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गुरुयुग्मक जनन तथा भ्रूणकोष का विकास | निषेचन

नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में हम आपको गुरुयुग्मक जनन तथा भ्रूणकोष का विकास तथा निषेचन के बारे में सम्पूर्ण जानकारी देंगे तो चलिए शुरू करते हैं।

कार्यरत गुरुबीजाणु (functional megaspore) में सूत्री विभाजन के फलस्वरूप पहले दो, फिर दो से चार तथा चार से आठ केन्द्रक बनते हैं। इनके चारों ओर थोड़ा-थोड़ा कोशिकाद्रव्य इकट्ठा हो जाता है। भ्रूणकोष के आठ केन्द्रकों में से चार एक सिरे पर तथा चार दूसरे सिरे पर रहते हैं।

भ्रूणकोष धीरे-धीरे आकार में बढ़ता है। दोनों सिरों से एक-एक केन्द्रक ध्रुवीय केन्द्रक (polar nuclei) आते हैं। इनके बीच में आकर जुड़ने के कारण द्वितीयक केन्द्रक (secondary nucleus) बनता है।

बीजाण्डद्वार (micropyle) की ओर तीन केन्द्रकों के समूह को अण्ड उपकरण (egg apparatus) तथा निभाग (chalaza) की तरफ के तीन केन्द्रकों के समूह को प्रतिव्यासांत कोशिकाएँ (antipodals) कहते हैं।

अण्ड उपकरण (egg-apparatus) के बीच की कोशिका अण्ड कोशिका (egg cell) कहलाती है तथा दो अन्य कोशिकाओं को सहायककोशिका (synergids) कहते हैं। सहायक कोशिकाएँ निषेचन में सहायता करती हैं।

भ्रूणकोष
भ्रूणकोष

इस प्रकार से विकसित भ्रूणकोष को पोलीगोनम (Polygonum) टाइप भ्रूणकोष कहते हैं। भ्रूणकोष को ही मादा युग्मकोद्भिद् (female gametophyte) भी कहा जाता है।

प्रो० पी० महेश्वरी (जो कि भारत में भ्रूण-विज्ञान के पिता भी समझे जाते हैं) के अनुसार भ्रूणकोष मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं—

  1. मोनोस्पोरिक (Monosporic)- जब भ्रूणकोष का निर्माण चार में से एक (अण्डद्वारी या निभागी) गुरुबीजाणु (megaspore) द्वारा होता है; जैसे पोलीगोनम टाइप (Polygonum type), तथा इनोथेरा टाइप (Oenothera type)।
  2. बाइस्पोरिक(Bisporic)– जब गुरूबीजाणु मातृ कोशिका (megaspore mother cell) में अर्थसूत्री विभाजन तो होता है परन्तु कोशिका चार की जगह दो ही बनती है अर्थात् दूसरे विभाजन के पश्चात् कोशिका भित्ति नहीं बनती है फलत: दोनो कोशिकाओं में दो, दो केन्द्रक बनते हैं। एक कोशिका (द्विकेन्द्रकीय) से भ्रूणकोष बनता है तथा दूसरी नष्ट हो जाती है; जैसे, प्याज (Onion)।
  3. टेट्रास्पोरिक (Tetrasporic)- अर्धसूत्री विभाजन के फलस्वरूप गुरुबीजाणु मातृ कोशिका में चार केन्द्रक बनते हैं। परन्तु कोशिकाभित्ति नहीं बनती है। फलत: चारों केन्द्रक भ्रूणकोष के निर्माण में भाग लेते हैं, जैसे पेपरोमिया टाइप (Peperomia Type) तथा एडोक्सा टाइप (Adora type)।

निषेचन (FERTILIZATION)

नर (male) व मादा (female) युग्मको (gametes) के संयुग्मन (fusion) की क्रिया को निषेचन (fertilization) कहते हैं। आवृतबीजी पौधों में अण्ड कोशिका बीजाण्ड के अन्दर भ्रूणकोण (embryosac) में उपस्थित होती है।

निषेचन (FERTILIZATION)
निषेचन (FERTILIZATION)

बीजाण्ड अण्डाशय के भीतर रहता है। परागकण (pollen grains) वर्तिकाग्र (stigma) द्वारा ग्रहण किए जाते हैं जो अण्डाशय से दूर स्थित होता है। परागणकण अथवा नर युग्मकोद्भिद् का अंकुरण वर्तिकाग्र के ऊपर होता है।

परागनलिका (pollen tube) वर्तिका से होती हुई भ्रूणकोष तक पहुँचती है जहाँ इसके फटने से नर युग्मक भ्रूणकोष में मुक्त होते हैं। दों में से एक नर युग्मक के अण्ड कोशिका के संलयन होने पर युग्मनज (zygote) बनता है। दूसरा नर युग्मक द्वितीयक केन्द्रक के साथ संलयन कर भ्रूणकोष (endosperm ) बनाता है।

परागकण वर्तिकाग्र पर उच्च आर्द्रता की स्थिति में अंकुरित होते हैं। वर्तिकाग्र के स्त्रवण (exudate) से ही जल, व आवश्यक पोषक तत्व परागनलिका के अंकुरण के लिए उपलब्ध होते हैं। उस वर्तिकाग्र को जिससे पोषक तत्वों का स्रवण होता है उसे व नम वर्तिकाग्र (wet stigma) कहते हैं।

जैसे—पिटूनिया (Petunia) में। उस वर्तिकाग्र को जिससे पोषक तत्वों का स्रवण नहीं होता है उसे शुष्क वर्तिकाग्र (dry stigma) कहते हैं। जैसे— कपास (cotton) स्रवित पदार्थ में लिपिड, फिनोल, शर्करा, पेप्टाइड, अमीनो अम्ल तथा प्रोटीन आदि मिलते हैं।

एक बार परागनलिका के विकास के पश्चात् केलोस (callose) प्लग का निर्माण हो जाता है जिससे कोशिका द्रव्य अथवा नर युग्मक का पीछे की ओर बहाव न हो। पराग नलिका वर्तिका से होकर आगे बढ़ती है। वर्तिका तीन प्रकार की होती है-

  1. ठोस प्रकार (Solid type)- वर्तिका के मध्य में दीर्घित ट्रांसमिटिंग ऊतक मिलता है। परागनलिका इस प्रकार की वर्तिका में विकर की सहायता से मार्ग बनाती है। जैसे— द्विबीजपत्री पौधे में।
  2. खोखली वर्तिका (Hollow style)- वर्तिका के मध्य में खोखली नलिका मिलती है जो वर्तिकाग्र से लेकर अण्डाशय के आधार तक होती है। यह नलिका शुष्क जैसे— क्रोकस (Crocus) अथवा स्रवण द्रव से भरी होती है; जैसे— एमरिलिस (Amaryllis) में आदि।
  3. अर्धठोस वर्तिका (Semisolid type)- इस प्रकार की वर्तिका में ट्रांसमिटिंग ऊतक वर्तिका की मध्य नलिका के ओर ही मिलती है जैसे—केक्टेसी कुल के सदस्यों तथा आर्टाबोट्रिस (Artabotrys) आदि में।

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