धार्मिक शिक्षा का महत्व-
धार्मिक शिक्षा के सन्दर्भ में धर्म को सीमित अर्थ में नहीं लिया जाना चाहिए। इसका अर्थ मानव-धर्म या विश्वधर्म है जो ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का भाव अपने में निहित रखता है। इसका अभिप्राय उस धर्म से है जो ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः’ का सन्देश देता है। धर्म एक उच्च मानवीय अनुशासन है जो व्यक्ति को संस्कारवान् बनाता है।
अतः शिक्षा के स्वरूप को परिष्कृत करने के लिए हम जिस नैतिक शिक्षा की बात करते हैं उसे धर्ममूलक सांस्कृतिक परिवेश से जोड़कर प्रभावी बनाया जा सकता है। इससे अपने समृद्ध सांस्कृतिक अतीत से वर्तमान को जोड़कर छात्रों को आगे बढ़ते हुए जीवन की उच्चतर उपलब्धियों का बोध कराना सम्भव होगा। धर्म , जगत् के अस्तित्व का आधार है। धर्म, व्यक्ति को सही मार्ग पर लाने में एकमात्र सहायक है।
‘धर्मो हि जगदाधारः‘। इसलिए सामाजिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचरण व अवमूल्यन से बचने के लिए शिक्षा में धार्मिक मूल्यों के समन्वयन की आवश्यकता है। धार्मिक संबोध के बिना व्यक्ति की शिक्षा पूर्ण नहीं हो सकती। सीमित स्वार्थ के वशीभूत होकर व्यक्ति अत्यन्त जघन्य कर्म करने से नहीं चूकता। इस प्रकार के शत्-शत् उदाहरण आज हमें सामाजिक एवं राष्ट्रीय जीवन में देखने और सुनने को मिलते हैं।
विभिन्न विषयों की शिक्षा विषय-ज्ञान बढ़ाती है किन्तु नैतिक मूल्यों की स्थापना धार्मिक संबोधों के माध्यम से ही कराई जा सकती है। अपने शैक्षिक विचारों के अन्तर्गत गांधीजी ने धार्मिक शिक्षा को अन्य विषयों के बराबर महत्त्व दिया है।
उनके विचार से भारत जैसे देश में जहाँ पर संसार के अधिकतम धर्मों के अनुयायी मिलते हैं, धार्मिक शिक्षा का प्रबन्ध कठिन होगा, लेकिन हिन्दुस्तान को आध्यात्मिकता का दिवाला नहीं निकालना हो तो उसे धार्मिक शिक्षा को भी विषयों के शिक्षण के बराबर महत्त्व देना पड़ेगा। वस्तुतः धर्म को जाने बिना विद्यार्थी जीवन का निर्दोष आनन्द नहीं ले सकते। तकनीकी शिक्षा प्राप्त कर सफलता का शिखर चूमनेवाले छात्र भी बहुधा सामाजिक व राष्ट्रीय सरोकारों के निर्वहन में पीछे रह जाते हैं।
प्रश्न: (क) वास्तविक धर्म क्या है?
(ख) धर्म किस प्रकार जगत के अस्तित का आधार स्पष्ट कीजिए।
(ग) अन्य विषयों की शिक्षा और धार्मिक शिक्षा में मुख्य अन्तर क्या है?
(घ) धार्मिक शिक्षा के सन्दर्भ में गांधीजी के क्या विचार थे?
(ङ) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
उत्तर: (क) ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना स्वयं में रखनेवाला और ‘सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः’ का सन्देश देनेवाला वह उच्च मानवीय अनुशासन वास्तविक धर्म है, जो व्यक्ति को संस्कारवान् बनाता है।
उत्तर:(ख) सदाचारी व्यक्ति ही जगत् के अस्तित्व का आधार है और धर्म व्यक्ति को सही मार्ग पर लाने में एकमात्र सहायक है; इसीलिए कहा गया है— ‘धर्मो हि जगदाधार:’।
उत्तर: (ग) अन्य विषयों की शिक्षा विषय-ज्ञान बढ़ाती है, जबकि धार्मिक शिक्षा नैतिक मूल्यों की स्थापना पर बल देती है, अन्य विषयों की शिक्षा और धार्मिक शिक्षा में यही मुख्य अन्तर है।
उत्तर: (घ) धार्मिक शिक्षा के सन्दर्भ में गांधीजी के विचार यह थे कि धार्मिक शिक्षा को भी विषयों के शिक्षण के बराबर महत्त्व देना चाहिए, क्योंकि धर्म को जाने बिना विद्यार्थी जीवन का निर्दोष आनन्द नहीं ले सकते।
उत्तर: (ङ) ‘धर्म और शिक्षा ‘या’ धार्मिक शिक्षा का महत्त्व’ उपर्युक्त गद्यांश के उपयुक्त शीर्षक हो सकते हैं।
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