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कायिक जनन अथवा कायिक प्रवर्धन (Vegetative Propagation)

नमस्कार दोस्तों आशा करता हूँ कि आप सब लोग स्वस्थ मस्त होंगे, तो दोस्तों आज के इस लेख में हम आपको बताएँगे कि कायिक जनन या कायिक प्रवर्धन होता क्या है? ये कितने प्रकार के होते हैं? इनके प्रकार 1 का वर्णन इस लेख में दिया गया है तथा दूसरे प्रकार का वर्णन इसके अगले लेख में आपको मिल जाएगा, तो चलिए शुरू करते हैं ।

कायिक जनन प्रजनन की अथवा नए पौधे के पुनर्निर्माण (regeneration) की विधा है। इस क्रिया में नया पौधा मातृ पौधे, के किसी भी कायिक भाग से बनता है। इसके सभी लक्षण व गुण मातृ पौधे के समान ही होते हैं। अब कायिक जनन को कायिक प्रवर्धन (Vegetative propagation) के नाम से जाना जाता है।

मात्र पौधे के कायिक अंगों द्वारा नये पादपों का पुनर्जनन कायिक जनन या कायिक प्रवर्धन कहलाता है।

कायिक प्रवर्धन

यह क्रिया निम्न पादपों (lower plants) में सामान्यत: मिलती है परन्तु उच्च पादपों (higher plants) में यह केवल दो प्रकार से होती है:

  1. प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन (Natural vegetative propagation)
  2. कृत्रिम कायिक प्रवर्धन (Artificial vegetative propagation)

प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन (Natural vegetative propagation)

यह क्रिया प्रकृति में मिलती है। पादप को कोई अंग अथवा रूपान्तरित भाग मातृ पौधे से अलग होकर नया पादप बनाता है। क्रिया अनुकूल परिस्थितियों में होती है। पौधे का कायिक भाग जैसे जड़, तना व पत्ती इस क्रिया में भाग लेते हैं। ये भाग इस कार से रूपान्तिरित होते हैं कि वे अंकुरित होकर नया पौधा बना सकें। विभिन्न प्राकृतिक कायिक प्रवर्धन की विधियाँ निम्न हैं:

(A) भूमिगत तने (Underground stem):

तने का मुख्य भाग अथवा कुछ भाग भूमिगत वृद्धि करता है तथा एक प्रकार से भोजन संग्रह करने वाले अंग के रूप में रूपान्तरित हो जाता है। परन्तु इस पर कक्षस्थ कलिकाएँ मिलती हैं जिन से नया पौधा विकसित होता है अथवा शाखाएँ निकलती हैं जो मिट्टी से बाहर आकर नया पौधा बना लेती हैं। उदाहरण के लिए-

  1. कन्द (Tuber): वृद्धि असमान (diffuse ) होती है, जैसे आलू (potato)। इस पर आँख मिलती है, जिसमें कक्षस्थ कलिका (axillary bud) शल्क पत्रों से ढकी रहती है। यक कक्षस्थ कलिका अनुकूल समय में अंकुरित होकर नया पौधा बना लेती है। निश्चित पर्व पर्व सन्धियाँ नहीं मिलती हैं।
  2. प्रकन्द (Rhizome): यह भूमिगत तना मृदा के भीतर समानान्तर अथवा क्षैतिज (horizontal) वृद्धि करता है। पर्व व पर्व सन्धियाँ मिलती हैं। पर्व संघनित (condensed) होते हैं। पर्वसन्धियाँ शल्कपत्रों से ढकी रहती है जिसमें कक्षस्थ कलिका मिलती है। इस कक्षस्थ कलिकाओं से नए पौधे निकलते हैं। जैसे—अदरक (Ginger) व हल्दी (Curcuma) आदि।
  3. घनकन्द (Corm): यह भूमिगत तना मृदा में उर्ध्व वृद्धि करता है। इसमें पर्वसन्धियों (node) पर शल्कपत्रों से कलिकाएँ ढकी रहती हैं जिनसे नया पौधा बनता है।जैसे— अरबी (Colocasia), केसर (Saffron), जिमीकन्द (Amorphophalus) आदि।
  4. शल्ककन्द (Bulb): यह प्ररोह का वह रूपान्तरण है जहाँ तना छोटा होता है तथा इस समानीत तने के चारों और रसीले गूदेदार शल्क पत्र मिलते हैं। शल्क पत्रों पानी के कक्ष में कक्षस्थ कलिकाएँ होती हैं जो नये पादप को जन्म देती हैं। जैसे— प्याज (Allium cepa), ट्यूलिप (Tulip), रजनीगंधा (Narcissus) आदि।
भूमिगत तने (Underground stem)
भूमिगत तने (Underground stem)

(B) अर्धवायवीय तना (Subaerial stem):

तना भूमि के समानान्तर क्षैतिज वृद्धि करता है। प्रत्येक पर्वसन्धि से जड़ें तथा प्ररोह (शाखा) निकलते हैं। पर्वसन्धि का कुछ भाग कभी-कभी मृदा में अथवा जल में मिलता है। जैसे—

