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केदारनाथ धाम कहाँ स्थित है?

केदारनाथ धाम भारत देश के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले में स्थित है। यह समुद्र तल से 22000 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। जो ऋषिकेश से गौरीकुंड की दूरी 211 किलो०मीटर है। गाैरीकुण्ड से 18 किलो०मीटर की पैदल यात्रा केदारनाथ धाम तक पहुँचा जा सकता है। जरूरी नहीं है कि आप पैदल यात्रा करें। यहां पर दो प्रकार के वैकल्पिक साधन (1)- हेलीकॉप्टर (पवन हंस) के द्वारा फाटा रामपुर से और सीतापुर से केदारनाथ के लिए हवाई यात्रा भरता है (2)- दूसरी घाेडे खच्चर, सीतापुर और गाैरीकुण्ड की यात्री काे बैठाकर केदारनाथ पहुंचा जा सकता है।

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केदारनाथ का प्राचीन मंदिर

केदारनाथ का परिचय

केदारनाथ पवित्र धाम में से एक धाम माना जाता है। यह एक प्राचीन मंदिर है। माना है कि जब दाे धाम की यात्रा पूरी कर देते हाे तब तीसरा धाम केदारनाथ आता है। माना जाता जाता है कि यह मंदिर माला के राजा ईस भूज ने इसका निर्माण कराया था। जिसका शासन 1076ई० से 1099ई० के बीच हुआ था।

माना जाता है कि केदारनाथ 12 ज्योतिर्लिंग में सम्मिलित किया जाता है। तथा कलयुग में आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का निर्माण किया था। केदारनाथ से मंदाकिनी नदी निकलती है। माना जाता है कि केदारनाथ के पांच रूप में माना जाता है।(1) केदारनाथ- पंचमुखी (2) तुंगनाथ- शिव की भूजाएँ। (3) रुद्रनाथ- मुक (4) मद्महेश्वर- नाभी (5) कल्पेश्वर- जटा

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केदारनाथ का (कथा), इतिहास

एक बार की बात है। कि हिमालय पर्वत की शिखा पार विष्णु के अवतार ऋषि नर और नारायण तपस्या कर रहे थे। उनके अराधना से प्रचलित होकर भगवान शिव प्रकट हुए। उन्हें ज्योतिर्लिंग के अनुसार सदा वास करने का वर प्रदान किया। माना जाता है कि पांडव युद्ध में भ्राता हत्या से मुक्त होना चाहतें थें।

परन्तु भगवान शंकर का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहते थे। किंतु भगवान शंकर उन लोगों से नाराज थे। परंतु भगवान शंकर उन्हें दर्शन नहीं देना चाहते थे। भगवान शंकर के दर्शन के लिए पांडव काशीविश्वनाथ (वाराणसी) मन्दिर गये लेकिन वहाँ भी भोले शंकर ने दर्शन नहीं दिए। फिर वहां से पांडव हिमालय की ओर चले। चलते-चलते पांडव केदारनाथ तक पहुंच गए। पांडव भी सच्ची लगन के पक्के थे।

केदारनाथ आपदा
केदारनाथ आपदा के समय फाेटाे

फिर भगवान शंकर ने पांडवों को देखकर बैल का रूप धारण कर दिया और अन्य अन्य पशुओं में मिल गये। फिर पांडवों को संदेह हो गया था। फिर एक दिन भीम ने विशाल पर्वत कि दाे पहाडीयाें के बीच अपना पैर फैला दिया। अन्य सारे पशु निकल गई। लेकिन एक बैल वहीं पर रुक गया।

लेकिन शंकर भीम के पैर से जाने के लिए तैयार नहीं हुए। भीम बेैल पर पलक झपटते बैल जमीन के अन्दर खीसकने लगा। तब भीम ने पीठ का भाग पकड़ दिया। इस तरह पांडवों की भक्ति को देखकर पांडवों को पाप मुक्त कर दिया। उस समय से भगवान बैल (नन्दी) के आकृति का पिंड के रूप में पूजा जाता है। माना जाता है कि बैल का ऊपरी (धंड) का भाग नेपाल के (काठमांडू) में पशुपति नाथ मन्दिर में स्थित है।

