मातृभाषा का महत्त्व –
हमने मातृभाषा का अनादर किया है। इस पाप का कड़वा फल हमें जरूर भोगना पड़ेगा। हममें और हमारे घर के लोगों के बीच कितना ज्यादा व्यवधान पैदा हो गया है, इसके साक्षी इस सम्मेलन में आनेवाले हम सभी हैं। हम जो कुछ सीखते हैं, वह अपनी माताओं को नहीं समझाते और न समझा सकते हैं।
जो शिक्षा हमें मिलती है, उसका प्रचार हम अपने घर में नहीं करते और न कर सकते हैं। ऐसा दुःखद परिणाम अंग्रेज कुटुम्बों में कभी नहीं देखा जाता। इंग्लैण्ड में और दूसरे देशों में जहाँ शिक्षा मातृभाषा में दी जाती है, वहाँ विद्यार्थी जो कुछ पढ़ते हैं, वह घर आकर अपने-अपने माता-पिता को सुनाते हैं; घर के नौकर-चाकरों और दूसरे लोगों को भी यह मालूम हो जाता है।
इस तरह जो शिक्षा बच्चों को स्कूल में मिलती है, उसका लाभ घर के लोगों को भी मिल जाता है। हम तो स्कूल-कॉलेज में जो कुछ पढ़ते हैं, वह वहीं छोड़ आते हैं। विद्या, हवा की तरह बहुत आसानी से फैल सकती है, किन्तु कंजूस, जैसे अपना धन गाड़कर रखता है, वैसे ही हम अपनी विद्या को अपने मन में ही भरे रखते हैं और इसलिए उसका फायदा औरों को नहीं मिलता। मातृभाषा का अनादर माँ के अनादर के समान है।
जो मातृभाषा का अपमान करता है, वह स्वदेश भक्त कहलाने लायक नहीं। बहुत से लोग ऐसा कहते सुने जाते हैं कि हमारी भाषा में ऐसे शब्द नहीं, जिनमें हमारे ऊँचे विचार प्रकट किए जा सकें किन्तु यह कोई भाषा का दोष नहीं। भाषा को बनाना और बढ़ाना हमारा ही कर्त्तव्य है। एक समय ऐसा था कि जब अंग्रेजी भाषा की भी यही हालत थी।
अंग्रेजी का विकास इसलिए हुआ कि अंग्रेज आगे बढ़े और उन्होंने भाषा की उन्नति की। यदि हम मातृभाषा की उन्नति नहीं कर सके और हमारा यह सिद्धान्त रहा कि अंग्रेजी के जरिए ही हम अपने ऊँचे विचार प्रकट कर सकते हैं और उनका विकास कर सकते हैं।
तो इसमें जरा भी शक नहीं कि हम सदा के लिए उनके गुलाम बने रहेंगे, जब तक हमारी मातृभाषा में हमारे सारे विचार प्रकट करने की शक्ति नहीं आ जाती और जब तक वैज्ञानिक विषय मातृभाषा में नहीं समझाए जा सकते, तब तक राष्ट्र को नया ज्ञाने नहीं मिल सकेगा।
प्रश्न: (क) गद्यांश में किस पाप की बात कही गई है ? नाभ औरों को क्यों नहीं मिलता?
प्रश्न: (ख) विद्या का लाभ औरों को क्यों नहीं मिलता?
प्रश्न: (ग) मातृभाषा के अनादर की तुलना किससे की गई है?
प्रश्न: (घ) राष्ट्र को नया ज्ञान कब तक नहीं मिल सकता?
प्रश्न: (ङ) गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर: (क) हमने मातृभाषा का जो अनादर किया है, उसे लेखक ने पाप कहा है और यहाँ उसी पाप की बात कही गई है।
उत्तर: (ख) हमारी विद्या का लाभ औरों को इसलिए नहीं मिलता; क्योंकि हम स्कूल-कॉलेज में जो कुछ पढ़ते हैं, वह वहीं छोड़ आते हैं, उसे हम दूसरों के साथ साझा नहीं करते। जिस प्रकार कंजूस अपने धन को गाड़कर रखता है, उसी प्रकार हम अपनी विद्या को अपने मन में ही भरे रखते हैं और इसीलिए उसका लाभ औरों को नहीं मिलता।
उत्तर: (ग) मातृभाषा के अनादर की तुलना माँ के अनादर से की गई है।
उत्तर: (घ) जब तक हमारी मातृभाषा में हमारे सारे विचार प्रकट करने की शक्ति नहीं आ जाती और जब तक वैज्ञानिक विषय मातृभाषा में नहीं समझाए जाते, तब तक राष्ट्र को नया ज्ञान नहीं मिल सकता।
उत्तर: (ङ) शीर्षक– ‘मातृभाषा’, ‘मातृभाषा का महत्त्व’