  1. ऊपरी भूस्तारी (Runner): तना विसपीं होता है तथा मृदा के बाहर की ओर क्षैतिज रूप से मिलती है। प्रत्येक पर्वसन्धि (node) से जड़ें फूटती हैं तथा प्ररोह निकलता है जो विपरीत दिशा में वायु में वृद्धि करता है। पर्वसन्धि से निकलती प्रत्येक शाखा एक नया पौधा बना लेती है। जैसे- दूब घास (Cyamodon), खट्टी बूटी (Oxalis) तथा सेन्टेला (Centella) आदि।
  2. भूस्तारिका (Offset): यह सर के समान ही संरचना है। परन्तु जलोद्भिद् होने से पर्वसन्धियाँ जल निमग्न होती हैं। प्रत्येक पर्वसन्धि से पत्तियों का समूह (tuft) निकलता है, जिसमें नीचे जड़ों का गुच्छा होता है जो मात्र पादप से अलग होकर नया पादप बनता है। जैसे— समुद्र सोख (Water hyacinth), पिस्टिया (Pistia) आदि।
  3. अन्त: भूस्तारी (Sucker): मुख्य तना (पर्व) मृदा के भीतर क्षैतिज रूप (horizontal) में बढ़ता है। शाखाएँ प्रत्येक पर्वसन्धि से मृदा के बाहर निकल आती है। जैसे- पोदीना (Mint) ।
  4. भूस्तारी (Stolon): शाखाएँ छोटी तथा संघनित (condensed) होती हैं। ये सभी दिशाओं में निकलती हैं। शीर्ष तीव्र वृद्धि करता है तथा उस पर से नया पौधा बन जाता है जैसे– स्ट्राबेरी (Fragaria) |
अर्धवायवीय तना (Subaerial stem)
अर्धवायवीय तना (Subaerial stem)

(C) मूल (Root):

कुछ पौधों के मूल (जड़) कायिक वर्धन करते हैं। जैसे— शकरकन्द (Ipomoea batatas), सतावर डेहलिया (Dahelia), यम (Dioscorea) आदि में अपस्थानिक कलिकाएँ ( Adventitious buds) निकलती हैं जो नया पौधा बना लेती हैं। कुछ काष्ठीय पौधों की जड़ों जैसे- मुराया (Muraya), एल्बीजिया (Albizzia), तथा शीशम (Dalbergia) आदि से भी प्ररोह (shoot) निकलता है। जिसकी वृद्धि नए पौधे के रूप में होती है।

मूल (Root)
मूल (Root)

(D) पत्ती (Leaf):

पत्तियों द्वारा कायिक प्रवर्धन सामान्यतः कम ही मिलता है। कुछ पौधों जैसे— ब्रायोफिल्लम (Bryophyllum) तथा केलेन्चो (Kalanchoe) आदि में पत्ती के किनारों (leaf margins) पर पत्र कलिकाएँ बनती हैं। जिनसे छोटे-छोटे पौधे विकसित होते हैं। बिगोनिया (Begonia) अथवा एलिफेन्ट इअर प्लान्ट से पत्र कलिकाएँ पर्णवृन्त तथा शिराओं आदि पर व पूर्ण सतह पर निकलते हैं।

पत्ती (Leaf)
पत्ती (Leaf)

(E) बुलबिल (Bulbil):

ये प्रकलिकाएँ कायिक प्रवर्धन करने वाले जनन अंग हैं। ग्लोबा बल्बीफेरा (Globba bulbifera) में पुष्पक्रम के निचले भाग के कुछ पुष्प बुलबिल अथवा प्रकलिकाएँ बनाते हैं जो रूपान्तरित बहुकोशिकीय संरचना है। प्याज (Allium cepa), अमेरिकन एलोइ (Agave) आदि में भी प्रकलिकाएँ मिलती हैं जो पुष्पों के परिवर्तन से बनती हैं। बहुत-से प्रकलिकाएँ मातृ पौधे से अलग होकर नए पौधे के रूप में विकसित होती हैं।

बुलबिल (Bulbil)
बुलबिल (Bulbil)

डायोस्कोरिया बल्बीफेरा (Dioscorea bulbifera) की जंगली प्रजाति तथा लिलियम बल्बीफेरम (Lilium bulbiferum) आदि में प्रकलिका (bulbil) पत्तीके अक्ष से निकलती है। खट्टी बूटी (Oxalis) में प्रकलिकाएँ कन्दिल मूल (tuberous root) के फूले हुए भाग से निकलती हैं। ये सभी प्रकलिकाएँ मातृ पादप से अलग होकर नए पादप में विकसित होती हैं।

कायिक जनन किसे कहते हैं ?

मात्र पौधे के कायिक अंगों द्वारा नये पादपों का पुनर्जनन कायिक जनन या कायिक प्रवर्धन कहलाता है।

प्याज़ का वैज्ञानिक नाम क्या है ?

Allium cepa

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