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हमारी सांस्कृतिक एकता | कक्षा-10 साहित्यिक गद्यांश (450 से 700) शब्द

हमारी सांस्कृतिक एकता-

हमारे देश ने आलोक व अन्धकार के अनेक युग पार किए हैं, परन्तु अपने सांस्कृतिक उत्तराधिकार के प्रति वह एकान्त सावधान रहा है। उसमें अनेक विचारधाराएँ समाहित हो गईं, अनेक मान्यताओं ने स्थान पाया, पर उसका व्यक्तित्व सार्वभौम होकर भी उसी का रहा।

उसके अन्तर्गत आलोक ने उसकी वाणी के हर स्वर को उसी प्रकार उद्भासित कर दिया, जैसे आलोक हर तरंग पर प्रतिबिम्बित होकर उसे आलोक की रेखा बना देता है। एक ही उत्स से जल पानेवाली नदियों के समान भारतीय भाषाओं के बाह्य और आन्तरिक रूपों में उत्सगत विशेषताओं का सीमित हो जाना ही स्वाभाविक था।

कूप अपने अस्तित्व में भिन्न हो सकते हैं, परन्तु धरती के तल का जल तो एक ही रहेगा। इसी से हमारे चिन्तन और भावजगत में ऐसा कुछ नहीं है, जिसमें सब प्रदेशों के हृदय और बुद्धि का योगदान और समान अधिकार नहीं है।

आज हम एक स्वतन्त्र राष्ट्र की स्थिति पा चुके हैं, राष्ट्र की अनिवार्य विशेषताओं में दो हमारे पास हैं— भौगोलिक अखण्डता और सांस्कृतिक एकता, परन्तु अब तक हम उस वाणी को प्राप्त नहीं कर सके हैं जिसमें एक स्वतन्त्र राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के निकट अपना परिचय देता है।

जहाँ तक बहुभाषा-भाषी होने का प्रश्न है, ऐसे देशों की संख्या कम नहीं है, जिनके भिन्न भागों में भिन्न भाषाओं की स्थिति है। पर उनकी अविच्छिन्न स्वतन्त्रता की परम्परा ने उन्हें सम-विषम स्वरों से एक राग रच लेने की क्षमता दे दी है।

हमारे देश की कथा कुछ दूसरी है। हमारी परतन्त्रता आँधी-तूफान के समान नहीं आई, जिसका आकस्मिक सम्पर्क तीव्र अनुभूति से अस्तित्व को कम्पित कर देता है। वह तो रोग के कीटाणु लानेवाले मन्द समीर के समान साँस में समाकर शरीर में व्याप्त हो गई है।

प्रश्न: (क) हमारा देश प्रमुख रूप से किसके प्रति सावधान रहा है?

प्रश्न: (ख) राष्ट्र की कौन-सी दो अनिवार्य विशेषताएँ हमारे पास हैं?

प्रश्न: (ग) अब तक हम भारतवासी किसे प्राप्त नहीं कर पाए हैं?

प्रश्न: (घ) हमारे देश की परतन्त्रता किस प्रकार आई थी?

प्रश्न: (ङ) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।

उत्तर: (क) हमारा देश अपने सांस्कृतिक उत्तराधिकार के प्रति प्रमुख रूप से सावधान रहा है।

उत्तर: (ख) भौगोलिक अखण्डता और सांस्कृतिक एकता, राष्ट्र की ये दो अनिवार्य विशेषताएँ हमारे पास हैं।

उत्तर: (ग) अब तक हम भारतवासी उस वाणी को प्राप्त नहीं कर पाए हैं, जिसमें एक स्वतन्त्र राष्ट्र दूसरे राष्ट्रों के निकट अपना परिचय देता है।

उत्तर: (घ) हमारे देश की परतन्त्रता रोग के कीटाणु लानेवाले मन्द समीर के समान आकर साँसों के माध्यम से हमारे शरीर में व्याप्त हो गई।

उत्तर: (ङ) ‘हमारी सांस्कृतिक एकता’, ‘स्वतन्त्र राष्ट्र की अनिवार्य विशेषताएँ’

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