Hubstd.in

Big Study Platform

(1★/1 Vote)

भ्रूण का विकास | उभयमिश्रण | अपयुग्मन | बहुभ्रूणता

विश्राम के पश्चात् द्विबीजपत्री (dicotyledons) तथा एकबीजपत्री (monocotyledons) पौधों में अलग-अलग प्रकार से भ्रूण का विकास होता है।

द्विबीजपत्री पौधों में भ्रूण का विकास (Development of Embryo in Dicotyledons)

सर्वप्रथम निषेचित अण्ड (fertilized egg) के चारों ओर एक भित्ति बन जाती है। इसके बाद इस युग्मनज (zygote) में पहला विभाजन अनुप्रस्थ (transverse) होता है। बीजाण्डद्वार (micropyle) की ओर वाली कोशिका को आधार कोशिका (basal cell) अथवा निलम्बक कोशिका (suspensor cell) कहते हैं तथा नीचे की कोशिका को अधराधार कोशिका (hypobasal cell) अथवा अन्तस्थ कोशिका (terminal cell) कहते हैं।

द्विबीजपत्री पौधों में भ्रूण का विकास
द्विबीजपत्री पौधों में भ्रूण का विकास

निलम्बक कोशिका (suspensor cell) में दो-चार तक अनुप्रस्थ विभाजन होने से एक निलम्बक कतार (suspensor line) बनती है। इसकी अग्रस्थ कोशिका फूलकर पुटिका कोशिका (haustorial cell) बनाती है तथा यह चूषक (haustoria) का कार्य भी करती है। इसकी सबसे निचली कोशिका हाइपोफाइसिस (hypophysis) EMBRYO. कहलाती है तथा विभाजित होकर मूलांकुर (radicle) का शीर्ष बनाती है।

निलम्बक का मुख्य कार्य बीजाण्डकाय (nucellus) से भोज्य पदार्थ लेकर भ्रूण को देना तथा भ्रूण को भ्रूणपोष में लटकाकर रखना होता है जिससे बढ़ते हुए भ्रूण को भ्रूणपोष के अन्दर ही पर्याप्त भोजन मिल सके ताकि वह ठीक तरह से विकसित हो सके। मूलांकुर (radicle) बनने के पश्चात् निलम्बक विघटित हो जाता है।

अन्तस्थ कोशिका (terminal cell) में पहला विभाजन उदग्र विभाजन (longitudinal division) होता है तथा दूसरा विभाजन अनुप्रस्थ होता है। अब चार भ्रूणीय कोशिकाएँ (embryonal cells) बन जाती हैं। ये चारों कोशिकाएँ फिर से एक उदग्र विभाजन से आठ कोशिकीय (octant stage) अवस्था बनाती हैं।

ऊपर की चार कोशिकाओं को जोकि हाइपोफाइसिस की ओर होती हैं, हाइपोबेसल (hypobasal) कोशिकाएँ कहते हैं तथा नीचे वाली कोशिकाओं को एपीबेसल (epibasal) कोशिकाएँ कहते हैं। हाइपोबेसल कोशिकाएँ अन्त में मूलांकुर (radicle) को तथा एपीबेसल कोशिकाएँ प्रांकुर (plumule) को जन्म देती हैं।

अष्टम अवस्था के पश्चात् परिनत विभाजन (periclinal division) के फलस्वरूप बाहर की तरफ एपीडरमल कोशिकाओं का एक स्तर (layer) बनता है जो एन्टीक्लाइनल विभाजन (anticlinal division) करके एक सम्पूर्ण बाह्यत्वचा बनाता है। भीतर की ओर भ्रूणीय कोशिकाएँ ( embryonal cells) विभाजित होकर सम्पूर्ण भ्रूण बनाती है।

इन एम्ब्रयोनल कोशिकाओं में दो तरफ वृद्धि तीव्र गति से होती है जिसके फलस्वरूप पहले हृदयाकार (cordate or heart shaped) भ्रूण बनता है। बाद में ये दोनों हिस्से तीव्रता से वृद्धि करके बीजपत्र बनाते हैं। ये दोनों बीजपत्र एक अक्ष (axis) से जुड़े रहते हैं।

इस अक्ष का वह भाग जो बीजपत्रों के बीच होता है, प्रांकुर (plumule) बनाता है तथा जो बाहर की ओर होता है वह मूलांकुर (radicle) बनाता है। परिपक्व एकबीजपत्री भ्रूण में मुख्यतः बीजपत्रों की संख्या में अन्तर होता है। प्ररोह शीर्ष (shoot apex) की स्थिति भी भिन्न होती है।

