माता अपने सब पुत्रों को समान भाव से चाहती है। इसी प्रकार पृथिवी पर बसनेवाले जन बराबर हैं। उनमें ऊँच और नीच का भाव नहीं है। जो मातृभूमि के उदय के साथ जुड़ा हुआ है वह समान अधिकार का भागी है। पृथिवी पर निवास करनेवाले जनों का विस्तार अनन्त है।
नगर और जनपद, पुर और गाँव, जंगल और पर्वत नाना प्रकार के जनों से भरे हुए हैं। ये जन अनेक प्रकार की भाषाएँ बोलनेवाले और अनेक धर्मों को माननेवाले हैं, फिर भी ये मातृभूमि के पुत्र हैं और इस प्रकार उनका सौहार्द भाव अखण्ड है।
सभ्यता और रहन-सहन की दृष्टि से जन एक – दूसरे से आगे-पीछे हो सकते हैं, किन्तु इस कारण से मातृभूमि के साथ उनका जो सम्बन्ध है, उसमें कोई भेदभाव उत्पन्न नहीं हो सकता। पृथिवी के विशाल प्रांगण में सब जातियों के लिए समान क्षेत्र है। समन्वय के मार्ग से भरपूर प्रगति और उन्नति करने का सबको एक जैसा अधिकार है। किसी जन को पीछे छोड़कर राष्ट्र आगे नहीं बढ़ सकता।
अतएव राष्ट्र के प्रत्येक अंग की सुध हमें लेनी होगी। राष्ट्र के शरीर के एक भाग में यदि अन्धकार और निर्बलता का निवास है तो समस्त राष्ट्र का स्वास्थ्य उतने अंश में असमर्थ रहेगा। इस प्रकार समग्र राष्ट्र को जागरण और प्रगति की एक जैसी उदार भावना से संचालित होना चाहिए। तादात्म्य प्राप्त किया है। से भर देती हैं तब जन का प्रवाह अनन्त होता है।
सहस्त्रों वर्षों से भूमि के साथ राष्ट्रीय जन ने जब तक सूर्य की रश्मियाँ नित्य प्रातः काल भुवन को तक राष्ट्रीय जन का जीवन भी अमर है। इतिहास अमृत के अनेक उतार – चढ़ाव पार करने के बाद भी राष्ट्र-निवासी जन नई उठती लहरों से आगे बढ़ने के लिए अजर-अमर हैं। जन का सततवाही जीवन नदी के प्रवाह की तरह है, जिसमें कर्म और श्रम के द्वारा उत्थान के अनेक घातों का निर्माण करना होता है।
प्रश्न: (क) पृथिवी पर बसनेवाले समस्त जनों की तुलना किससे की गई है?
प्रश्न: (ख) ‘मातृभूमि के पुत्र’ से लेखक का क्या आशय है?
प्रश्न: (ग) ‘जन का प्रवाह अनन्त होता है’ वाक्य से आप क्या समझते हैं?
प्रश्न: (घ) प्रांगण, रश्मियाँ, भुवन, सततवाही शब्दों के अर्थ लिखिए।
प्रश्न: (ङ) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
उत्तर: (क) पृथिवी पर बसनेवाले समस्त जनों की तुलना माता के पुत्रों से की गई है, जो कि सभी को एकसमान भाव से चाहती है।
उत्तर: (ख) ‘मातृभूमि के पुत्र’ से लेखक का आशय देश के विभिन्न भाषाभाषी और विविध धर्मों को माननेवाले उन लोगों से है, जो उसके प्रति सम्मान और समर्पण की भावना रखते हैं।
उत्तर: (ग) ‘जन का प्रवाह अनन्त होता है’ का आशय यह है कि दिन-प्रतिदिन नगरों, गाँवों, जंगलों आदि में मनुष्यों का घनत्व बढ़ता ही जा रहा है, यह कभी कम नहीं होता और न ही भविष्य में कम होगा। इसीलिए जन के इस प्रवाह को अनन्त (जिसका कोई अन्त न हो) कहा गया है।
उत्तर: (घ) शब्दों के अर्थ- प्रांगण = आँगन; रश्मियाँ = प्रकाश की किरणें; भुवन = संसार; सततवाही = निरन्तर बहनेवाली।
उत्तर: (ङ) शीर्षक – ‘राष्ट्र निर्माण में जन का योगदान’।