केदारनाथ मंदिर

केदारनाथ मंदिर शिव मंदिरों में से सबसे विशाल मंदिर माना जाता है। जो पत्थर की शिला भूरे रंग का है। केदारनाथ मंदिर 10 फीट ऊंचाई पर चबूतरे पर बना है। तथा रात के समय सोने से भी अधिक सुशोभित रंगों से सजाया रहता है। जब 13,14,जून 2013 काे जब केदारनाथ आपदा आयी थी तो उसमें हजारों लोगों की जान भी गयी।तब केदारनाथ में मन्दिर ही एकेला बच गया था। तथा क्षेत्रवासी के लाेगाें के काे अरबों खरबों का नुकसान हुआ था। माना जाता कि यह आपका का कारण माँ धारी देवी मंदिर जो चार धाम कि रक्षा करती है।तथा उसी दिन धारी देवी काे उसकी जगह से दूसरी जगह पर स्थान दिया था। माना जाता है कि उसी दिन चारों धामों में आपदा आई थी। जिसे सबसे ज्यादा नुकसान केदारनाथ से हुआ था।

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कपाट खुलने का समय

केदारनाथ के कपाट खुलने का समय (मई) मेष राशि और मकर संक्रांति से 15 दिन पूर्व कपाट खुले जाते हैं। 6 महीना कपाट खुले रहते है। तथा कपाट बंद होने का समय भैया दूज के दिन कपाट बन्द किया जाता है। 6 महीने बर्फ रहने के कारण शीतकालीन कपाट बंद किए जाते हैं। था उसके बाद केदारनाथ की डोली उखीमठ के ओमकारेश्वर मंदिर में पूजा होती है तथा यहाँ पूजा रावल करते हैं।

केदारनाथ में पूजा करने का समय

  • केदारनाथ में प्रातः कालीन 4:00 बजे सुबह से यात्रियों के द्वारा पूजा की जाती हैं।
  • 3:00फिर 5:00 शाम काे विशेष पूजा होती है। उससे बाद मंदिर के द्वार बंद किए जाते हैं।
  • 7:30 से 8:30 रात्रि नियमित आरती होती है।
  • रात्रि 8:30 बजे कपाट बंद किए जाते हैं

पूजा की प्रकार

केदारनाथ का नया मन्दिर
केदारनाथ का नया मन्दिर

महाभिषेक पूजा, रूद्रभिषेक, गणेश पूजा, भैरव पूजा, पार्वती पूजा, आदि प्रकार की पूजा है । निर्धारित शुल्क के द्वारा किया जाता है।

बाबा केदार का प्राकृतिक सौंदर्य

जैसे-जैसे हम गौरीकुंड से पैदल यात्रा करेंगे तो वहां पर एक गौरी मां का मंदिर भी है। जैसे ही हमने गाैरीकुण्ड मे गाैरी माँ के दर्शन करते हुए आगे बड़े रहे थे। बीच में जंगल के रास्ते से आगे बड़ते रहे वैसे वैसे लग रहा था कि हम स्वर्ग स्वर्ग के द्वार तक पहुँचने का रास्ता मिल गया। और आगे बढ़ते बढते हमें पर्वतों काे आनंद लेते हुए जगह जगह झरनाें, बर्फ के आनंद लेते हुए आगे बढ़ रहे।

बीच-बीच माैज मजें मस्ती कर रहे थे। चलते चलते रास्ते का कुछ पता ही नहीं लगा और हम केदारनाथ पहुंच गए। जैसे ही केदारनाथ पर पहुंचे तो वहाँ का नजारा देखकर हम बहुत खुश हुए। ऐसा लग रहा था कि हम स्वर्ग के द्वार पर पहुंच गए है। और पीछे का नजारा में हिमालय पर्वत पार बर्फ दिखाई दे रही थी। यहां से एक नदी निकलती है जो मंदाकिनी के नाम से प्रचलित है। तथा यह नदी दक्षिण में कई राज्यों को पानी भी देती हैं।

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