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कालीमठ मन्दिर कहां स्थित है?

पारितंत्र कितने प्रकार के होते हैं, इसके घटक कौन-कौन से हैं

कालीमठ में मां काली मंदिर भारत देश के उत्तराखंड राज्य के रुद्रप्रयाग जिले के गुप्तकाशी में स्थित है। जो मंदिर समुद्र तल से 1463 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। कालीमठ मंदिर में मां काली मंदिर पर्यटक स्थलों में से एक है। स्कंद पुराण के अंतर्गत केदारनाथ के 62 वें अध्याय में मां काली मंदिर का वर्णन किया गया है। कालीमठ मंदिर रुद्रप्रयाग से गुप्तकाशी 45 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। तथा गुप्तकाशी से कालीमठ मंदिर 8 किलोमीटर दूरी का सफर तय करना पड़ता है।

कालीमठ की इतिहास (कथा)

मां काली मां
कालीमठ में काली मां

कालीमठ में एक अखंड ज्योति निरंतर जलती रहती है कालीमठ में मां ने दानव का वध करते के बाद मां काली मंदिर है यहाँ पर माना जाता है कि काली शिला काली मठ से 8 किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई पर मानी जाती है।

जहां पर देवी काली के पैरों के निशान मौजूद है काली शिला में मां दुर्गा ने शुम्भ निशुम्भ रक्त वीर दानव का वद करने के लिए काली शिला में 12 वषोॅ की बालिका के रूप में प्रकट हुई थी। माना जाता है काली शिला में देवी के 64 यंत्र हैं। मां दुर्गा के इन्हे 64 यंत्र से सक्ति मिली थी। कि जिस स्थान पर 64 योगनिद्रा विचरण करती रहती है।

इस स्थान पर शुंभ निशुंभ 2 दैत्य देव देवताओं की तपस्या के लिए परेशान करते रहते थे। तब मां भगवती प्रकट हुई। फिर मां ने यह बात सुनकर शरीर काला पड़ गया। और उन्होंने विकराल रूप धारण कर दिया। और दैत्यों का संघार कर दिया। यहां पर महाकाली, महालक्ष्मी, मांसरस्वती, तीन भव्य मंदिर है। तथा इस मंदिर का निर्माण उस विधान से संपन्न हुआ था। तथा यह मंदिर मां लक्ष्मीमंदिर (दक्षिण भाग) में महाकाली मंदिर (पहले भाग) में मां सरस्वती (बीच में) की पूजा की जाती है।

मां काली सिला
काली शिला मंदिर

माना जाता है कि माता सती ने पार्वती ने दूसरा जन्म इसी शिला खण्ड में लिया था। मां काली ने कालीमठ में रक्त वीर राक्षस का वध किया था। उसका रक्त जमीन में ना पड़े इसलिए मां काली ने अपना मुंह फैलाया और उसके रक्त को चाटना शुरू किया।

रक्त वीर काली शीला के किनारे आज भी स्थित है। माना जाता है कि काली सिला में उसका सिर रखा था। श्वेत बीज शिला वर्तमान समय में आज भी मंदिर के किनारे और निकट स्थित है। माना जाता है कि कालीमठ में एक अखंड ज्योति जलती रहती है। माना जाता है कि मां काली ने 2 दानवों का वध करने के उपरांत अंतर्ध्यान हो गयी जिस से मा काली की पूजा की जाती है।

माना जाता है कि यह मंदिर शंकराचार्य ने बनाया था। तथा यहाँ कालीदास का भी जन्म यही हुआ था। इसी स्थान पर कालिदास ने मां काली को प्रसन्ना करके विद्वान की प्राप्त की थी। उनके आशीर्वाद से उन्होंने अनेक ग्रंथ लिखे थे।

जिनमें संस्कृत में लिखा हुआ महाकाव्य ग्रंथ विश्व में प्रसिद्ध है।काली शिला में दशहरे के दिन खून निकलता है। शंभू, निशूम्भ को मार कर मां काली का खून शांत नहीं हुआ। फिर भगवान शंकर मां काली के पैरों के नीचे लेट गई। जैसे ही महाकाली ने शिव के सीने में पैर रखा। वैसे ही मां काली का क्रोध शांत हो गया। मां काली उस कुंड में अन्तर ध्यान होगी। मां काली इस कुण्ड में समा गयी। कालीमठ में शिव समाधि भी है। यहां पर हम प्रत्येक वर्ष लाखों श्रद्धालुओ लोग आते हैं।

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