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छाया मत छूना पाठ के प्रश्न उत्तर (कक्षा-10 हिन्दी)

प्रश्न 1. कवि ने ‘छाया मत छूना’ कविता में कठिन यथार्थ के पूजन की बात क्यों कही है?

उत्तर: कवि के अनुसार व्यक्ति को यथार्थ या वर्तमान का जीवन व्यतीत करना चाहिए। यथार्थ का जीवन अत्यन्त कठिन होता है, इसमें विगत की स्मृतियों के लिए स्थान नहीं होता। जीवन की प्रत्येक बात में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है, इसलिए कवि ने भ्रमरूपी विगत को छोड़ कठिन यथार्थ के पूजन की बात कही है।

प्रश्न 2. ‘छाया मत छूना’ कविता में व्यक्त दुःख के कारणों को स्पष्ट कीजिए।

उत्तर: कवि के अनुसार जीवन में सुख और दुःख दोनों ही हैं। जीवन में दुःख का कारण विगत को याद करना होता है। इससे दुःख दूना हो जाता है। कवि अतीत की स्मृतियों को भूलकर वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करने का सन्देश देता है।

प्रश्न 3. ‘छाया मत छूना’ कविता के माध्यम से कवि अपने पाठकों को क्या सन्देश देना चाहता है?

उत्तर: ‘छाया मत छूना’ कविता के माध्यम से कवि यह सन्देश देना चाहता है कि जीवन में सुख और दुःख दोनों की उपस्थिति है। विगत के सुख को याद कर वर्तमान के दुःख को अधिक गहरा करना तर्कसंगत नहीं है। कवि के शब्दों में इससे दुःख दूना होता है। विगत की सुखद काल्पनिकता से चिपके रहकर वर्तमान से दूर हट जाने की अपेक्षा,

कठिन यथार्थ से रू-ब-रू होना ही जीवन की प्राथमिकता होनी चाहिए। गिरिजाकुमार माथुर की ‘छाया मत छूना’ कविता अतीत की स्मृतियों को भूल वर्तमान का सामना कर भविष्य का वरण करने का सन्देश देती है। कविता यह बताती है कि जीवन के सत्य को छोड़कर उनकी छायाओं में भ्रमित रहना जीवन के कठोर सत्य से दूर रहना है। कविता में रोमानी भावबोध की अभिव्यक्ति स्पष्टतया देखी जा सकती है।

प्रश्न 4. निम्नलिखित पंक्तियों में निहित काव्यजेडसौन्दर्य (सौन्दर्य सराहना) स्पष्ट कीजिए।

जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी
छवियों की चित्र – गंध फैली मनभावनी।

उत्तर: भाव-सौन्दर्य – इन पंक्तियों में कवि ने बीती हुई सुखद स्मृतियों का अत्यन्त प्रभावपूर्ण चित्रण किया है। यादों को सुन्दर रंगोवाली बताकर कवि ने स्मृति के आकर्षक स्वरूप को दर्शाया है। चित्र की स्मृति के साथ-साथ उसके आस-पास उसकी गन्ध के फैले होने की बात कहकर कवि ने अनुपम भावलोक का सृजन किया।

इन पंक्तियों में विगत पलों को उनके सम्पूर्ण सौन्दर्य और भावात्मकता के साथ पूर्णतया सजीव कर दिया गया है। कवि ने यह भाव एकदम साकार कर दिया है कि जीवन में बहुत सी रंग-बिरंगी यादें हैं और उन सुन्दर चित्रों की स्मृति के साथ ही उसके आसपास उनकी मधुर गंध भी फैली हुई है।

शिल्प-सौन्दर्य – इन पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक भाषा का प्रयोग हुआ है। ‘सुधियाँ’ के लिए ‘सुरंग’ विशेषण के प्रयोग से कविता में विशेष सौन्दर्य आ गया है। ‘सुरंग सुधियाँ सुहावनी’ में अनुप्रास अलंकार की छठा है। पंक्तियों में नाद-सौन्दर्य का गुण दर्शनीय है। चित्र के साथ ही गंध के भी व्याप्त हो जाने का चित्रण कर कवि ने आकर्षक बिम्ब-योजना की है।

प्रश्न 5. ‘मृगतृष्णा’ किसे कहते हैं? कविता में इसका प्रयोग किस अर्थ में हुआ है?

उत्तर: मृगतृष्णा को मृगतृषा, मृगतृष्णिका भी कहते हैं; अर्थात् जल अथवा जल की लहरों की वह मिथ्या प्रतीति, जो प्राय: रेगिस्तान और कठोर सूखे मैदानों में कड़ी धूप पड़ने के समय होती है। इस मिथ्या प्रतीति के कारण हिरन यह सोचकर अपनी प्यास बुझाने के लिए वहाँ दौड़कर जाता है, जहाँ पर जल की लहरें दिखती हैं।

वह जब वहाँ पहुँचता है तो उसे निराशा ही हाथ लगती है और उसकी तृष्णा (प्यास) पूर्ववत् ही बनी रहती है। यहाँ मृगतृष्णा का प्रयोग व्यक्ति के बड़प्पन अथवा प्रभुत्व के सन्दर्भ में किया गया है।

कवि इसके माध्यम से स्पष्ट करना चाहता है कि व्यक्ति जैसे सुख-सुविधाओं अथवा प्रभुत्व-शक्तियों को प्राप्त करता जाता है, उन्हें और अधिक मात्रा में प्राप्त करने की लालसा (तृष्णा) बढ़ती ही जाती है। मृग की भाँति उसकी सन्तुष्टि की प्यास कभी शान्त नहीं होती, वह उसे शान्त करने के लिए यहाँ से वहाँ भटकता फिरता है।

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