द्विबीजपत्री पौधों के भ्रूण में दो बीजपत्र होते हैं तथा एक अन्तस्थ (terminal) प्ररोहशीर्ष होता है। जबकि एकबीजपत्री पौधों में एक बीजपत्र होता है जो अन्तस्थ (terminal) होता है तथा प्ररोहशीर्ष पाश्र्का (lateral) में स्थित होता है।

भ्रूणीय कोशिकाएँ
भ्रूणीय कोशिकाएँ

उभयमिश्रण (Amphimixis)

जब लैंगिक जनन सामान्य रूप से हुआ हो, अर्थात् दो युग्मकों में निषेचन (fertilization) के फलस्वरूप संयुग्मन (syngamy) हो तथा इस प्रकार से बने भ्रूण के विकास से बीजाणुउद्भिद् बने तो इस क्रिया को उभयमिश्रण (amphimixis) कहते हैं।

एक सामान्य लैंगिक चक्र में एक बार अर्धसूत्री विभाजन (meiosis) तथा एक बार संलयन (fusion) आवश्यक होता है। यदि इन दोनों में से कोई एक अवस्था किसी भी कारण से सफल न हो सके तो उभयमिश्रण नहीं हो सकता है।

असंगजनन (Apomixis)

जब पौधों में संयुग्मन (syngamy) तो होता है परन्तु अर्धसूत्री विभाजन (meiosis) नहीं होता है और एक नया पौधा बन जाता है। यह दो प्रकार से हो सकता है—

  1. कायिक वर्धन (Vegetative propagation) – इसमें कली, तना व पत्ती अथवा जड़ से नया पौधा बनता है अर्थात् किसी प्रकार के बीज की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें नवोद्भिद् के सभी गुण मातृ पौधे के ही समान होते हैं, जैसे- गन्ना, आलू, सकर, रनर इत्यादि।
  2. अनिषेकबीजता (Agamospermy)- जब लैगिक जनन की अनुपस्थिति में बीज का निर्माण होता है अर्थात् बीज के बनने में विभाजन व संयुग्मन दोनों ही क्रियाएँ नहीं होतीं हैं।
    • अपस्थानिक भ्रूणता (Adventive embryony ) – जब भ्रूण बीजाण्ड की किसी भी द्विगुणित कोशिका; (जैसे बीजाण्डकाय, अध्यावरण इत्यादि) में वृद्धि व विभाजन से बनता है तब इसे अपस्थानिक भ्रूणता (adventive embryony) कहते हैं। यह नींबू, आम आदि में मिलती है।
    • द्विगुणित बीजाणुता (Diplospory ) – जब अर्धसूत्री विभाजन के बिना ही गुरुबीजाणु मातृ कोशिका (megaspore mother cell) से भ्रूणकोष (embryo sac) बनता है, इस प्रकार से बने भ्रूणकोष की सभी कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं। इसके अण्ड का विकास बिना नर युग्मक से संयुग्मन के भ्रूण में हो जाता है। इसे द्विगुणित अनिषेकजनन ( diploid parthenogenesis) भी कहते हैं। जैसे टेरेक्सकम, यूपेटोरियम आदि।
    • अगुणित अनिषेकजनन (Haploid parthenogenesis) – इसमें अण्ड अगुणित (haploid) होता है अर्थात् अर्धसूत्री विभाजन (meiosis) तो होता है परन्तु निषेचन नहीं हो पाता है तथा अण्ड से सीधे भ्रूण बन जाता है इस क्रिया को अगुणित अनिषेकजनन (haploid parthenogenesis) कहते हैं। यहाँ भ्रूण अगुणित (haploid) एवं बन्ध्य (sterile) होते हैं; जैसे धतूरा
    • अपबीजाणुता (Apospory ) – इसमें बीजाण्डकाय (nucellus) की कोई कोशिका असामान्य व्यवहार करती है। और विभाजित होकर भ्रूणकोष (embryo sac) बना लेती है। इस भ्रूणकोष की सभी कोशिकाएँ द्विगुणित (diploid) होती हैं और इस भ्रूणकोष का अण्ड जब बिना नर युग्मक से संयुग्मन (syngamy) के भ्रूण बना लेता है तब इसे अपबीजाणुता (apospory) कहते हैं; जैसे पार्थीनियम, रूबस। इसका पता सर्वप्रथम रोजेनवर्ग ने 1907 में बताया।

