Hubstd.in

Big Study Platform

No ratings yet.

परागण में अजैविक संस्थाएँ तथा जैविक संस्थाएँ क्या हैं ?

नमस्कार दोस्तों उम्मीद करता हूँ की आप सब स्वस्थ होंगे। आज के इस लेख में परागण की जैविक तथा अजैविक संस्थाओं के बारे में बताएंगे, पिछले लेख में भी परागण के बारे में गहन चर्चा की गयी थी तो एक बार ज़रूर चेक करें। तो चलिए शुरू करते हैं।

अजैविक संस्थाएँ (Abiotic agencies)

परपरागण विभिन्न संस्थाओं (agencies) की सहायता से होता है।

वायु परागण (Anemophily): परागण वायु द्वारा होता है। इस प्रकार के पुष्पों में परागकण असंख्य बनते हैं क्योंकि ये आवश्यक नहीं है कि वायु के तेज झोंके से ये परागकण अपने सही पुष्प तक पहुँच सकें इस क्रिया में लाखों परागकण बेकार हो जाते हैं। अनुमान है कि मक्का में 18,500,000 परागकण बनते हैं।

वायु परागित परागकण छोटे होते हैं। ये हल्के, चिकने तथा सूखे होते हैं ताकि दूर तक वायु के साथ जा सकें। एक झोंके में लगभग 1300 km तक ये परागकण जा सकते हैं। वायु परागित पादपों के नर पुष्प इस प्रकार से व्यवस्थित होते हैं कि हल्की हवा से भी परागकण अलग हो सके तथा मादा पुष्प का वर्तिकाग्र पंख समान अथवा बाहर की ओर निकला हुआ होना चाहिए जिससे वे हवा में उपस्थित परागकण को लपक सके।

वायु परागित पुष्पों में बीजाण्ड (ovules) की संख्या भी कम होती है। सामान्यतः वायु परागित पुष्पों में नर पुष्प अधिक तथा गुच्छों में मिलते हैं तथा मादा पुष्प कम व पाश्र्व भाग में स्थित होते हैं (मक्का)।

वायु परागण (Anemophily)
वायु परागण (Anemophily)

परागकोष मुक्तदोली (versatile) होते हैं। जिससे वे हवा के झोंके से जब हिलते हैं तब उनसे परागकण झड़ कर लम्बी वर्तिकाग्र पर गिर जाते हैं। क्वरकस (Quercus) में पूर्ण वर्तिकाग्र सतह पर परागकणों को ग्रहण कर सकते हैं।

मक्का के वर्तिका व वर्तिकाग्र आवृतबीजीयों में सबसे लम्बे होते हैं। पहाड़ों पर सल्फर वर्षा (Sulphur rains) की परिघटना अनेकों छोटे पीले पाउडर समान परागकणों के कारण होती है जो चीड़ (Pine) के वृक्षों से लदे वनों में वायु परागण के कारण होता है।

जल परागण (Hydrophily): जल परागण केवल जलीय पौधों में मिलता है। परागण का कारक जल है। यह दो प्रकार से होता है :

  1. हिपहाइड्रोफिली (Hyphydrophily): परागण की क्रिया जल के भीतर होती है जैसे- सिरेटोफिल्म (Ceratophyllum) में। जूस्टेरा (Zostera) में परागकण सूजाकर (needle like), 250μ लम्बे होते हैं। वर्तिकाग्र भी लम्बा व खुला होता है। परागकण पानी पर तैरते हैं तथा वर्तिकाग्र तक पहुँचकर परागण करते हैं। परागकण जैसे ही वर्तिकाग्र तक पहुँचते हैं वर्तिकाग्र कुण्डलित होकर इसके चारों ओर लिपट जाता है।
  2. इपहाइड्रोफिली (Ephydrophily): परागण जल की सतह पर होता है जैसे— हाइड्रिला (Hydrilla), वेलीसनेरिया (Vallisneria) आदि में। पौधे एकलिंगी व जल निमग्न पादप है। इसमें पुष्प जल के अन्दर ही बनते हैं परन्तु विकसित होते ही नर हैं पुष्प पौधे से अलग होकर सतह पर आ जाते हैं। मादा पुष्प के विकसित होने पर वृन्त लम्बा हो जाता है और सतह पर पहुँच जाता है। तैरते हुए नर पुष्पों से परागण की क्रिया जल की सतह पर होती है। कुछ जलोद्भिद् में कीट परागण जैसे—निम्फिया (Nymphaea) में तथा वायु परागण भी पाया जाता है जैसे— पोटेमोजिटोन (Potamogeton) आदि।
इपहाइड्रोफिली
इपहाइड्रोफिली

जैविक संस्थाएँ (Biotic agencis )

