एक पारिस्थितिकी तंत्र ( Ecosystem) एक भौगोलिक क्षेत्र है जहां पौधे, जानवर और अन्य जीव, साथ ही साथ मौसम और परिदृश्य, जीवन का बुलबुला बनाने के लिए मिलकर काम करते हैं। पारिस्थितिक तंत्र में जैविक या जीवित, भाग, साथ ही अजैविक कारक (abiotic factors), या निर्जीव भाग होते हैं। जैविक कारकों में पौधे, जानवर और अन्य जीव शामिल हैं।
पारिस्थितिकी तंत्र किसे कहते हैं? | Paristhitiki tantra kya hai
सभी जीव अपने वातावरण के साथ एक विशिष्ट तंत्र का निर्माण करते हैं, जिसे पारिस्थितिकी तंत्र कहते हैं। जीवों और वातावरण के इस संबंध को पारिस्थितिकी कहा जाता है।

पारिस्थितिकी तंत्र, पारिस्थितिकी की संरचनात्मक और कार्यात्मक इकाई (functional unit) है जहां जीवित जीव एक दूसरे और आसपास के पर्यावरण के साथ बातचीत करते हैं। दूसरे शब्दों में, एक पारिस्थितिकी तंत्र (Ecosystem) जीवों और उनके पर्यावरण के बीच बातचीत की एक श्रृंखला है। “पारिस्थितिकी तंत्र” शब्द पहली बार 1935 में एक अंग्रेजी वनस्पतिशास्त्री ए.जी.टान्सले द्वारा गढ़ा गया था।
एक पारिस्थितिकी तंत्र में एक निश्चित क्षेत्र में सभी जीवित चीजें (पौधे, जानवर और जीव) शामिल हैं, जो एक दूसरे के साथ बातचीत करते हैं, और उनके निर्जीव वातावरण जैसे की मौसम, पृथ्वी, सूर्य, मिट्टी, जलवायु, वातावरण (weather, earth, sun, soil, climate, atmosphere) के साथ भी।
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पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना | Paristhitiki tantra ki sanrachna
किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र के दो प्रमुख पहलू , संरचना एवं कार्य होते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना से तात्पर्य उसके-
(i) जैविक समुदाय का गठन जैसे-इसमें पाई जाने वाली विभिन्न पादप तथा जन्तु जातियां, उनकी संख्या वितरण, जीव भार (Biomass) इत्यादि (ii) अजैविक पदार्थों की मात्रा एवं वितरण जैसे – पोषक पदार्थ (Nutrients), जल आदि तथा (iii) जलवायु सम्बन्धी कारक जैसे-तापक्रम, आर्द्रता, प्रकाश आदि के प्रसार से है।
पारिस्थितिकी तंत्र के कार्य से तात्पर्य उसके जैविक एवं अजैविक घटकों की अन्योन्याश्रिता, ऊर्जा प्रवाह व पोषक पदार्थों के परिसंचरण से है।
किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र में चाहे वह स्थलीय, जलीय या कृत्रिम प्रकार का हो, उसमें निम्न, दो घटक होते हैं-
- जैविक घटक (Biotic Components)
- अजैविक घटक (Abiotic Components)
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जैविक घटक | jaivik ghatak kya hote hain
इस घटक में सभी जीवधारियों को सम्मिलित किया जाता है। पारिस्थितिकी तंत्र में जन्तुओं एवं पौधों के समुदाय साथ-साथ रहते हैं। ये समुदाय परस्पर किसी न किसी प्रकार से सम्बन्धित रहते हैं। लिण्डमैन (Lindeman 1942) ने इनके सम्बन्ध में पोषण गतिकी धारणा (Trophic Kinetic Concept) व्यक्त की थी जिसके अनुसार विभिन्न प्रकार के जीवों के परस्पर सम्बन्धों का आधार भोजन ही है। वास्तव में जैविक घटक किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र की दोष संरचना को दर्शाते हैं जहां पर जीवों को उनके पोषण सम्बन्धों के आधार पर विभेदित कर सकते हैं। अतः पोषण (Nutrition) की दृष्टि से जैविक घटक (biological component) को दो भागों में बाँटा है-
