नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में आपका स्वागत है, तो दोस्तों आज के इस लेख में कृत्रिम कायिक प्रवर्धन के बारे में जानेंगे तथा साथ ही इसकी पहली मुख्य विधि कलम लगाने के बारे में जानेंगे। पिछले लेख में प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन के बारे में जाना था, यदि आपने नही पढ़ा तो ज़रूर एक बार पिछली पोस्ट चेक करें। तो चलिए शुरू करते हैं।
यह क्रिया मानव द्वारा कल्पित है। पादप का कायिक भाग मातृ पादप से अलग कर स्वतन्त्र रूप से उगाया जाता है तथा उससे नया पौधा प्राप्त करते हैं। इसकी मुख्य विधियाँ कलम लगाना (cutting), दाब कलम (layering) तथा रोपण (Grafting) आदि हैं।
कभी-कभी पौधों द्वारा प्राकृतिक कायिक वर्धन के लिए बने भाग कृत्रिम कायिक वर्धन के लिए उपयोग में लाए जाते हैं। जैसे- आलू के कन्द, इसे सम्पूर्ण अथवा टुकड़ों में काटकर आलू की फसल प्राप्त करने के लिए बीज के रूप में प्रयोग में लाते हैं। ऐसी स्थिति में मिलने वाले सभी. आलू आनुवंशिक रूप से समान होते हैं तथा प्रत्येक को क्लोन (clon) कहते हैं।
कलम लगाना (Cutting):
इस क्रिया में वांछित पौधे की छोटी-छोटी टहनी काटी जाती हैं। यह टहनी ही कलम कहलती है। इस कलम को मृदा में लगाकर कुछ समय पश्चात् नया पादप प्राप्त किया जाता है। बहुत से पौधों में टहनी कलम (stem cutting) ही प्रमुखता से नये पौधे प्राप्त करने का साधन है। पौधशाला में यह क्रिया बहुत सामान्य है। कलम को लेकर भूमि में लगाते हैं जहाँ इसमें से अपस्थानिक जड़े निकलती हैं। ये जड़े निचली पर्वसन्धियों पर निकलती हैं ऊपर की पर्वसन्धियों से अक्षस्थ कलिका से नए प्ररोह विकसित होते हैं।कभी-कभी टहनी के निचले भाग में IAA अथवा अन्य हार्मोन के उपयोग से जड़ें शीघ्र निकलती हैं।
गन्ना, अंगूर, गुलाब, गुड़हल, बोगनविलिया, कारनेशन, कोलियस टेपिओका आदि में टहनी कलम से ही कायिक वर्धन किया जाता है। इस क्रिया में कलल की लम्बाई, व्यास, मातृ पादप की आयु व ऋतु आदि पर ध्यान देना चाहिए। मूल माध्यम (rooting medium), मृदा, रेत अथवा वर्मीकल्वर हो सकता है।

मुख्य तने अथवा शाखाओं से 10-15 सेमी० लम्बी कलम बनाई जाती हैं। यदि कलम हरी व उसी वर्ष की शाखा से प्राप्त की जाए तो उसे सोफ्ट वुड कटिंग (soft wood cutting) कहते हैं।
यदि यह पुराने तने से प्राप्त की जाए तो इसे हार्ड वुड कटिंग (Hard wood cutting) कहते हैं। सोफ्ट वुड कटिंग में जड़े शीघ्र व सरलता से निकल आती है जबकि हार्ड वुड कटिंग में यह बहुत समय में निकलती हैं। कलम लेते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि उसमें कुछ कक्षस्थ कलिकाएँ व पत्तियाँ भी हों।
मूल कलम (Root cutting):
इमली, नींबू आदि में जड़ कलम (root cutting) भी ली जाती है जो नम मृदा में आसानी से फूटकर नया पौधा बनाती है। कलम मुख्यतः दो प्रकार की होती हैं–
- जिनमें पत्ती आवश्यक होती है (Cutting requiring leaves )
- शाकीय स्तम्भ कलम (herbacous stem cutting): यह पौधे के अग्र भाग से तैयार की जाती है।
- पर्णकलिका कलम (leaf bud cutting): यह सवृंत पत्ती अथवा पत्ती सहित तने से बनाई जाती हैं। सामान्यतः इसकी पत्तियाँ गूदेदार मोटी हाती हैं।
- मृदु काष्ठ कलम (soft wood cutting): यह पर्णपाती तथा सदाबहार पौधे से प्राप्त होते हैं।
- जिनमें पत्ती आवश्यक नहीं होती हैं।(cutting not requiring leaves)
- दृढ़ काष्ठ कलम (Hard wood cutting): यह पुराने तने से प्राप्त की जाती हैं। समान्यतः फलदार वृक्षों में इस प्रकार की कलम काटी जाती है।
- अर्ध दृढ़काष्ठ कलम (Semi hardwood cutting): यह कलम पुराने पौधं से प्राप्त की जाती हैं। इसमें टहनी काट कर सामान्यत: भूमि में गाढ़ देते हैं। कुछ समय बाद नया पौधा प्राप्त होता है।
कृत्रिम कायिक प्रवर्धन किसे कहते हैं ?
यह क्रिया मानव द्वारा कल्पित है। पादप का कायिक भाग मातृ पादप से अलग कर स्वतन्त्र रूप से उगाया जाता है तथा उससे नया पौधा प्राप्त करते हैं।