एक ही खेत में दो फसलों को साथ साथ हो उगाना मिश्रित फसली खेती (mixed crop farming) कहलाती है।
मिश्रित खेती की प्रणाली-
हमारे देश में प्राचीन काल से ही मिश्रित फसली खेती की परंपरा रही है। इसमें दो फसलों के बीजों को मिलाकर साथ साथ बोया जाता है। मिश्रित फसली का मुख्य उद्देश्य जोखिम को कम करना है।
मौसम के असामान्य हो जाने पर भी फसल के कुछ लाभ प्राप्त करना ही इसका मुख्य उद्देश्य होता है। फसल उत्पादन की यह प्रक्रिया बारानी क्षेत्रों ( Rainfed areas ) में अपनाई जाती है। इससे मिट्टी की उर्वरता एवं गुणवत्ता भी बनी रहती है।

मिश्रित फसल प्रणाली के लाभ-
- विभिन्न उत्पादन प्राप्ति – मिश्रित फसल प्रणाली से एक ही खेत से विभिन्न उत्पाद एक साथ प्राप्त किए जा सकते हैं जैसे- धान्य, पशुओं के लिए चारा तथा सब्जी आदि एक साथ प्राप्त किए जा सकते हैं। इससे किसान की परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति हो जाती है।
- मिट्टी की उर्वरता में सुधार – धान्य फसलें मृदा से पोषक तत्व अधिक मात्रा में अवशोषित करती है। निरंतर धान्य फसलों को उगाने से मृदा की उर्वरता कम हो जाती है।
- फसल नष्ट होने का जोखिम नहीं – मिश्रित फसल प्रणाली में अलग-अलग स्वभाव की फसलें उगाने से वर्षा की अनिश्चितता के कारण फसल के नष्ट होने का जोखिम कम हो जाता है।
- मृदा के पोषक तत्व का उचित प्रयोग – सतह भौजी तथा गहरे भोजी जड़ वाली फसलों के साथ साथ उगाने से मृदा की विभिन्न गहराई से पोषक तत्व का उचित उपयोग हो जाता है।
- पीडक जीवो द्वारा न्यूनतम क्षति – विभिन्न प्रकार की फसलों को उगाने से पीडक जीवो तथा खरपतवार से होने वाली क्षति कम होती है।
मिश्रित फसली के उदाहरण-
- गेहूं + चना
- सोयाबीन + अरहर
- मक्का + उड़द
- गेहूं + सरसों
- जो + मटर।
मिश्रित कृषि प्रणाली क्या है?
मिश्रित खेती दो या दो से अधिक स्वतंत्र कृषि गतिविधियों के लिए एक खेत का उपयोग करने की प्रथा है। मिश्रित खेती का एक विशिष्ट मामला पशुपालन के साथ फसल की खेती या अधिक सामान्य शब्दों में, पशुधन खेती के साथ फसल की खेती का संयोजन है।