्धों) की खोज। लेखक का आशय यहाँ यह है कि हमें प्रकृति के पशु-पक्षी, नदी, पर्वत आदि उपादानों और अपने मध्य सम्बन्धों को समझना होगा और उन्हीं के अनुरूप अपने कर्त्तव्यों का निर्धारण करना होगा कि हमें प्रत्येक प्राकृतिक उपादान का रक्षण कितना और कैसे करना होगा।

उत्तर: (ङ) शीर्षक – ‘संसार के मूलरूप की रक्षा’।

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