Hubstd.in

Big Study Platform

  • Home
  • /
  • हिन्दी
  • /
  • गांधीगिरी और गांधित्व | कक्षा-10 साहित्यिक गद्यांश (450 से 700 शब्द)
No ratings yet.

गांधीगिरी और गांधित्व | कक्षा-10 साहित्यिक गद्यांश (450 से 700 शब्द)

गांधीगिरी और गांधित्व-

कहने को चाहे भारत में स्वशासन हो और भारतीयकरण का नारा हो, किन्तु वास्तविकता में सब ओर आस्थाहीनता बढ़ती जा रही है। मन्दिरों, मस्जिदों, गुरुद्वारों या चर्च में बढ़ती भीड़ और प्रचार माध्यमों द्वारा मेलों और पर्वों के व्यापक कवरेज से आस्था के सन्दर्भ में कोई भ्रम मत पालिए; क्योंकि यह सब उसी प्रकार भ्रामक है जैसे ‘लगे रहो मुन्ना भाई’ की गांधीगीरी

वास्तविक जीवन में जिस आचरण की अपेक्षा व्यक्ति या समूह से की जाती है उसकी झलक तक पाना मुश्किल हो गया है। यही कारण है कि गांधीगीरी की काल्पनिक अवधारणा से महत्त्व पाने के लिए कुछ लोगों की नौटंकी की वाहवाही प्रचार माध्यमों ने जमकर की, लेकिन अब गांधी जयंती बीतने के बाद न तो कोई गुलाब का फूल भेंट करता दिखाई देता है।

और न ही कोई छूटवाले काउण्टरों से गांधी टोपी ही खरीदता नजर आता है। गांधी को ‘गीरी’ के रूप में आँकने के सिनेमाई कथानक का कोई स्थायी प्रभाव हो भी नहीं सकता। फिल्म उतरी और प्रभाव चला गया। गांधी को बाह्य आवरण से समझने के कारण वर्षों से हम दो अक्टूबर और तीस जनवरी के कुछ आडम्बर अवश्य करते चले आ रहे हैं, लेकिन जिन जीवन-मूल्यों के प्रति आस्थावान् होने की हम सौगंध खाते हैं।

और उन्हें आचरण में उतारने का संकल्प व्यक्त करते हैं , उसका लेशमात्र प्रभाव भी हमारे आस-पास के जीवन में प्रतीत नहीं होता। जिसे हमने स्वतन्त्रता के लिए संग्राम की संज्ञा दी थी, उस सम्पूर्ण प्रयास को गांधीजी ने स्वराज्य के लिए अभियान की संज्ञा प्रदान की थी।

“स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष” और “स्वराज्य के लिए अभियान” का अन्तर अतीत का संज्ञान रखनेवाले ही समझ सकते हैं। विदेशियों की सत्ता में रहने के बावजूद हम स्वतन्त्र थे; क्योंकि हमारी आस्था ‘स्व’ निरन्तर प्रगाढ़ होती जा रही थी। ‘स्व’ में आस्था की प्रगाढ़ता के लिए निरन्तर प्रयास होते रहे।

इसीलिए गांधीजी का अभियान स्वराज्य का था स्वतन्त्रता का नहीं। उनके स्वराज्य की भी एक निश्चित अवधारणा थी। सर्वसाधारण को वह अवधारणा समझ में आ सके, इसलिए उन्होंने कहा था कि हमारा स्वराज्य रामराज्य होगा।

जिस सादे जीवन और उच्च विचार को आधार बनाकर वे भारत को आध्यात्मिक गुरु के रूप में विश्व के समक्ष खड़ा करना चाहते थे, उस भारत की ‘स्व-शासन’ व्यवस्था ने भौतिक भूख की आग को इतना अधिक प्रज्वलित कर दिया है कि अब हमने येन-केन-प्रकारेण सफलता हासिल करने के लिए जीवन के सभी क्षेत्रों में अपने स्थापित मूल्यों को तिलांजलि दे दी है।

प्रश्न: (क) 2 अक्टूबर और 30 जनवरी किसलिए विशेष हैं?

प्रश्न: (ख) स्वराज्य और स्वतन्त्रता में क्या अन्तर है?

प्रश्न: (ग) गांधीजी कैसा स्वराज्य चाहते थे?

प्रश्न: (घ) स्वशासन व्यवस्था ने कौन-सी विसंगति दी है?

प्रश्न: (ग) गांधीजी कैसा स्वराज्य चाहते थे?

उत्तर: (क) 2 अक्टूबर को गांधीजी का जन्म हुआ था और 30 जनवरी को वे नाथूराम गोडसे की गोली का शिकार होकर शहीद हो गए थे। इसलिए 2 अक्टूबर को गांधी जयन्ती और 30 जनवरी को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है। गांधीजी के जन्म और मृत्यु के कारण ये दोनों दिवस विशेष हैं।

उत्तर: (ख) स्वराज्य में स्व की आस्था की प्रगाढ़ता की भावना होती है। इसमें सभी को अपने बराबर लाने की भावना निहित है, न कोई छोटा, न बड़ा; न कोई राजा, न प्रजा, बल्कि न्याय की तराजू में सब एक बराबर। जबकि स्वतन्त्रता में स्व के तन्त्र अर्थात् आधिपत्य की भावना होती है। इसमें शासक और शासित की भावना काम करती है।

उत्तर: (ग) गांधीजी रामराज्य जैसा स्वराज्य चाहते थे, जिसमें किसी प्रकार का कोई भेद-भाव न हो। सब सुखी और समृद्ध हों।गांधीजी रामराज्य जैसा स्वराज्य चाहते थे, जिसमें किसी प्रकार का कोई भेद-भाव न हो। सब सुखी और समृद्ध हों।

उत्तर: (घ) स्वशासन व्यवस्था ने भौतिक भूख की आग को अत्यधिक प्रज्वलित किया और जीवन के सभी क्षेत्रों में अपने स्थापित मूल्यों को तिलांजलि दे दी।

उत्तर: (ङ) शीर्षक – ‘स्वशासन की वास्तविकता’, ‘गांधीगीरी और गांधित्व ‘ अथवा ‘आज का स्वशासन’।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

downlaod app