जैविक संस्थाओं में जीवित कारक आते हैं जैसे कीट, पक्षी, जन्तु आदि। यह निम्न प्रकार से होता है :

कीट परागण (Entomophily): विभिन्न प्रकार के कीट जैसे बीटल, ततैया (Wasp), तितली (butterfly), बिना उड़ने वाला कीट (moth), आदि कीट परागण के लिए महत्वपूर्ण हैं। कुछ कीट दिन में खुलने वाले पुष्पों पर जाते हैं जैसे तितली, ततैया, मक्खी आदि परन्तु अन्य कीट रात में खुलने वाले पुष्पों पर जाते है जैसे मॉथ।

लगभग 80% कीट परागण मक्खियों अथवा मधुमक्खियों द्वारा होता है। कीट परागित पुष्प चमकीले, रंगीन, अथवा तेज गन्ध वाले तथा मकरन्द युक्त होते हैं।

सामान्यतः कीट मकरन्द (भोजन) के लिए पुष्प पर जाते हैं और अनजाने में ही परागकण इनके पैरों अथवा पंखों पर चिपक जाते हैं और दूसरे पुष्प पर जाने से परागण की क्रिया हो जाती है। यह एक प्रकार से सहजीवन की प्रक्रिया है।

कुछ पादप तो केवल विशेष प्रकार के कीट द्वारा ही परागित हो सकते हैं अन्यथा परागण सम्भव नहीं होता है। पुष्प की बनावट का कीट परागण से सीधा सम्बन्ध साल्विया (Salvia) में देखा जा सकता है इसका पुष्प द्विओष्ठी (bilipped) होता है तथा नीचे का भाग एक प्लेटफार्म देता है जिस पर कीट बैठ कर मकरन्द ले सके।

परागकोष के दो भाग होते हैं एक भाग बन्ध्य (stinle) तथा दूसरा जननक्षम (fertile)। योजी (connective) लम्बा होता है जो दोनों भागों को अलग करता है। जब कीट पुष्प पर बैठता है तो बन्ध्य भाग पर जोर लगता है और ऊपर का जनन भाग परागकोष नीचे आ जाता है।

ऐसा लीवर विधि (lever mechanism) के कारण से होता है जिससे परागण कीट के पंखों पर झड़ जाते हैं। जब यह कीट दूसरे पुष्प पर जाते हैं तब वर्तिकाग्र आगे झुक जाता है और पंख पर चिपके परागण वर्तिकाग्र पर पहुँच जाते हैं।

कुछ पुष्पों, जैसे बत्तख बेल (Aristolochia) में पुष्प की बनावट इस प्रकार की होती है कि इसमें एक लम्बी गर्दन मिलती है जिसमें चिपचिपा पदार्थ होता है तथा नीचे का भाग फूला होता है जहाँ पर नर व मादा जननांग मिलते हैं।

छोटी मक्खियाँ इस गर्दन से फिसल कर नीचे आ जाती है तथा बाहर नहीं निकल पाती हैं। इसी क्रिया में परागण का कार्य सम्पन्न कर देती हैं।

कीट परागण (Entomophily)
कीट परागण (Entomophily)

यक्का (Yucca) में विशेष प्रकार के कीट प्रोनुबा यक्कासिला (Promuba yuccacela) के द्वारा ही कीट परागण होता है। एकत्र किसी अन्य कीट द्वारा परागण सम्भव नहीं है इसी प्रकार कीट प्रोनुबा का जीवन चक्र बिना यक्का के पुष्प के सम्पन्न नहीं होता है।

यक्का का पुष्प सफेद तथा रात्रिपुष्प है। कीट रात में पुष्प में घुसता है तथा परागकण अपने सिर के नीचे गेंद के रूप में करता रहता है। जब यह कार्य पूर्ण हो जाता है तो यह अपने अण्डे पुष्प के अण्डाशय में देता है। इस प्रकार यह एक विशेष सहजीवन दर्शाता है।

धीरे-धीरे यह कीट वर्तिकाग्र तक पहुँचकर परागकणों को छोड़ देता है और परागण हो जाता है। कीट के लारवा कुछ अविकसित बीजों (young seeds) को खा लेते हैं। जिन क्षेत्रों में प्रोनुबा नहीं मिलता है वहाँ यक्का में बीज निर्माण नहीं मिलता है।

आर्किड ओफीरिस स्पेकुलम (Ophyrys speculum) में विशेष स्थिति मिलती है। इसमें परागण कोल्पा ओरिया (Colpa aurea) नामक रोमिल ततैया (hairy wasp) द्वारा होता है। इसमें मिमिक्री (mimicry) का प्रदर्शन देखने को मिलता है।

