Hubstd.in

Big Study Platform

  • Home
  • /
  • हिन्दी
  • /
  • राष्ट्र का स्वरूप | कक्षा-10 साहित्यिक गद्यांश (450 से 700 शब्द)
No ratings yet.

राष्ट्र का स्वरूप | कक्षा-10 साहित्यिक गद्यांश (450 से 700 शब्द)

राष्ट्र का स्वरूप-

धरती माता की कोख में जो अमूल्य निधियाँ भरी हैं, जिनके कारण यह वसुन्धरा कहलाती है, उनसे कौन परिचित न होना चाहेगा? लाखों-करोड़ों वर्षों से अनेक प्रकार की धातुओं को पृथ्वी के गर्भ में पोषण मिला है। दिन-रात बहनेवाली नदियों ने पहाड़ों को पीस-पीसकर अगणित प्रकार की मिट्टियों से पृथ्वी की देह को सजाया है।

हमारे भावी आर्थिक अभ्युदय के लिए इन सबकी जाँच-पड़ताल अत्यन्त आवश्यक है। पृथ्वी की गोद में जन्म लेनेवाले जड़ पत्थर कुशल शिल्पियों द्वारा सँवारे जाने पर अत्यन्त सौन्दर्य के प्रतीक बन जाते हैं। नाना प्रकार के अनगढ़ नग सरिता के प्रवाह में सूर्य की रोशनी में चिलकते रहते हैं। उनको जब चतुर कारीगर पहलदार कटाव पर लाते हैं तब उनके प्रत्येक घाट से नई शोभा और सुन्दरता फूट पड़ती है।

वे अनमोल हो जाते हैं। देश के नर-नारियों के रूपमंडन और सौन्दर्य प्रसाधन में इन छोटे पत्थरों का भी कितना भाग रहा है। अतएव हमें इनका ज्ञान होना आवश्यक है। पृथ्वी और आकाश के अन्तराल में जो कुछ सामग्री भरी हैं, पृथ्वी के चारों ओर फैले हुए गम्भीर सागर में जो जलचर एवं रत्नों की राशियाँ हैं, उन सबके प्रति चेतना के नए भाव राष्ट्र के जन-मन में फैलने चाहिए।

राष्ट्र के नवयुवकों के हृदय में उन सबके प्रति जिज्ञासा की नई किरणें जब तक नहीं फूटतीं तब तक हम प्रसुप्त ही हैं। विज्ञान और उद्यम दोनों को मिलाकर राष्ट्र के भौतिक स्वरूप का नया प्रारूप खड़ा करना है। यह कार्य प्रसन्नता, उत्साह और जनसहभागिता द्वारा किया जाना चाहिए।

हमारा ध्येय हो कि राष्ट्र में जितने हाथ हैं उनमें से कोई भी इस कार्य में भाग लिए बिना रीता न रहे। तभी राष्ट्र का सही स्वरूप खड़ा किया जा सकेगा। पृथ्वी का सांगोपांग अध्ययन जागरणशील राष्ट्र के लिए बहुत ही आनन्दप्रिय कर्त्तव्य माना जाता है। राष्ट्र में निवास करनेवाले मनुष्य , राष्ट्र का महत्त्वपूर्ण अंग हैं।

पृथ्वी हो, मनुष्य न हों तो राष्ट्र की कल्पना असम्भव है। पृथ्वी और जन दोनों के सम्मिलन से ही राष्ट्र का स्वरूप सम्पादित होता है। पृथ्वी माता है और जन सच्चे अर्थ में पृथ्वी का पुत्र। यह भाव जब सशक्त रूप से जागता है तब राष्ट्र-निर्माण का स्वर वायुमण्डल में भरने लगता है।

प्रश्न: (क) धरती को वसुन्धरा क्यों कहा जाता है?

प्रश्न: (ख) लेखक राष्ट्र के नवयुवकों में किस बात के प्रति जिज्ञासा जगाना चाहता है?

प्रश्न: (ग) राष्ट्र का नया प्रारूप खड़ा करने के लिए किन मूलभूत बातों की आवश्यकता है?

प्रश्न: (घ) पृथ्वी हमारी माता है, क्यों?

प्रश्न: (ङ) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।

उत्तर: (क) धरती अपनी कोख के भीतर अनन्त अमूल्य निधियों को धारण किए हुए है, इसलिए इसे वसुन्धरा कहा जाता है। ‘वसुम्’ का अर्थ. है — निधियाँ, सम्पत्ति, रत्न आदि को और ‘धरा’ का अर्थ होता है— धारण करनेवाली। अतः धरती का वसुन्धरा नाम सार्थक है।

उत्तर: (ख) लेखक पृथ्वी और आकाश के अन्तराल में जो कुछ सामग्री भरी है, पृथ्वी के चारों ओर फैले गम्भीर सागर में जो जलचर एवं रत्नों की राशियाँ हैं, उन सबके प्रति राष्ट्र के नवयुवकों में जिज्ञासा जगाना चाहता है।

उत्तर: (ग) राष्ट्र का नया प्रारूप खड़ा करने के लिए विज्ञान और उद्यम दो मूलभूत बातों की आवश्यकता है।

उत्तर: (घ) माता अपने बच्चों का प्रत्येक स्थिति में भली-भाँति श्रेष्ठ लालन-पालन करती है, उनको सजाती-सँवारती है। इसी प्रकार पृथ्वी हमारा हर स्थिति में लालन-पालन करती है। इसका अन्न-जल ग्रहण कर हम बड़े हुए हैं, इसकी वायु में साँस लेते हैं, इसके कोख में सुरक्षित अनन्त निधियों एवं रत्नों से हम स्वयं को सजाते-सँवारते हैं और स्वयं को समृद्ध बनाते हैं। इसीलिए पृथ्वी हमारी माता है।

उत्तर: (ङ) शीर्षक– ‘राष्ट्र का स्वरूप’, ‘धरती माता’, ‘वसुन्धरा’।

One thought on “राष्ट्र का स्वरूप | कक्षा-10 साहित्यिक गद्यांश (450 से 700 शब्द)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

downlaod app