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पादप प्रजनन किसे कहते है इसकी परिभाषा?

आनुवंशिकता एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में चरित्र का स्थानांतरण है और भिन्नता संतान और उनके माता-पिता के बीच अंतर है जबकि पादप प्रजनन कला, विज्ञान और तकनीक है जिसके द्वारा हम बदल सकते हैं मानव प्रकार के लाभों के अनुसार पौधों का जीनोटाइप।

पादप प्रजनन किसे कहते है?

परिभाषा: पादप प्रजनन नई पौधों की किस्मों को विकसित करने की विज्ञान संचालित रचनात्मक प्रक्रिया है जिसे विभिन्न नामों से जाना जाता है जिसमें खेती विकास, फसल सुधार और बीज सुधार शामिल हैं।

पौधों के आर्थिक उपयोग के सन्दर्भ में उसकी आनुवंशिक बनावट में सुधार लाने के विज्ञान और कला को पादप प्रजनन कहते हैं। आनुवंशिक सुधार हेतु अपनाए जाने वाले विभिन्न उपायों को पादप प्रजनन तकनीक या विधि कहते हैं। पादप प्रजनन की प्रमुख विधियाँ या तकनीक निम्नलिखित हैं-

पादप प्रजनन किसे कहते है इसकी परिभाषा
पादप प्रजनन किसे कहते है इसकी परिभाषा

फसल का पुरःस्थापन

किसी फसल के पौधों को उसके कृषि क्षेत्र से ऐसे स्थान पर ले जाकर उगाना जहाँ उसे पहले कभी नहीं उगाया गया हो अथवा देश विदेश से अच्छी से अच्छी किस्म के पौधे लेकर अपने देश में उगाना ही पौधा प्रवेश या पुरःस्थापना कहलाता है। यह बात आवश्यक है कि इस प्रकार से लिए गए नए पौधों को पहले उस स्थान , देश या विदेश की जलवायु के अधीन करना होता है , जहाँ कि उन्हें उगाना है , इस क्रिया को अनुकूलन कहते हैं। अनुकूलन सामान्यत : अनुसन्धान केन्द्रों पर किया जाता है।

वांछित गुणों का चयन

फसल की नई किस्म तैयार करने के लिए पहले दो मौजूदा किस्मों को चुनते हैं। प्रत्येक में वांछित गुण का होना आवश्यक है ; जैसे – रोगों की प्रतिरोधकता अथवा अधिक उपज। चयन वास्तव में वह प्रक्रिया है जो अपेक्षाकृत उत्तम लक्षणों वाले कुछ पौधों के प्रवर्धन और अन्तरजीविता को प्रोत्साहित करती है। चयन फसली पौधों के उन गुणों को चयनित करता है , जो गुणवत्ता, प्रतिरोधकता, उपज आदि से सम्बन्धित होते हैं।

संकरण किसे कहते है?

आनुवंशिक रूप से एक ही जाति के दो भिन्न जनकों के मध्य निषेचन ( क्रॉस कराकर ) द्वारा नई किस्म उत्पन्न करने की विधि को संकरण कहते हैं। इस विधि में आनुवंशिक रूप से भिन्न पौधों के मध्य क्रॉस कराया जाता है।

संकरण निम्नलिखित प्रकार के हो सकते हैं-

  • अन्तःकिस्मीय संकरण: एक ही किस्म के दो पादपों में परस्पर क्रॉस कराया जाता है। यह विधि उन किस्मों में उपयोगी रहती है जिनकी आबादी में जीन प्रारूपों का मिश्रण है और वे स्वपरागित (self pollinated) होते हैं। स्वपरागित (self pollinated) फसलों में यह एक विधि किस्म को सुधारने के लिए ओर उस को बनाए रखने के लिए प्रयोग में ली जाती है।
  • किस्मीय संकरण – एक ही जाति की दो विभिन्न किस्मों के पादपों में परस्पर क्रॉस कराया जाता है इसको अन्तरा – किस्मीय संकरण कहते हैं। अनाज की अधिकांश फसलों की संकर किस्में इसी विधि द्वारा प्राप्त की गई हैं।
  • जातीय संकरण – जब एक वंश (Linage) की दो भिन्न जातियों में क्रॉस (Cross between two different races) कराया जाता है, तो तब सूखा या रोग प्रतिरोधक (resistor); जैसे – कुछ महत्त्वपूर्ण जीन एक जाति से दूसरी में स्थानान्तरित (Transferred) किए जाते हैं।
  • वंशीय संकरण – जब किन्ही दो अलग अलग वंशों के दो पौधों में क्रॉस कराया जाता हैं तो पौधा का एक नई किस्म उत्पन्न होती है। इसे अन्तरा-वंशीय संकरण भी कहते हैं।

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