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चिपको आंदोलन से क्या आशय है?

विश्व मैं प्रसिद्ध ‘चिपको आन्दोलन‘ (Chipko Movement) गढ़वाल की महिलाओं द्वारा चलाया गया था। इस आन्दोलन के प्रणेता सुन्दरलाल बहुगुणा हैं। इनके द्वारा प्रारम्भ किया गया ‘चिपको आन्दोलन’ जंगल बचाने का एक पर्यायवाची शब्द बन चुका है।

वन्य संपदा (वन्य पौधे एवं वन्य प्राणी) के संरक्षण हेतु सामने आने वाले चार मुख्य दावेदार (Stakeholder) निम्नलिखित है-

  1. वन के समीपवर्ती एवं वन क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय व्यक्ति।
  2. सरकार द्वारा स्थापित वन विभाग एवं संबंधित अधिकारीगण।
  3. वन्य जीवन एवं प्रकृति प्रेमी व्यक्तियों द्वारा संचालित सामाजिक सेवा संस्थान।
  4. उद्योगपति।

इन चारों दावेदारों में सबसे सशक्त दावेदारी वन क्षेत्र एवं समीपवर्ती क्षेत्र के स्थानीय व्यक्तियों की प्रकट होती है क्योंकि इसके फलस्वरूप वनों की प्रबंध दक्षता में वृद्धि होती है। यह बात चिपको आंदोलन से स्पष्ट होती है। वृक्षों को अनावश्यक रूप से काटने से रोकने के लिए प्रथम आंदोलन सन 1730 में राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजइली नामक गांव में हुआ।

चिपको आंदोलन से क्या आशय है
चिपको आंदोलन से क्या आशय है

जलाने के लिए लकड़ी उपलब्ध कराने के लिए इस गांव के वृक्षों को काटने के आदेश महाराणा अभय सिंह द्वारा दिए गए थे। इसके विरोध में चिपको आंदोलन का नेतृत्व अमृता देवी वह उनकी पुत्रियों ने किया था। इसमें अमृता देवी, उनकी पुत्रियों सहित 363 अनुयायियों को पेड़ों से चिपके हुए मार डाला गया था।

दिसंबर 1972 में टिहरी गढ़वाल के रेणी गांव में चिपको आन्दोलन का पुनः उदय हुआ। वृक्षों को बचाने का यह अभियान धीरे-धीरे पूरे उत्तराखंड में फैल गया। चिपको आंदोलन की धारणा के अनुसार वनों से ईंधन, चारा, खाद, फल तथा रेशे प्राप्त होते हैं।

चिपको आंदोलन से यह भी स्पष्ट होता है कि स्थानीय व्यक्ति वनों की सुरक्षा हेतु अपने प्राणों का बलिदान भी दे सकते हैं। स्थानीय व्यक्ति ईंधन उपयोग के लिए वृक्षों की शाखाओं को भी काटते हैं, जबकि उद्योगपति पूरे वृक्ष को ही काट देता है।

स्थानीय निवासियों को वनों की देखभाल का दायित्व दिया जाए तो उन्हें रोजगार मिलता है। इसी के साथ अगर स्थानीय निवासियों को 20 से 25% वनोंउत्पाद कम लागत पर उपलब्ध करा दिया जाए तो इनकी सक्रिय सहभागिता के कारण वन क्षेत्रों को समृद्ध किया जा सकता है।

वनों के संरक्षण की आवश्यकता-

वनों का सिर्फ आर्थिक महत्व ही नहीं है, वन प्राकृतिक संतुलन बनाए रखने हेतु नियामक और सुरक्षात्मक कार्य भी करते हैं।

  1. वनों का आर्थिक महत्व – वन हमें आर्थिक महत्व के अनेक उत्पाद जैसे फल, मसाले, औषधियां आदि प्रदान करते हैं।
  2. वनों की नियामक कार्य- वन वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड वह ऑक्सीजन का संतुलन बनाए रखते हैं।
  3. वन उर्वरा मृदा का निर्माण करते हैं तथा वर्षा में लाने में सहायक होते हैं।

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