मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ के प्रश्न उत्तर | Class 10 Hindi Chapter 13 Question Answer
प्रश्न 1-फादर की उपस्थिति देवदार की छाया जैसी क्यों लगती थी?
उत्तर- देवदार हिमालय पर 6,000 फुट से 8,000 फुट तक की ऊंचाई पर पाया जानेवाला एक बहुत बड़ा पेड़ होता है। इसको लकड़ी सुन्दर, हल्की व सुगन्धित होती है। यह अपनी मजबूतों लिए प्रसिद्ध है।
इसमें धुन नहीं लगता है। फादर में भी देवदार के समान सभी गुण थे। उनका व्यवहार सुगन्ध देनेवाला अर्थात् अच्छा विचारों से फादर मुदृढ़ थे। फादर सन्यासी थे जो पवित्रता का प्रतीक है। इन सब कारणों से कार को पस्थिति लेखक को देवदार को छाया जैसी लगती थी।
प्रश्न 2-फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग हैं, किस आधार पर ऐसा कहा किस आधार पर मानवीय करुणा की दिव्य चमक पाठ में फादर बुल्के को भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग कहा है?
उत्तर- फादर की कर्मभूमि भारत हो रहो। वे 47 वर्षों तक भारत में ही रहे। फादर हिन्दी से प्यार करते थे। भारत उनको रग-रग में बसा था। वे स्वयं को भारतीय कहते थे हिन्दी की उनले महती सेवा की, जबकि हिन्दीवालो ने हिन्दी की उपेक्षा करके उसको सबसे अधिक हानि मुंबई है। फादर हिन्दी को राष्ट्रभाषा न बनाए जाने को लेकर चिन्तित रहते थे। ये सभी कारण ऐसे हैं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि फादर बुल्के भारतीय संस्कृति के अभिन्न अंग है।
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प्रश्न 3-पाठ में आए उन प्रसंगों का उल्लेख कीजिए, जिनसे फादर बुल्के का हिंदी प्रेम प्रकट होता है।
उत्तर- फादर ने अपनी शिक्षा की अवधि में हिन्दी में ही शोध किया। उनके शोधप्रबन्ध का रामकथा उत्पत्ति और विकास फादर सेण्ट जेवियर्स कॉलेज रांची में हिन्दी तथा स्कृत विभाग के विभागाध्यक्ष रहे। फादर ने अंग्रेजी-हिन्दी कोश तैयार किया ‘बाइबिल’ का हिन्दी भी किया। फादर हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के पक्षधर थे। वे प्रत्येक मंच से इस विषय में चिन्ता प्रकट करते रहते थे। इन सभी प्रसंगों से स्पष्ट होता है कि फादर को हिन्दी से बहुत प्रेम था।
प्रश्न 4-इस पाठ के आधार पर फादर कामिल बुल्के की जो छवि उभरती है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर- फादर का व्यक्तित्व अत्यन्त आकर्षक था। वे अमृत के समान सभी से मृदुल व्यवहार करते थे। वे लम्बे कद के थे। उनका रंग गोरा था। पादरियों द्वारा पहना जानेवाला सफेद चोगा उनके शरीर की कान्ति को और भी चमकदार बनाता था।
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उनकी नीली आँखे तथा सदैव आलिंगन को आतुर उनकी उनके व्यक्तित्व को सम्पूर्णता प्रदान करती थीं, उस पर उनकी भूरी दाढ़ी को उज्ज्वलता उनकी साधुता को चरम पर पहुँचा देती थी। आशय यही कि उनका व्यक्तित्व अपनत्व और ममत्व से ओत-प्रोत था।
प्रश्न 5-लेखक ने फादर बुल्के को मानवीय करुणा की दिव्य चमक’ क्यों कहा है?
उत्तर- फादर ने अपने सम्पूर्ण जीवन में मानव सेवा की प्रत्येक से उसके घर परिवार के बारे में उसकी व्यक्तिगत दुःख-तकलीफ के बारे में पूछना फादर का स्वभाव था। बड़े से बड़े दुख में उनके मुख से सांत्वना के जादूभरे दो शब्द सुनना व्यक्ति का एक ऐसी रोशनी से भर देता जो किसी गहरी तपस्या से जनमती है। इसी कारण लेखक ने फादर बुल्के को मानवीय करुणा को दिव्य कहा है।
प्रश्न 6- फादर बुल्के ने संन्यासी की परंपरागत छवि से अलग एक नई छवि प्रस्तुत की है. कैसे?
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उत्तर- सन्यासों की एक परम्परागत छवि है, जिसके अनुसार व्यक्ति त्यागी और विरक्त होकर सभी कार्य निष्काम भाव से करता है। फादर बुल्के संकल्प से संन्यासी थे। कभी-कभी लगता था कि वे मन से संन्यासी नहीं हैं। वे सन्यासी होते हुए भी रिश्ता बनाते थे और उसे तोड़ते नहीं थे। वर्षों बाद मिलने पर भी उस रिश्ते की जीवन्तता अनुभव होती थी।
भाषा जैसे विषय पर उनको चिन्ता किसी परम्परागत संन्यासी की चिन्ता न थी। परम्परागत संन्यासी को सदैव अपने कल्याण (उद्धार मोक्ष) की चिन्ता रहती है, जिसके लिए वह संसार को मोह-माया का जाल समझकर उससे विरक्ति को ही अपना साधन मानता है।
संसार के सुख-दुःख अथवा कल्याण (उद्धार) से उसका कोई सरोकार नहीं होता, जबकि फादर वुल्के ने सन्यासी की इस परम्परागत छवि के विपरीत संसार और उसके रिश्तो-नातों में लिप्त रहकर सबका कल्याण करने में ही अपना उद्धार समझा। इससे स्पष्ट है कि फादर बुल्के की अपनी अलग ही विशिष्ट छवि थी।
प्रश्न 7-आशय स्पष्ट कीजिए।
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(क) नम आँखों को गिनना स्याही फैलाना है।
(ख) फादर को याद करना एक उदास शांत संगीत को सुनने जैसा है।
उत्तर- (क) 18 अगस्त, 1982 ई० को फादर का निधन हो गया। दिल्ली में मसीही विधि म उनका अन्तिम संस्कार किया गया। अन्तिम संस्कार में बहुत से गणमान्य लोग उपस्थित थे। लेखक कहता है कि मैं नहीं सोचता कि इस संन्यासी ने कभी सोचा होगा कि उसकी मृत्यु पर कोई गएगा। लेकिन अन्तिम संस्कार के समय रोनेवालो की कमी न थी।
यदि उनको मृत्यु पर रोनेवालों की संख्या का वर्णन किया जाए तो वह इतना सघन और विस्तृत होगा मानो किसी कागज पर स्याही गिरकर फैल गई हो। आशय यही है कि उनकी मृत्यु पर आँसू बहानेवालों की संख्या का अनुमान ठीक वैसे ही नहीं लगाया जा सकता, जिस प्रकार किसी लिखावट पर स्याही के गिरकर फैल जाने पर इस बात का अनुमान लगाना कठिन होता है कि वहाँ स्याही गिरने से पूर्व क्या था।
(ख) फादर की चिन्ता हिन्दी को राष्ट्रभाषा के रूप में देखने की थी। वे हर मंच से इस बात की तकलीफ बयान करते थे। फादर इसके लिए अकाट्य तर्क प्रस्तुत करते थे। वे हिन्दीवालों द्वारा हिन्दी की उपेक्षा से दुःखी थे।
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