- स्वपोषी या उत्पादक (Autotrophs or Producers)
- विषमपोषी या उपभोक्ता (Heterotrophs or Consumers)
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स्वपोषी या उत्पादक | Swaposhi ya utpadak
पारिस्थितिकी तंत्र के वे सभी सजीव सदस्य जो प्रकाश संश्लेषण अथवा जीवाणुक प्रकाश संश्लेषण व रसायन संश्लेषण क्रिया द्वारा अपने पोषण हेतु स्वयं कार्बनिक भोजन का निर्माण करने में सक्षम होते हैं, स्वपोषी (Autotrophs) कहलाते हैं। भोजन निर्माण की यह क्षमता क्लोरोफिल युक्त हरे पौधों, प्रकाश संश्लेषी व रसायन संश्लेषी जीवाणुओं में होती है। स्वपोषी सदस्यों को उत्पादक (Producers) भी कहते हैं।
क्योंकि ये सूर्य की प्रकाश ऊर्जा को रासायनिक स्थितिज ऊर्जा (Chemical Potential Energy) में परिवर्तित कर कार्बनिक पदार्थों के रूप में संचित करते हैं। ये पदार्थ विषमपोषी प्रकार के जीवों हेतु प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से भोजन के रूप में काम आते हैं। वास्तविक रूप में समस्त हरे पौधे कार्बोहाइड्रेट्स का निर्माण करते हैं न कि ऊर्जा का, ये तो मात्र ऊर्जा को एक रूप से दूसरे रूप में परिवर्तित करते हैं।अतः ई. जे. कोरोमेण्डी (E.J. Koromendy) ने इन्हें उत्पादक के स्थान पर परिवर्तक (Converters) की उपमा दी है।
विषमपोषी या उपभोक्ता | Vishamposhi ya upbhokta
पारिस्थितिकी तंत्र के वे सजीव जिनमें स्वयं कार्बनिक भोजन के उत्पादन की क्षमता नहीं होती तथा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उत्पादकों द्वारा निर्मित भोजन पर निर्भर रहते हैं, विषमपोषी या उपभोंवता कहलाते हैं। ये अपने पोषण के लिए उत्पादकों द्वारा संश्लेषित भोजन का उपयोग करते हैं। उपभोक्ता जीवों को पुनः दो श्रेणियों में विभक्त किया है।
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वृहद् या गुरु उपभोक्ता | Guru upbhokta
वे जीव जो कार्बनिक भोजन ग्रहण कर शरीर के भीतर उसका पाचन करते हैं तथा इसे सरल कार्बनिक पदार्थों में बदलते हैं, वृहद् उपभोक्ता, भक्षपोषी (Phagotrophs) या जीव-भक्षी (Biophages) कहलाते हैं। जीवित पौधे एवं जन्तु इनका भोजन होते हैं। ये शाकाहारी पादप खाने वाले (Herbivores), मांसाहारी (Carnivores) , या सर्वाहारी (Omnivores) हो सकते हैं।
लघु या सूक्ष्म उपभोक्ता या अपघटक जीव | Apghatan jiv kya hai
इस श्रेणी के जीव विभिन्न प्रकार के कार्बनिक पदार्थों को उनके निर्माणकारी अवयवों में विघटित कर देते हैं। ये जीव उत्पादकों तथा विभिन्न श्रेणियों के उपभोक्ताओं के मृत शरीरों पर पाचक विकरों (Digestive Enzymes) का स्त्रवण कर उनके जटिल कार्बनिक पदार्थों को सरल कार्बनिक या अकार्बनिक पदार्थों में परिवर्तित करते हैं। सरल कार्बनिक पदार्थों को ये भोजन के रूप में अवशोषित करते हैं।
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प्रश्न ओर अत्तर (FAQ)
जैविक घटक को दो भागों में विभक्त करें।
1) स्वपोषी या उत्पादक (Autotrophs or Producers)
2) विषमपोषी या उपभोक्ता (Heterotrophs or Consumers)
पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना बताइए।
किसी भी पारिस्थितिकी तंत्र के दो प्रमुख पहलू , संरचना एवं कार्य होते हैं। पारिस्थितिकी तंत्र की संरचना से तात्पर्य उसके- जैविक समुदाय का गठन जैसे-इसमें पाई जाने वाली विभिन्न पादप तथा जन्तु जातियां, उनकी संख्या वितरण, जीव भार (Biomass) इत्यादि