ओफाइरिस का पुष्प देखने में मादा कोल्पा के समान तथा वैसी ही गन्ध वाला होता है। नर कोल्पा मादा कोल्पा के धोखे में कूट संगमन (pseudo copulation) की क्रिया में परागण करता है। इसमें केवल एक पक्ष (पुष्प) लाभान्वित होता है। कुछ अन्य विशेष कीट परागित पादप निम्न हैं।

  1. रेफ्लीसिया (Rafflesia) में सड़े मांस की दुर्गन्ध की ओर आकृष्ट होकर बघई मक्खी (fly) द्वारा।
  2. फाइकस (Ficus) का परागण ब्लास्टोफेगा ब्रासीलिएन्सिस (Blastphaga brasiliensis) तथा ब्लास्टोफेगा ग्रोसोरम (B. grossorum) द्वारा होता है।
  3. हरमीनियम एल्पाइनिम (Herminium alpinum) एक आर्किड है जिसका परागण केवल इक्नियूमोन मक्खी (Ichneumon fly) द्वारा होता है।
  4. फ्लाक्स (Phlox) में परागण तितली द्वारा होता है।
  5. लेवेन्डूला (Lavendula) में परागण माथ द्वारा होता है।

पक्षी परागण (Ornithophily): कुछ ऊष्ण प्रदेशों (tropical parts) में पक्षी परागण अधिक मिलता है। ये पक्षी शहद खाते हैं जैसे हमिंग बर्ड (humming bird), सन बर्ड (sun bird) आदि। ये पक्षी बहुत छोटे होते हैं।

पक्षी परागित पुष्प रंगीन, अधिक मकरन्द वाले तथा अधिक परागकण युक्त होते हैं। इनमें गन्ध होना आवश्यक नहीं हैं। सामान्यतः पुंकेसर व वर्तिका बाहर की ओर निकले रहते हैं। ये पुष्प लटके हुए होते हैं।

पक्षी फूल पर घूम-घूम कर ही रस चूस सकते हैं। उन्हें बैठने के लिए स्थान की आवश्यकता नहीं होती है। पक्षी परागित पादप हैं— केलिस्टेमोन, निकोशियाना ग्लाउका काइगेलिया आदि। एगेव में परागण हमिंग बर्ड द्वारा होता है तथा स्टर्लिट्जिया रेगिनी (Sterlitzia reginae) से सनबर्ड द्वारा। कुछ कुछ अन्य पक्षी परागित पादप हैं— प्रोटिया, म्यूसा, रेवेनेला, इरिथ्राइना, एलोइ आदि

घोंघा परागण (Malacophily): एस्पिडिस्ट्रा लूरिडा, क्राइसेन्थियम (Aspidistra lurida, Chrysanthemum) आदि में परगण घोघे द्वारा होता है। गुलदावदी (क्राइसेन्थिमम) में घोंघे के चलने से बनी श्लेष्मा द्वारा परागण होता हैं। घोंघा परागित पौधे सामान्यत: अधिक पानी में रहते हैं तथा उनके पुष्पों की बनावट कीट परागण नहीं होने देती है।

चींटी परागण (Mermecophily): कुछ पुष्प मकरन्द भरे तथा इतने पतले होते हैं कि उनमें चींटी के अतिरिक्त कुछ नहीं घुस पाता है। ऐसे पुष्पों में चींटी सहजीवी के रूप में रहती है। उसे पुष्पों से मकरन्द मिलता है तथा बदले में पुष्प में परागकण होता है; जैसे कदम्ब (Anthocephalus ) |

चमगादड़ द्वारा परागण (Chiropterophily): काइगेलिया (Kigelia), मेकुना जाइगेन्टिया (Macuna gigantea), बोहीनिया मेगालेन्ड्रा (Bauhinia megalandra) आदि में परागण चमगादड़ द्वारा होता है।

इस प्रकार के पुष्पों में गन्ध तीव्र होती है जो खट्टे दूध की, सड़े मांस आदि की विशेष प्रकार से मकरन्द के लिए लटक कर चमगादड़ पुष्प से रस लेता है तथा परागकण उस पर गिरते हैं वह फिर जब दूसरे पुष्प पर जाता है तब परागकण दूसरे पुष्प के वर्तिकाग्र पर चिपक जाते हैं इस प्रकार चमगादड़ परागण की क्रिया में सहायता करता है।

परागण किसमें होता है ?

आवृतबीजी तथा अनावृतबीजी में।

चींटी द्वारा परागण को क्या कहते हैं ?

मरमीकोफिली।

चमगादड़ द्वारा परागण क्या कहलाता है ?

किरोप्टेरोफिली।

घोंघे द्वारा परागण क्या कहलाता है ?

मेलोकोफिली।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

downlaod app