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जहाँ सुमति तहँ संपति नाना पर निबंध | Jahan sumati tahan sampati nana

संकेत-बिन्दु – (1) प्रस्तावना: सुमति का भावार्थ, (2) सद् विचारों का जीवन में महत्त्व, (3) महापुरुषों के आदर्शों से प्रेरणा, (4) व्यक्तित्व का विकास

प्रस्तावना: सुमति का भावार्थ-

मानव के जीवन में सद्बुद्धि या सुमति का महत्त्व किसी से छिपा नहीं है— सद्बुद्धि के होने से जीवन सुवासित एवं उद्देश्यपरक हो उठता है। जब मानव की बुद्धि विकास के सोपानों का संस्पर्श करती है तथा जीवन की उदात्तता से सराबोर हो जाती है।

तो यह बुद्धि आदर्शमूलक होने के साथ ही अधिकतम लोगों के सुख की ओर उन्मुख हो जाती है। ऐसी अवस्था को ही सद्बुद्धि या सुमति कहा गया है। जीवन के अन्य तमाम ध्येयों की अभिप्राप्ति इसी के द्वारा सुगम हो पाती है, इसीलिए महाकवि तुलसीदास ने कहा है- ‘जहाँ सुमति तहँ संपति नाना’ अर्थात् सुमति की प्राप्ति के बाद हम अनेक प्रकार की सम्पत्तियों के वारिस या उत्तराधिकारी बन सकते हैं।

सद्विचारों का जीवन में महत्त्व-

सद्बुद्धि और सद्विचारों का मानव-जीवन में महत्त्वपूर्ण स्थान है। प्रेरणादायी विचारों के सहारे ही हम आगे बढ़ते हैं। अच्छे विचारों को यदि कार्यरूप में परिणत कर दिया जाए तो जीवन की कायापलट हो जाती है। सद्विचारों के प्रकट होने पर जीवन में आशावाद का संचार होता है।

और तब पंगु व्यक्ति भी हिमालय के उत्तुंग शिखरों का स्पर्श करने के लिए उमंग से भर उठता है। वह एक सद्विचार का ही वास्तविक परिणाम था, जब एक व्यक्ति सद्विचार से आप्लावित हो महर्षि वाल्मीकि के रूप में परिवर्तित हो गया, जिसने आगे चलकर विश्व के प्रथम महाकाव्य ‘रामायणम्’ की रचना की।

महापुरुषों के आदर्शों से प्रेरणा-

सुमति की प्राप्ति के लिए यह परम सार्थक कार्य है कि हम महापुरुषों के आदर्शों को जानें-समझें और उनके कृत्कार्यों से प्रेरणा लें, शिवाजी को बचपन में उनकी माँ तथा बाद में समर्थगुरु रामदास ने महापुरुषों की कहानियाँ सुनाकर इतना धीर-वीर और ओजस्वी बना दिया था कि वे छत्रपति बन सके और मुगल साम्राज्य को ललकार सके।

आधुनिककाल में सुभाषचन्द्र बोस भी इसी तथ्य को उजागर करते हैं, जिन्होंने महापुरुषों के आदर्शों को अपनाकर स्वयं भी महापुरुष होने का गौरव पाया। अत: महापुरुषों के क्रियाकलाप हमारे लिए आदर्श हैं, वरण करने योग्य हैं और प्रेरणा के अजस्र स्रोत हैं।

व्यक्तित्व का विकास-

‘जहाँ सुमति तहँ संपति नाना’ जैसी लोकोक्ति हमारे जीवन का आधार है, तमाम सुख-सम्पत्ति की बौछार सुमति के द्वारा ही होती है। हमारे व्यक्तित्व के विकास में सुमति या सद्बुद्धि का सर्वोच्च स्थान है। बुद्धिहीन व्यक्ति किसी कार्य को सम्पूर्णता से कदापि नहीं कर सकता है। इसी प्रकार दुर्बुद्धि भी विषाद का निमित्त होती है। केवल सद्बुद्धि के सहारे ही हम व्यक्तित्व को नई ऊँचाई प्रदान कर सकते हैं और तब सत्यं शिवं सुन्दरम् के आलोक से सम्पूर्ण विश्व प्रदीप्त हो उठता है।

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