
मेरी अविस्मरणीय रेल यात्रा पर निबंध(essay on my unforgettable train journey)
प्रस्तावना: पहली यात्रा का उत्साह-
बात सन् 2008 ई० की है, फिर भी है मेरे स्मृति-पटल पर बिल्कुल स्पष्ट। कारण एक नहीं दो-दो थे। एक तो मुझे अपने विद्यालय की ओर से चण्डीगढ़ में आयोजित हो रही अन्तर-विद्यालयी शरीर-सौष्ठव प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व करना था और दूसरे, मैं पहली बार अकेले यात्रा करने जा रहा था, वह भी रेलगाड़ी में। पहली बार अकेले यात्रा करने के रोमांच और प्रतियोगिता में प्रथम आने के उत्साह के कारण वह रेल-यात्रा मेरे जीवन का एक अविस्मरणीय अनुभव बन गई है।
स्टेशन का दृश्य –
हमारे पी० टी० अध्यापक मुझे स्टेशन पर टिकट देने आए।वे टिकट पहले ही खरीद चुके थे। ट्रेन 12:30 पर मैं स्टेशन पर 12:05 पर ही पहुँच गया था। आखिर रेलगाड़ी में यात्रा की उतावली जो थी। गाड़ी आने में अभी समय था। शिक्षक महोदय मुझे रेल-यात्रा में सुरक्षा सम्बन्धी और प्रतियोगिता सम्बन्धी आवश्यक हिदायतें लगातार दे रहे थे।
वे किसी भी प्रकार से सन्तुष्ट नहीं हो पा रहे थे कि मैं अकेले यात्रा कर सकूँगा। मैंने उन्हें भरोसा दिलाया कि उनका आशीर्वाद मेरी रक्षा करेगा। तब वे मेरे लिए पानी की बोतल लेने चले गए। इस बीच मैंने स्टेशन का नजारा जी भरकर किया। साफ-सुथरा प्लेटफॉर्म और चारों ओर भीड़-ही-भीड़। मैंने आरक्षण सूची से अपनी सीट की स्थिति पता कर ली। तभी गाड़ी आ गई। मैंने शिक्षक महोदय को किसी बुजुर्ग से बातें करते देखा तो मालूम पड़ा कि वे मेरे ही डिब्बे में सहयात्री थे।
शिक्षक महोदय ने मुझे गाड़ी में चढ़ाया और शुभकामनाएँ दीं। मेरी सीट खिड़की की ओर थी, मैं उस पर बैठ गया। मैंने एक बार फिर प्लेटफॉर्म पर नजर दौड़ाई तो देखा कि कोई कुली के साथ भागता-सा चल रहा था तो कोई अपना थी, परन्तु बैग लादे औरों को धक्के मारता, रास्ता बनाता भाग रहा था। कोई खाने का सामान लिए बोगी की ओर भाग रहा था। आखिर में गाड़ी ने सीटी दी और धीरे – धीरे सरकने लगी। मेरी आँखों में उल्लास था और मन में कहीं थोड़ा-सा भय भी।
रेलगाड़ी के बाहर का दृश्य –
अब रेलगाड़ी ने गति पकड़ ली। मेरा ध्यान बाहरी दृश्यों की ओर खिंच गया। किसी चलचित्र की तरह विविध प्रकार के दृश्य लगातार एक के बाद एक आते जा रहे थे। समझ में यह नहीं आ रहा था कि गाड़ी भाग रही है या ये दृश्य। गाड़ी पटरी पर सरपट दौड़ रही थी। काँटे और पटरी बदलती ट्रेन कैसे आड़ी – तिरछी होकर भी रास्ता बनाती भाग रही थी, इस पर मैं अचम्भित-सा था।
इन्हें भी पढ़ें:- पर्यावरण (Environment) संरक्षण की विधियां क्या है?
दूर तक फैले मैदान और बीच-बीच में दिख जानेवाले छोटे-छोटे मकान एक अजीब-सा सौन्दर्य रच रहे थे। मैं इसी में खोया रहता कि अचानक रेलगाड़ी रुक गई। पता चला कि किसी चेन पुलिंग की है। गार्ड ने उतरकर मौके का जायजा लिया। इस बीच डिब्बे में तरह-तरह की बातों में लोग अपना भय और शंका व्यक्त कर रहे थे। थोड़ी देर में गाड़ी बढ़ी और बीस मिनट बाद ही सब्जी मण्डी स्टेशन पर आकर खड़ी हो गई । लोगों के चढ़ने-उतरने का सिलसिला फिर चला।
चहल-पहल –
सब्जी मण्डी से गाड़ी चली कि फेरीवालों की आवाजें कानों को बेधने लगीं। जूता – पॉलिश, खिलौने, नमकीन, कोल्ड ड्रिंक, चाय, पानी की बोतल, पुस्तकें और समोसे -पकौड़े- क्या नहीं था, जो गाड़ी में फेरीवालों की बदौलत उपलब्ध न हो। एक लड़के से मैंने एक फूटी खरीदी तो वह टूटे पैसे न होने का बहाना बनाकर पूरा नोट ही ले गया। मैंने सोचा कि मैं ठगा गया परन्तु जब उसने आकर पैसे लौटाए तो मुझे पता लगा कि वह फ्रूटी बेचते हुए भीड़ में आगे जा रही थी। निकल गया था और मुझे ढूंढ नहीं पा रहा था। ट्रेन अपनी गति से भागी जा रही थी।
उपसंहार: यात्रा का अन्त –
मैंने अम्बाला में माँ का दिया खाना निकाला। मैं खा ही रहा था कि वे बुजुर्ग मेरे करीब आकर बोले कि बेटा, बस बीसेक मिनट में चण्डीगढ़ आ जाएगा। तुम तैयार हो जाओ। मैंने जल्दी – जल्दी खाना निपटाया, जूते कसे और बैग बन्द करके पीठ पर लादा। स्टेशन आने से पूर्व ही मैं डिब्बे के गेट पर जा पहुंचा। वे बुजुर्ग मुझे देखकर मुसकराए और मुझे ‘प्रथम आओ’ कहकर शुभकामनाएँ दीं। प्रतियोगिता में मैं प्रथम आया भी। मैं आज भी न उन्हें भुला पाया हूँ और न उस रेल-यात्रा को।
Read More: लोकतंत्र (Democracy) की कमियां क्या है?
प्रश्न ओर अत्तर (FAQ)
पहली यात्रा का उत्साह बताइए।
मेरे स्मृति-पटल पर बिल्कुल स्पष्ट। कारण एक नहीं दो-दो थे। एक तो मुझे अपने विद्यालय की ओर से चण्डीगढ़ में आयोजित हो रही अन्तर-विद्यालयी शरीर-सौष्ठव प्रतियोगिता में प्रतिनिधित्व करना था और दूसरे, मैं पहली बार अकेले यात्रा करने जा रहा था, वह भी रेलगाड़ी में।
रेलगाड़ी के बाहर का दृश्य कैसे होता है।
अब रेलगाड़ी ने गति पकड़ ली। मेरा ध्यान बाहरी दृश्यों की ओर खिंच गया। किसी चलचित्र की तरह विविध प्रकार के दृश्य लगातार एक के बाद एक आते जा रहे थे। समझ में यह नहीं आ रहा था कि गाड़ी भाग रही है या ये दृश्य।