नमस्कार दोस्तों आज मैं आपके लिए लेकर आया हूँ कि पराग स्त्रीकेसर अन्तर्क्रिया लैंगिक अनिषेच्यता क्या होता है? क्या इसकी प्रक्रिया है? तो चलिए शुरू करते हैं।
सामान्यतः वर्तिकाग्र द्वारा अनेकों परागकण ग्रहण किए जाते हैं परन्तु उनमें सभी अंकुरित होकर निषेचन की क्रिया में भाग नहीं लेते हैं। कभी-कभी दोनों सक्रिय युग्मक (नर व मादा) भी बीज निर्माण की क्रिया नहीं कर पाते हैं। इस परिघटना को लैंगिक अनिषेच्यता (sexual incompatibility) कहते हैं।
यह अन्तर्जातीय (interspecific) अर्थात् दो विभिन्न जाति के सदस्यों के मध्य अथवा अन्तर्जातीय या अन्त:जातीय (intraspecific) अर्थात् उसी जाति के सदस्यों के मध्य हो सकती है। अनिषेच्यता (incompatibility) तथा मुख्य कारक कार्यक (physiological) तथा जैव रासायनिक (biochemical) होता है।
स्वअनिषेच्यता (Self incompatibility)
इस क्रिया को अन्त: जातीय अनिषेच्यता (intraspecific incompatibility) भी कहते हैं। एक पौधे के पुष्प का परागकण दूसरे पौधे के पुष्प को निषेचित कर सकता है। पौधों में पर परागण सम्भव है परन्तु स्व परागण नहीं हो सकता है। यह दो दो प्रकार से होता है।
समआकारिकी (Homomorphic): दोनों संयुग्मन कर्त्ता (mating types) आकारिकी’ में समान होते हैं।
विषमआकारिकी (Heteromorphic): दोनों संयुग्मन कर्ता आकारिक में भिन्न होते हैं। यह लैंगिक अंगों (परागकोश, वर्तिकाग्र) की संरचना अथवा स्थिति में अन्तर के कारण हो सकता है।

विषम आकारिकी अनिषेच्य (Heteromorphic incompatibility) का नियन्त्रण एक जीन व दो एलील (one gene with two alleles) के द्वारा होता है जैसे प्रिमुला (Primula) में अथवा दो जीन दो एलील (Two genes and two alleles) के द्वारा होता है। जैसे- लायश्रम में (Lythrum)।
स्व अनिषेच्यता का जीनी नियन्त्रण (Genic control of self incompatibiltiy)
यह जीन द्वारा नियन्त्रित शारीरिक क्रिया (gene controlled physiological process) है। जीन का नियन्त्रण युग्मकोद्भिद् (gametophyte) अथवा बीजाणुद्भिद् (sporophyte) जनित होता है।
युग्मकोद्भिद् जनित स्व अनिषेच्यता अथवा GSI (Gametophyte self incompatbility)
यह नर युग्मकोद्भिद् के जीन प्ररूप (genotype of male gametophyte) द्वारा निर्धारित होती है जैसे टाइफोलियम (Trifolium), पोएसी (Poaceae), सोलनेसी (Solanaceae) तथा लिलिएसी (Liliaceae) के सदस्यों में।
ईस्ट व मेन्जल्सडार्फ (East and Mangelsdarf) ने ओपीसीशन ‘S’ एलील (opposition-‘S’ – alleles) परिकल्पना स्तुत की। इसके अनुसार अनिषेच्यता का नियन्त्रण ‘S’जीन व अनेकों एलील के द्वारा होता है। यदि पराग कण के ‘S’ एलील दा युग्मक कोशिका के ‘S’ एलील के समान हो तो निषेचन सम्भव नहीं होगा।

बीजाणुद्भिद् जनित स्व अनिषेच्यता अथवा SSL (Sporophyte self incompatbility)
अनिषेच्यता का नियन्त्रण बीजाणुद्भिद् ऊतक के जीनप्ररूप द्वारा होता है। सभी परागकण एक समान व्यवहार करते हैं। ‘S’ एलील के अनुसार नहीं ये S1 , S2 के लिए अक्रिय होते हैं।