अपयुग्मन (Apogamy)

अगुणित भ्रूणकोष में यदि अण्ड के अतिरिक्त किसी अन्य कोशिका; जैसे सिनरजिड़ या एन्टीपोडल से भ्रूण का विकास हो जाए तो उसे अपयुग्मन (apogamy) की क्रिया कहते हैं। इस विधि से बने पौधे बन्ध्य (sterile) होते हैं, क्योंकि ये अगुणित (haploid) होते हैं; जैसे लिलियम (Lilium), लिस्टरा ओवेटा (Listera ovata) इत्यादि।

बहुभ्रूणता (Polyembryony)

एक बीज में सामान्यतः एक ही भ्रूण मिलता है, परन्तु यदि भ्रूण की संख्या एक से अधिक हो तो उसे बहुभ्रूणता (polyembryony) कहते हैं। अनावृतबीजी (gymnosperms) में तो यह सामान्य लक्षण है, परन्तु आवृतबीजी (angiosperms) में बहुत कम पाया जाता है।

1719 में ए० वी० ल्यूवन हॉक (A. V. Leeuwenhock) ने सन्तरे में सर्वप्रथम इसकी खोज की थी। नींबू प्रजाति (Citrus fruits) के फलों मे यह अधिकतर मिलता है।

बहुभ्रूणता (Polyembryony)
बहुभ्रूणता (Polyembryony)

श्नार्फ (Schnarf) 1929 के अनुसार बहुभ्रूणता दो प्रकार से होती है—

  1. वास्तविक बहुभ्रूणता (True polyembryony ) – जब सभी भ्रूण एक ही भ्रूणकोष की विभिन्न कोशिकाओं से बनते हैं। इस स्थिति को वास्तविक बहुभ्रूणता (true polyembryony) कहते हैं।
  2. मिथ्या बहुभ्रूणता (False polyembryony) — सभी भ्रूण बीजाण्ड के अलग भ्रूणकोषों या स्थानों पर बनते हैं। इस स्थिति को मिथ्या बहुभ्रूणता (false polyembryony) कहते हैं। बहुभ्रूणता की बहुत-सी विधियाँ हैं; जैसे—
    • युग्मनज (Zygote) के या प्राकभ्रूण (proembryo) के दो या अधिक बार विभाजन से विदलन बहुभ्रूणता (cleavage polyembryony) होती है; जैसे क्रोटोलेरिया (Crotolaria), निम्फिया (Nymphaea) आदि।
    • सहायक कोशिकाओं (synergids) से भ्रूण का निर्माण होना; जैसे एरिस्टोलोकिया (Aristolochia) में।
    • प्रतिव्यासांत कोशिकाओं (antipodal cells) से भ्रूण का निर्माण होना; जैसे अल्मस अमेरिकाना (Ulmus americana) में।
    • बीजाण्डकाय (nucellus) अथवा अध्यावरण (integument) की किसी कोशिका से विभाजित होकर भ्रूण का बनना। इस प्रक्रिया को अपस्थानिक भ्रूणता (adventive embryony) भी कहते हैं; जैसे नींबू, आम इत्यादि । उपरोक्त सभी कारणों से बीज में भ्रूण की संख्या एक से अधिक होती है, जोकि बहुभ्रूणता (polyembryony) का कारण है।

बहुभ्रूणता के उपयोग (Applictions of Polyembryony)

  1. पादप प्रजनक तथा उद्यान विज्ञों के लिए यह बहुउपयोगी है।
  2. आम व नींबू प्रजाति के पौधों के लिए न्यूसेलस से प्राप्त भ्रूण का उपयोग बहुतायत से किया जा रहा है।
  3. इनसे प्राप्त नवोद्भिद् जनक पौधे के समान होते हैं। ये कायिक प्रजनन के समान ही उपयोगी हैं।
  4. बीजाण्डकाय (nucellus) से प्राप्त नवोद्भिद् निम्न रूप से उपयोगी हैं :
    • इनसे प्राप्त मूल तन्त्र विकसित होता है।
    • ये सामान्यतः रोग मुक्त होते हैं। इनसे विषाणु मुक्त क्लोन प्राप्त किए जा रहे हैं।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

downlaod app