यह ग्रन्थि अग्र मस्तिष्क के पश्च अधर तल से लगी होती है। इससे स्रावित अधिकांश हॉमोन्स अन्य अन्तःस्रावी ग्रन्थियों के स्त्रावण को नियन्त्रित करते हैं, इस कारण इसे मास्टर ग्रन्थि (Master gland) कहते हैं।
पीयूष ग्रन्थि क्या है? | Piyush granthi kya hai
पीयूष ग्रन्थि शरीर की जरूरतों को महसूस करता है और पूरे शरीर में विभिन्न अंगों और ग्रंथियों को उनके कार्य को विनियमित करने और एक उपयुक्त वातावरण बनाए रखने के लिए संकेत भेजता है। यह रक्तप्रवाह में विभिन्न प्रकार के हार्मोन को स्रावित करता है जो पीयूष ग्रंथि से दूर की कोशिकाओं तक सूचना प्रसारित करने, उनकी गतिविधि को विनियमित करने के लिए संदेशवाहक के रूप में कार्य करता है।
पीयूष ग्रंथि के भाग | Piyush granthi ke bhag
अग्र पिण्ड तथा उससे स्रावित हॉर्मोन-
(i) वृद्धि हॉर्मोन (Growth Hormone= GH)-
यह शरीर की सामान्य वृद्धि के लिए आवश्यक हॉमोन है। यह प्रोटीन संश्लेषण को बढ़ावा देता है और ऊतकों के क्षय को रोकता है।
18 वर्ष की आयु से पूर्व इसके अति स्रावण से शरीर आनुपातिक रूप से भीमकाय (giant) हो जाता है तथा इसके अल्प-स्त्रावण से व्यक्ति बौना (dwarf or midget) रह जाता है। वृद्धि पूर्ण होने के पश्चात् वृद्धि हॉमोंन के अतिस्त्रावण से शरीर बेडौल, भीमकाय तथा कुरूप हो जाता है।
इस रोग को अग्राति (acromegaly) कहते हैं। कभीकभी कशेरुक दण्ड के झुक जाने से कुबड़ापन (hunchback) भी हो जाता है और वयस्क अवस्था में हॉमॉन की कमी से पीयूष मिक्सीडीमा (myxoedema) रोग हो जाता है। इसमें समय से पूर्व बुढ़ापे के लक्षण प्रदर्शित होने लगते हैं।
(ii) थाइरोट्रॉपिन या थाइरॉइड प्रेरक हॉर्मोन (Thyrotropin or Thyroid Stimulating Hormone= TSH) –
थाइरॉइड ग्रन्थि (thyroid gland) को प्रेरित करता है।
(iii) ल्यूटीनाइजिंग हॉर्मोन (Luteinizing Hormone = LH) –
यह अण्डाशय में पुटिका के फटने के बाद बने कॉर्पस ल्यूटियम (corpus luteum) की क्रिया पर नियन्त्रण रखता है। पुरुषों में, यह हॉमोन वृषणों में अन्तराली कोशिकाओं (interstitial cells) को हॉर्मोन स्रावण के लिए प्रेरित करता है।
(iv) प्रोलैक्टिन या मैमोट्रॉपिक हॉर्मोन (Prolactin or Mammotropic Hormone = PLH or MTH)
यह गर्भकाल में स्तनों की वृद्धि तथा दुग्ध स्रावण को प्रेरित करता है।
मध्य पिण्ड तथा उससे स्रावित हॉर्मोन-
इस भाग से इण्टरमेडीन (intermedine) हॉर्मोन निकलता है। मनुष्य में मध्य पिण्ड अविकसित होता है। उभयचर तथा सरीसृपों में त्वचा के रंग परिवर्तन को नियन्त्रित करता है।
पश्च पिण्ड तथा इससे स्रावित हॉर्मोन्स –
(i) वैसोप्रेसिन या प्रतिमूत्रक हॉर्मोनस (Vasopressin or Antidiuretic Hormone = ADH)
यह हॉमोन, वृक्क नलिकाओं (uriniferous tubules) में जल अवशोषण क्षमता को बढ़ाता है। ADH की कमी से मूत्र में जल की मात्रा बहुत अधिक बढ़ जाती है, इस रोग को उदकमेह (diabetes) insipidus) कहते हैं।
(ii) ऑक्सीटोसिन या पिटोसिन (Oxytocin or Pitocin)-
बच्चे के जन्म से पूर्व गर्भाशय पेशियों में संकुचन उत्पन्न कर प्रसव पीड़ा उत्पन्न करता है। यह दुग्ध स्रावित होने को भी प्रभावित करता है।