मनुष्य का उत्सर्जी तन्त्र | manushya kya utsarjit tantra
मनुष्य का उत्सर्जी तन्त्र शरीर में उपापचय क्रियाओं के फलस्वरूप बने उत्सर्जी पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना उत्सर्जन (excretion) कहलाता है। इस क्रिया में सहायक अंग उत्सर्जी अंग कहलाते हैं। अंगों के तन्त्र को उत्सर्जीत कहते हैं।
यह मुख्यतया नाइट्रोजनी उत्पजी पदार्थों के निष्कासन का कार्य करते हैं। मनुष्य में मुख्य उत्सर्जी वृक्कों (kidney) होते हैं। यकृत (liver) उत्सर्जन क्रिया में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह अमोनिया को यूरिया में बदलता है।
मनुष्य के वृक्क | manushya ke Virk
वृक्क (kidney) संख्या में दो, उदरगुहा कशेरुक दण्ड (रीढ़ की हड्डी) के इधर-उधर (दाएं व बाएं), भूरे रंग तथा सेम के बीज के आकार की सरचनाएँ है। प्रत्येक वृक्क लगभग 10 सेमी लम्बा, 6 सेमी चौड़ा तथा 2.5 सेमी मोटा होता है। दायाँ वृक्क बाएं की अपेक्षा कुछ नीचे स्थित होता है।

सामान्यतः एक वयस्क पुरुष के वृक्क का भार 125-170 ग्राम दायाँव किन्तु स्त्री के वृक्क का भार 115-155 ग्राम होता है। वृक्क का बाहरी किनारा उभरा हुआ होता है किन्तु भीतरी किनारा भीतर की ओर धंसा हुआ होता है जिसमें से मूत्र नलिका (ureter) निकलती है। इस धँसे हुए स्थान को हाइलस (hilus) कहते हैं। मूत्र नलिकाएँ एक पेशीय थैलेनुमा मूत्राशय (urinary bladder) में खुलती है। मूत्र नलिका की लम्बाई लगभग 30-35 सेमी होती है।
वृक्क की आन्तरिक संरचना | vrik ki aantrik sanrachna
इसके मध्य में लगभग खोखला तथा कीप के आकार का भाग होता है। यही क्रमशः संकरा होकर मूत्र नलिका का निर्माण करता है। यह स्थान शीर्षगुहा, श्रोणि या पेल्विस (pelvis) कहलाता है। वृक्क का शेष भाग ठोस तथा दो भागों में बँटा होता है- बाहरी, हल्का बैंगनी रंग का भाग वल्कुट या कॉर्टेक्स (cortex) तथा भीतरी, गहरे रंग का भाग मेड्यूला (medulla) कहलाता है।
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वृक्क में असंख्य सूक्ष्म नलिकाएँ होती हैं जो अत्यन्त कुण्डलित तथा लम्बी होती हैं। इन्हें वृक्क नलिकाएँ (uriniferous tubules) या नेफ्रॉन कहते हैं। प्रत्येक नलिका के दो प्रमुख भाग होते हैं-एक प्याले के आकार का ग्रन्थिल भाग मैल्पीघियन कोष (Malpig puscle) तथा दूसरा अत्यन्त कुण्डलित नलिकाकार (tubular) भाग जिसे स्त्रावी नलिका कहते हैं।
नलिका एक बड़ी संग्रह नलिका (collecting tubule) में खुलती है। प्रत्येक संग्रह नलिका एक मीनार जैसे भाग, पिरैमिड में खुलती है। वृक्क में ऐसे 10-12 पिरॅमिड देते हैं, जो अपने संकरे भाग से शीर्ष गुहा में खुलते हैं।
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