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गंगोत्री धाम कहां स्थित है?

गंगोत्री धाम भारत देश के उत्तराखंड राज्य के उत्तरकाशी जिले लंका चटटी से 13 किलो०मीटर दूरी पर यह गंगोत्री मंदिर स्थित है। तथा यह समुद्र तल से 3042 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यहां प्रत्येक वर्ष कपाट खुलने और बंद होने का एक निश्चित समय होता है। तथा कपाट खुलने का समय मई में तथा बंद होने का समय अक्टूबर में हाेता है। जैसे जैसे यहाँ बर्फ गिरने स्टार्ट होती है वैसे ही 6 महीने के लिए कपाट बन्द हो जाते हैं। माना जाता है कि गंगोत्री यात्रा के बिना सारी यात्रा अधूरी मानी जाती है। चार धाम यात्रा में सबसे महत्वपूर्ण यात्रा गंगोत्री धाम के मानी जाती है। गंगोत्री धाम की शुरुआत 18 वी शताब्दी से चली आ रही है।

गंगोत्री धाम में प्रत्येक वर्ष 7 लाख से अधिक श्रद्धालु दर्शन करने के लिए देश-विदेश से आते रहते हैं माना जाता है कि गंगोत्री धाम के दर्शन और स्नान करने से सात जन्म के पाप धुल जाते हैं। यह हिमालय की तलहटी पर बसा ऐक पतित पावन मन्दिर स्थित है। मन्दिर पीछे भाग चारों ओर बर्फ से ढका पर्वत शिखर स्थित है।

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गंगोत्री धाम कहां स्थित है?
गंगोत्री धाम कहां स्थित है?

गंगोत्री धाम का पौराणिक इतिहास

गंगोत्री धाम पौराणिक परंपराओं के अनुसार यहां भगीरथ राजा ने घोर तपस्या करके मां आकाश गगा को प्रसन्न किया था फिर मां आकाश गंगा ने उनको बाेला कि आप क्या मांगना चाहते हो फिर भगीरथ ने बोला मां आकाश गंगा पृथ्वी पर आपकी आवश्यकता है। जो कपिल मुनि के श्राप से शान दशरथ के 60 लाख पुत्र मृत्यु को प्राप्त हुए हुए थे। मां आकाश गंगा आपको मानव कल्याण हेतु पृथ्वी पर आना पड़ेगा। इससे पृथ्वी पर जी रहे करोड़ों जिओ का भला हाेगा। फिर मां गंगा ने बोला कि यह काम असंभव है फिर भगीरथ ने पूछा मां यह काम कैसे संभव है। फिर माँ ने उत्तर दिया पहले आपको शिव प्रसन्न करना होगा।

फिर भगीरथ ने शिव को प्रसन्न करने के लिए ध्यान मुद्रा में बैठ गए। देखते देखते वर्षों बीत गई है फिर शिवजी प्रसन्न में वत्स आखें खाेलाे आप क्या मागना मांगना चाहते हो फिर भगीरथ उत्तर दीया की मैं गंगा मैया को पृथ्वी पर लाना चाहता हूं। फिर से शिव जी उत्तर दिया ठीक वत्स आपकी इच्छा जरूर पूरी होगी। शिव जी ने सिर की जटा धीरे धीरे खोली तो वह गंगा मैया धीरे धीरे गोमुख से पृथ्वी की ओर बड़ी पहले भगीरथ ने दशरथ 60 लाख पुत्रों जीवन मिला। फिर वहां से गंगा मैया रामेश्वर धाम की शिव पर अग्रेषित करने से गले की पीड़ा जो समुद्र मंथन में विश पीने से हुई थी। मुझसे पानी ठंडक प्राप्त होती है।

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