क्षेत्रवाद क्या है? | क्षेत्रवाद का उद्देश्य?
स्वतंत्रता के बाद से क्षेत्रीयवाद भारतीय राजनीति में सबसे शक्तिशाली शक्ति रहा है। भारत में क्षेत्रवाद पनपा है यदि कोई विशेष समूह या समुदाय अनुपचारित महसूस करता है या सरकार अल्पसंख्यकों पर कम चिंतित है। सरकार अगले चुनाव के लिए इस समुदाय की किसी भी चीज को खुश करने के लिए कुछ भी करेगी।
क्षेत्रवाद क्या है? | Chetra vad kya hai
क्षेत्रवाद एक राजनीतिक विचारधारा है जो एक या अधिक उपराष्ट्रीय क्षेत्रों के लोगों की राजनीतिक शक्ति, प्रभाव और/या आत्मनिर्णय को बढ़ाने का प्रयास करती है। क्षेत्रों को प्रशासनिक प्रभागों, संस्कृति, भाषा और धर्म, आदि द्वारा चित्रित किया जा सकता है। भारत कई भूमि, क्षेत्रों, संस्कृतियों और परंपराओं की भूमि बना रहा। उत्तर भारत, दक्षिण भारत, पूर्वी भारत पश्चिम भारत, मध्य भारत, सभी संस्कृति और परंपराओं में भिन्न हैं, इसलिए राजनीतिक दल हमेशा क्षेत्रीयवादी रहे हैं और सरकार बनाई गई है गठबंधन।

क्षेत्रवाद का उद्देश्य क्या है? | Chetra vad ke uddeshya
क्षेत्रवाद और उसकी विचारधारा में विश्वास रखने वालों का संबंध किसी विशेष क्षेत्र के निवासियों की राजनीतिक शक्ति और प्रभाव को बढ़ाने से है। उनकी मांगों में संप्रभुता, अलगाववाद, अलगाव और स्वतंत्रता शामिल हैं, लेकिन इन्हीं तक सीमित नहीं हैं। क्षेत्रवादी एक मजबूत केंद्र सरकार के साथ एकात्मक राष्ट्र-राज्य के बजाय घाटे वाले राज्यों के संघ के पक्ष में हैं। उस समय वे संघवाद के वैकल्पिक रूपों को स्वीकार करते हैं।
भारत में क्षेत्रवाद | Bharat me Chetra
जबकि एक अखिल भारतीय पहचान की एक सहज भावना है, विभिन्न विदेशी समाजशास्त्रियों / विद्वानों ने जाति, जनजाति, भाषा और समुदाय के निर्धारण पर ध्यान दिया है। काउंटर पॉइंट्स में शामिल है कि क्षेत्रवाद ने भारत में बहुदलीय राजनीति को जन्म दिया है, संघवाद को गहरा किया है। क्षेत्रवाद जरूरी ‘राष्ट्र-विरोधी’ या ‘जन-विरोधी’ नहीं है, लेकिन विचार करने के लिए कार्यात्मक और निष्क्रिय दोनों पहलू हैं।
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क्षेत्रवाद लोकतंत्र के मार्ग में को निम्न प्रकार से बाधित करता है–
- क्षेत्रवाद के आधार पर राज्य केंद्र सरकार से सौदेबाजी करते हैं। यहां सौदेबाजी बाजी ना केवल आर्थिक विकास के लिए होती है, वरन अनेक बार विभिन्न समस्याओं के समाधान के लिए भी होती है। यदि समस्या का समाधान नहीं होता है तो केंद्र तथा राज्य में विवाद की स्थिति उत्पन्न हो जाती है।
- राजनीतिक दल भी अपनी स्थिति को मजबूत बनाने के लिए क्षेत्रवाद का सहारा लेता है जो लोकतंत्र के लिए हानिकारक है।
- मंत्रिमंडल के सदस्य भी क्षेत्रवाद की भावना से प्रेरित होकर अपने-अपने निर्वाचन क्षेत्र के विकास पर अधिक बल देते हैं।
- क्षेत्रवाद कुछ सीमा तक भारतीय राजनीति मैं हिंसक गतिविधियों को भी प्रोत्साहित करने के लिए उत्तरदाई है। यहां लोकतंत्र के उज्जवल भविष्य के लिए घातक है।
- क्षेत्रवाद के कारण ही क्षेत्रीय दलों की संख्या में अप्रत्याशित रूप से वृद्धि हुई है। क्षेत्रीय दलों ने राष्ट्रवादी भावनाओं के स्थान पर संकीर्ण भावनाओं को उत्तेजित किया है। जो लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
- क्षेत्रवाद के कारण बड़े राज्यों का विभाजन करके छोटे-छोटे राज्यों का निर्माण किया जा रहा है। यह राष्ट्र की एकता तथा अखंडता के लिए अच्छा नहीं है।
हम भारत में फूट डालो और राज करो औपनिवेशिक नीतियों का पता लगा सकते हैं जिन्होंने भारत में बीज बोया था। पिछले 100 वर्षों में, निम्नलिखित व्यापक श्रेणियों में निम्नलिखित मांगों के साथ भारत में कई क्षेत्रीय आंदोलन हुए हैं:
क्षेत्रवाद को समाप्त करने संबंधी सुझाव | Chetra ko samapt karne ke upay
- सरकार को विकास कार्यक्रमों का निर्माण और उनका क्रियान्वयन कुछ इस प्रकार से करना चाहिए कि संतुलित क्षेत्रीय विकास को बढ़ावा मिल सके। यह बात निर्वावाद धूप से सत्य है कि भारत में अब तक चलाए गए अधिकांश चेत्रीय आंदोलनों के मूल में असंतुलित आर्थिक विकास ही चल रहा है।
- विशिष्ट जातीय समुदाय की अपनी विशिष्ट संस्कृति और पहचान को सुरक्षित रखने के लिए सरकार द्वारा विशेष प्रयास किए जाने चाहिए। इस आशय के प्रावधान मौलिक अधिकारों के अनु 29-30 मैं भी किए गए हैं। इन्हें पूर्ण ईमानदारी के साथ लागू किया जाना चाहिए। इससे जनजातीय समूह के सांस्कृतिक एकाकीपन को रोका जा सकेगा।
- जहां तक संभव हो पिछड़े हुए क्षेत्रों के आर्थिक विकास पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए, जिससे उन्हें राष्ट्र की मुख्य विकास धारा से जोड़ा जा सके।संघ सरकार को पिछड़े हुए क्षेत्रों के विकास पर विशेष ध्यान देने के लिए राज्य सरकारों को विशेष निर्देश देना चाहिए।
- क्षेत्रवादी आंदोलनों की हिंसात्मक प्रवृत्ति पर कठोरता से अंकुश लगाया जाना चाहिए। सरकार को यह दृढ़ता पूर्वक स्पष्ट कर देना चाहिए कि किसी भी प्रकार की क्षेत्रीय आकांक्षाओं की पूर्ति संविधान के दायरे में शांतिपूर्ण ढंग से ही संभव है।
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