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माँ नंदा राज जात यात्रा कहां स्थित है?

माँ नंदा राज जात यात्रा चमोली जिले में यह भारत की सबसे बड़ी यात्रा है तथा यह यात्रा कैलाश पर्वत में स्थित है।

माँ नंदा राज जात यात्रा के विस्तृत जानकारी-

नंदा देवी राज जात यात्रा भारत देश के उत्तराखंड राज्य के चमोली जिले में स्थित है। यह एशिया की सबसे बड़ी यात्रा मानी जाती है। यह समुद्र तल से 13,200फुट से 17,500 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। जो लगभग 280 किलो मीटर लंबी यात्रा है।

माँ नंदा देवी यात्रा प्रत्येक वर्ष तथा राज जात यात्रा 12 वर्ष में आयोजित होती है। माँ नंदा देवी राजजात यात्रा में 22 पड़ावों चरबग, गथकाेट, उस्ताेली, मेटी, बूंगा, डूगरी, सूना, चेपडा(थराली), बिराधार, फल्यागाव, मुन्दाेली, वाणा,गैरोली पातल, बाक, ल्वाणी, उंलगा, पुणा, जाैला, विजेपुर, बेनाेली,लाेल्टी, होते हुए सिद्ध पीठ देव राडा मैं पूजा अर्चना के बाद 6 माह के लिए मां नंदा राजेश्वरी अपने मायके कैलाश पर्वत विराजमान रहती है।

माँ नंदा
माँ नंदा

माँ नन्दा देवी की अगली यात्रा 2023 में हाेगी। यह यात्रा कुमाऊं और गढ़वाल की यात्रा का बना होता है तथा यहाँ भारी संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। यह यात्रा प्राचीन समय से चली आ रही है।

पौराणिक परंपराओं के अनुसार नंदा देवी राज जात यात्रा का इतिहास

नंदा देवी राज जात यात्रा इतिहास पुरानी परंपराओं में नंदा देवी भगवान शिव की पत्नी मानी जाती है। कैलाश हिमालय पर भगवान शिव निवास करते है।

माना जाता है की माँ नन्दा का ससुराल हिमालय पर्वत पर स्थित है। माँ नन्दा देवी 12 वर्ष तक ससुराल नहीं जाती है। फिर उन्हें आदर् संस्कार से ससुराल भेज दीया जाता है।

पुरानी परंपराओं के अनुसार मां पार्वती का रूप माँ नन्दा भी कहा जाता है। यहां पर सबसे पहले पंवार वंश का राज था बाद में फिर कत्यूरी वंश से इस यात्रा का प्रमाण हुआ। यह यात्रा नॉटी गांव से सन 1843,1863,1905,1925,1951,1968 आदि यात्रा प्रत्येक 12 वर्ष में राज जात यात्रा हाेती रहती है।

इस पैदल यात्रा में उच्च हिमालय की ओर चढ़ाई चढ़ते समय रोमांचक बढ़ता है माँ नन्दा अपने ससुराल जाते हुए पहला पडाव नाेटी गांव से होते हुए रूपकुंड से हेमकुंड से होते हुए पहाड़ी रास्ते, नदियाँ, जंगल होते हुए गुजरना पड़ता है।

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7 वीं शताब्दी में गढ़वाल के राजा सालीपाल ने राजधानी चादपुऱ से श्री नंद को 12 वर्षों में मायके में हाने की परम्परा शुरू की थी। राजा कनक पाल ने इस यात्रा को भव्य रुप दिया। रास्ते में प्राकृतिक सौंदर्य को देखते हुए यात्रा का आनन्द लेते हुए कैलाश पर्वत की ओर बढ़ते हैं।

नंदा राज जात यात्रा में मुख्य: अतिथि चौरसिया खाडू (चार सिंगाै वाला भेड) हाेता है। जाे नंदा देवी राज जात यात्रा के पहले पैदा हाेता है। भेड़ के दाेंनाे तरफ से दानी दाताओं द्वारा चाँदी साेने से भरा खाडू काे साथ में ले जाकर यात्रा का प्रारंभ किया जाता है। माना जाता है जैसे-जैसे खाडू पर्वत शिखर पर पहुंचता है। वैसे ही हिमालय की तलहटी में बायसिंग खाडू गायब हो जाता है। मान्यता के अनुसार परम्परा से चला आ रहा है।

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