भौतिक निरोधक (Physical Barriers)
वर्तिकाग्र-सतह निरोधन (Stigma-surface inhibition) : परागकण की पहचान अथवा रिजेक्शन वर्तिकाग्र की सतह से होता है। ऐसा देखा गया है कि जो परागकण वर्तिकाग्र की सतह पर अंकुरित नहीं हो पाते हैं वे सीधे वर्तिका से प्रवेश कराने पर अंकुरण कर लेते हैं तथा सामान्य निषेचन की क्रिया होती है।
ब्रेसीकेसी के सदस्यों जैसे एरेबिस, बेसिका आदि मे वर्तिकाग्र क्यूटिकल से ढका रहता है तथा परागकण को अंकुरण से पूर्व क्यूटिकल को वेधना पड़ता है। इसे निषेच्यन परागण (compatible pollination) कहते हैं। यदि परागकण क्यूटिकल का वेधन करने में अक्षम हो तो उस क्रिया को अनिषेच्य परागण (incompatible pollination) कहते हैं।
निषेच्य परागण की स्थिति में वर्तिकाग्र द्वारा इस प्रकार के विकरों का स्रवण होता है जिससे क्यूटिकल की सतह विघटित हो जाती है और परागकण वृद्धि कर पाता है। इस परिकल्पना का परासूक्ष्मदर्शीय अध्ययन (electron microscopic studies) द्वारा कोई प्रमाण प्राप्त नहीं हुआ है।

वर्तिकाग्र-सतह निरोधन (Stigma-surface inhibition) निम्न का परिणाम है :

- अनिषेच्य वर्तिकाग्र द्वारा शुष्कता का प्रदर्शन। इस प्रकार के वर्तिकाग्र में क्यूटिकल की परत के ऊपर पेलीकल (pellicle) मिलती है।
- पेलीकल में लिपिड प्रोटीन आदि मिलते है जिसमें एस्टरेस की क्रिया मिलती है।
- जब परागकण वर्तिकाम पर गिरता है यह पेपिलायुक्त कोशिकओं द्वारा जल के स्रवण को उत्तेजित करता है। आद वर्तिकाम परागकण के एक्साइन की प्रोटीन को बाहर आने के लिए उत्तेजित करती है।
- पेलीकल द्वारा परागकणों से उत्सर्जित प्रोटीन ग्रहण की जाती है। दोनों प्रोटीन की अन्तर्क्रिया से ही अनिषेच्यता की क्रिया होती है।
- जहाँ परागकण का वर्तिका पर कोन्टेक्ट अथवा मिलन होता है वहाँ पर केलोस (callose) की प्लग (plug) का जाती है। यह केवल स्थानीय स्तर पर निरोधन (rejection) करती है इसके आस-पास की सतह से दूसरे परागकणों का अंकुरण सम्भव है।
वर्तिका द्वारा निरोधन (Stylar inhibition)
युग्मकोद्भिद् जनित स्व अनिषेच्यता तन्त्र में परागकण वर्तिका में दो तिहाई दूरी तक वृद्धि कर सकता है। निरोधन अथवा (rejection) की क्रिया उसके पश्चात् होती है जिससे पराग नलिका की वृद्धि उसके आगे रुक जाती है। वर्तिका द्वारा निरोधन से उत्पन्न अनिषेच्यता के निम्न कारण हैं:

- वर्तिका की कोशिकाओं से विशिष्ट ‘S” एलील प्रोटीन का स्रवण होता है जो अनिषेच्यता अभिक्रिया को प्रेरित करती हैं।
- निकोशियाना एलेटा (Nicotiana alata) की वर्तिका में परआक्सिडेस 10 मिलती है जो पराग नलिका को नहीं बढ़ने देती है।
- पिटूनिया हाइब्रिडा (Petunia hybrida) में पराग नलिका की भित्ति मोटी हो जाती है तथा नलिका का कोशिकाद्रव्य विघटित हो जाता है। (d) लिलियम (Lilinum) में पराग नलिका अग्र भाग (tip) स्त्रीकेसर के स्रवण का अवशोषण नहीं कर पाता है।
- कभी-कभी पराग नलिका का अग्र भाग शाखित हो जाता है तथा केलोस प्लग के निर्माण से पराग नलिका की वृद्धि वर्तिका में रुक जाती है।
- वर्तिका में उच्च RNAase की क्रिया से भी अनिषेच्यता मिलती है जैसे— लाइकोपरसिकान (Lycopersicon) में। RNAase पराग नलिका में प्रवेश करके उसमें कोशिका द्रव्य में मिल जाता है तथा पराग नलिका की वृद्धि को रोक देता है।
बीज का निर्माण (Formation of Seed)
निषेचन के बाद बीजाण्ड में बहुत-से परिवर्तन होते हैं। जाइगोट या ऊस्पोर वृद्धि करके भ्रूण (embryo) बनाता है तथा द्वितीयक केन्द्रक से भ्रूणपोष (endosperm) बनता है।