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परागण (POLLINATION) | स्वपरागण और परपरागण क्या है ?

नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में आपका हार्दिक स्वागत है। आज के इस लेख में हम आपको परागण के बारे में बताएँगे तो चलिए शुरू करते हैं।

परागकण का पुष्प के पंकेसर से वर्तिकाग्र तक पहुंचने की क्रिया को परागण कहते हैं (The transfer of pollangrain from anther to stigma of flower is called pollination) | सामान्यतः यह प्राकृतिक (natural) क्रिया है परन्तु यह प्रेरित (Induced) भी हो सकती है तब इसे संकरण (hybridization) कहते हैं।

प्राकृतिक परागण (natural pollination) की क्रिया दो प्रकार से होती है—

  1. स्व परागण (self pollination)
  2. पर परागण (cross pollination)

यदि एक पुष्प के परागकण उसी पौधे के किसी दूसरे पुष्प के वर्तिकाम तक पहुंचते हैं तो इस क्रिया को जीटोनोगेमी (Geitonogamy) कहते हैं। कुछ आनुवंशिक विज्ञ (geneticist) के अनुसार जीटोनोगेमी स्व परागण की ही एक विधि है क्योंकि पादप के सभी पुष्प आनुवंशिक रूप से समान होते हैं।

जब एक पादप के पुष्प के परागकण दूसरे पादप के पुष्प के वर्तिकाम पर पहुंचते हैं तो इस क्रिया को जीनोगमी (Xenogamy) कहते हैं।

स्वपरागण (Self pollination)

स्वपरागण की क्रिया केवल उभयलिंगी पुष्पों में ही सम्भव है। स्वपरागण की क्रिया निम्न कारणों से हो सकती है–

होमोगेमी (Homogamy): परागकणों व वर्तिकान के परिपक्वन का समय एक ही होना चाहिए। अर्थात् परागकोश से स्फुटन से मुक्त परागकण परिपक्व वर्तिकाम पर पहुँचते हैं जैसे-मिराबिलिस जालपा (Mirabilis jalapa), टेजिटस इन्डिका (Tagetes indica), विका रोसिया (Finca rosea), आर्जीमोन मेक्सिकाना (Argemone maxicana) आदि।

मिराबिलिस में पुतन्तु वर्तिका के चारों ओर कुण्डलित रहते हैं। आजमोन में परागकण झड़कर दल पर गिर जाते हैं जो वर्तिकाग्र के सम्पर्क में होते हैं जब पुष्प बन्द होता है। विन्का रोसिया में परागकोश दलपुंज नलिका के ऊपरी भाग में उपस्थित होते हैं जैसे ही वर्तिकाग्र उस स्थान तक पहुँचाता है परागकण उस पर आ जाते हैं।

क्लीस्टोगेमी (Cleistogamy): सामान्यतः परागकण के समय पुष्प खुले रहते हैं इन्हें चेस्मोगेमस पुष्प (chasmogamous flower) कहते हैं। कुछ पौधों में परागकण के समय पुष्प बन्द रहते हैं इन्हें अनुन्मील्य पुष्प अथवा क्लीस्टोगेमस पुष्प (Cleistogamous flower) कहते हैं।

उनमें परागकण पुष्प से बाहर नहीं निकल पाते हैं, वहाँ पर केवल स्व परागण की क्रिया होती है। कनकौवा (Commelina benghalensis) में दो प्रकार के पुष्प होते हैं। वायवीय नीले, बड़े, खुलने वाले कीट परागित पुष्प तथा भूमिगत राइजोम पर लगने वाले क्लीस्टोगेमस स्व परागित पुष्प।

कुछ पौधों में वातावरणीय स्थिति (अधिक ताप अथवा कम ताप पर) में चेसमोगेमस पुष्प क्लीस्टोगेमस पुष्प में परिवर्तित हो जाते हैं। कुछ रेतीले स्थानों (टिम्बकटू) में ऊँचाई पर स्थित पुष्प कीट परागित होते हैं परन्तु कम ऊँचाई पर स्थित पुष्प स्वपरागित होते हैं। इन्डीगोफेरा (Indigofera) की सामान्य जलवायु में उपस्थिति जाति में परागण मधुमक्खी द्वारा होता है जबकि रेगिस्तानी प्रजाति में स्वपरागण पाया जाता है।

पर परागण (Cross pollination)

सामान्यतः पुष्प में पुंकेसर व स्त्रीकेसर दोनों मिलते हैं। फिर भी कुछ कारकों के कारण स्व परागण सम्भव नहीं होता है।

स्व बन्ध्यता (Self sterility): (जैसे पिटूनिया एक्सीलेरिस में) यदि परागण हो भी जाएगा तो वर्तिका के मध्य तक पहुँच कर पराग नलिका समाप्त हो जाएगी अतः निषेचन नहीं होगा और स्वबन्ध्यता पाई जाती है।

डाइकोगमी (Dichogamy): कुछ पुष्पों में नर व मादा जनन अंगों के परिपक्वन का समय अलग-अलग होता है जिससे स्वपरागण सम्भव नहीं होता है; जैसे सगा तथा इम्पेटिन्स मे। यह पुंपूर्वी (protandry) अर्थात् इसमे परागकोश पहले परिपक्व होता है जैसे—मालवेसी व रुबिएसी कुल में; अथवा प्रोटोगाइनी (protogyny) अथवा वर्तिकाग्र का पहले परिपक्वन होना जैसे मेग्नोलिया (Magnolia) आदि में होता है।

हरकोगेमी (Herkogamy): जब पुष्प में वर्तिकाग्र लम्बी वर्तिका के कारण ऊँचाई पर होता है तथा पुतन्तु छोटे होने से परागकोष काफी नीचे रह जाता है स्व परागण सम्भव नहीं हो पाता है इसे हरकोगेमी कहते हैं।

जैसे ग्लोरिओसा जैसे तथा आइपोमिया आदि में। केलोट्रोपिस (Calotropis) तथा जूक्साइन (Zuxine) आदि में परागकण लिंकर पोलीनिया (pollinia) बनाते हैं। जिसमें स्फुटन नही होता है। सम्पूर्ण पोलीनिया का वितरण कीट के द्वारा ट्रांसलेटर विधि से होता है।

विषमवर्तिकी (Heterostyly): जब पुष्प में वर्तिका तथा पुंकेसर की लम्बाई अधिक मिश्र होती है स्व परागेण नहीं हो पाता है यदि पुतन्तु लम्बा हो तो परागकण काफी बड़े होते हैं तथा वर्तिकाग्र बहुत छोटा या पतला होता है आक्सेलिस तथा प्रिमरोस में त्रिवर्तिकी (tristyly) स्थति मिलती हैं।

विषमवर्तिकी (Heterostyly)
विषमवर्तिकी (Heterostyly)
त्रिवर्तिकी
त्रिवर्तिकी

प्रिमरोस (Primula vulgaris) मे पुष्प पिन आइड (Pin eyed) अर्थात् लम्बी वर्तिका तथा छोटे पुतन्तु वाले अथवा श्रम आइड (thrum eyed) अर्थात् छोटी वर्तिका व लम्बी पुतन्तु वाले हो सकते हैं।

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