आर्तव चक्र | आर्तव चक्र में हार्मोन का नियन्त्रण | मद चक्र
नमस्कार दोस्तों कैसे हो आप सब उम्मीद करता हूँ कि आप सब स्वस्थ मस्त होंगे तो दोस्तों आज हम आपके लिए लेकर आये कि आर्तव चक्र क्या होता है, क्या इसकी प्रक्रिया है तो चलिए शुरू करते हैं।
आर्तव चक्र
स्त्रियों में जनन काल 12 वर्ष से लेकर 45-50 वर्ष की आयु तक होता है। जनन काल का प्रारम्भ ऋतु स्राव से होता है। इसके समाप्त होते ही जनन काल भी समाप्त हो जाता है। किशोरावस्था का अन्त ऋतु स्राव के साथ होता है। इस काल में प्रति माह अण्डाशय से एक अण्डे का अण्डोत्सर्ग होता है।
यह क्रिया दोनों अण्डाशयों से एकान्तर क्रम में होती है। निषेचित अण्ड के रोपण के लिए गर्भाशय की भित्ति में परिवर्तन होते हैं। निषेचन न हो पाने पर प्रति माह गर्भाशय की दीवार व अण्डाशय में चक्रीय परिवर्तन होते हैं। इस क्रिया को आर्तव चक्र (menstrual cycle) कहते हैं।
आर्तव चक्र की सामान्य अवधि 26-28 दिन होती है। 26-28 दिन के अन्तराल पर हर महीने होने वाले इस चक्र को मासिक धर्म, रजोधर्म अथवा आर्तव (menstruation) कहते हैं। अण्डोत्सर्ग के पश्चात् अण्डाणु अण्डवाहिनी में आता है जहाँ इसका निषेचन होता है। निषेचित अण्ड का रोपण गर्भाशय में होता है जिसके पश्चात् गर्भावस्था आरम्भ होती है।
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निषेचित अण्ड के विकास से शिशु बनता है परन्तु निषेचन न होने पर कार्यस लूटियम समाप्त हो जाता है और प्रोजेस्ट्रॉन व एस्ट्रोजन की कमी से गर्भाशय की आन्तरिक भित्ति खंडित हो जाती
है और रक्त स्राव आरम्भ हो जाता है। इसी रक्त के साथ अनिषेचित अण्ड भी बाहर आ जाता है। इस क्रिया को ऋतु स्राव कहते हैं। 4-5 दिनों तक रक्त स्राव होता है। नौ दिन में फिर से गर्भाशय की भित्ति (endometrium) बन जाती है तथा अगला आर्तव चक्र आरम्भ हो जाता है।
आर्तव चक्र की प्रावस्थाएँ (PHASES OF MENSTRUAL CYCLE)
आर्तव चक्र की 3 प्रावस्थाएँ हैं-
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कम प्रसारी अवस्था (Proliferative stage) – यह अवस्था मासिक धर्म के अन्तिम दिन से लेकर अण्डोत्सर्ग के मध्य की अवधि है। इसे अण्डोत्सर्गपूर्व (preovulatory) अथवा फॉलिकुलर प्रावस्था भी कहते हैं।
इस अवस्था में ग्रॉफियन फॉलिकल का परिपक्वन होता है, एन्डोमीट्रियम व रक्त वाहिनियों का पुनः निर्माण व मरम्मत होती है तथा एन्डोमीट्रियम व गर्भाशय की ग्रन्थियों में वृद्धि होती है। एन्डोमीडियम की मोटाई 3-4 mm होती है। (चित्र) इन सभी परिवर्तनों का नियमन एस्ट्रोजन के द्वारा होता है।
अग्र पिट्यूटरी द्वारा स्रावित FSH हार्मोन एस्ट्रोजन की मात्रा का नियंत्रित कर एन्डोमीट्रियम के प्रचुरोद्भव (proliferation) में वृद्धि करता है। गर्भाशय की मांसपेशियों में संकुचन होता है।
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एन्डोमीट्रियम की ग्रन्थियाँ लम्बी व कुंडलित हो जाती हैं तथा गर्भाशय की भित्ति की धमनिकाएँ (arterioles) भी वृद्धि करके कुंडलित हो जाते हैं। अण्डवाहिनियों की उपकला मोटी हो जाती है तथा इसके पक्ष्मों की गति तीव्र हो जाती है।
अण्डोत्सर्ग (Oyulation) – 14वें दिन ग्रॉफियन फॉलिकल के फटने से अण्डाणु देहगुहा में मुक्त हो जाता है। 28 दिन के आर्तव चक्र में यह 14वें दिन होता है। फॉलिकल का परिपक्वन एवं अण्डोत्सर्ग ल्यूटिनाइजिंग हार्मोन (LH) नियंत्रित करता है।

स्त्रावी अथवा पश्च अण्डोत्सर्ग अवस्था (Secretory or Post-ovulatory phase ) — इस प्रावस्था को पूर्व आर्तव प्रावस्था (premenstrual phase) भी कहते हैं। यह अण्डोत्सर्ग व मासिक धर्म के मध्य की अवस्था है। कार्पस लूटियम बनता जो सात दिन वृद्धि करने के बाद प्रोजेस्ट्रॉन का स्रवण करता है।
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प्रोजेस्ट्रॉन के स्राव का नियन्त्रण (LH) करता है तथा निषेचन न होने पर कार्पस लूटियम विघटित होकर कार्पस एल्बिकेन्स बनती है और प्रोजेस्ट्रॉन की मात्रा को कम करती है। निषेचन होने पर प्रोजेस्ट्रॉन का कार्य गर्भाशय को गर्भावस्था के लिए तैयार करना है। एन्डोमीट्रियम अधिक मोटी हो जाती है।
गर्भाशय की ग्रन्थियाँ लम्बी व मोटी होकर पेच (cork screw shape) हो जाती है। ये ग्रन्थियाँ विभाजन कर रहे अण्ड के पोषण के लिए रस स्राव करती है। भ्रूण रोपण के लिए गर्भाशय की गतियाँ मंद पड़ जाती हैं। इसके अतिरिक्त अन्य फॉलिकल का परिपक्वन भी रुक जाता हैं।
यह अवस्था ल्यूटियल प्रावस्था (luteal phase) है। इस समय प्रोजेस्ट्रॉन का उच्चतम स्तर होता है। अत: इसे प्रोजेस्ट्रॉन प्रावस्था भी कहते हैं। गर्भाशय की भित्ति से पोषक द्रवों के स्रवण के कारण इसे स्रावी अवस्था (secretory phase) भी कहते हैं। यह प्रावस्था 14 दिन की होती है। यह आर्तव चक्र के आरम्भ होने से 14वे अथवा 15वें दिन आरम्भ होती हैं।
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आर्तव प्रावस्था (Menstrual phase ) — निषेचन न होने पर स्त्रावी प्रावस्था (secretory phase) के समाप्त होने से दो दिन पूर्व एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रान का स्रावण अचानक न्यूनतम हो जाता है जिससे गर्भाशय की भित्ति के एंडोमीट्रियम में विघटन हो जाता है। विघटित ऊतक व रक्त मासिक धर्म (menstruation) के रूप में गर्भाशय से बाहर निकलते हैं।
ऋतु स्राव चक्र की प्रमुख घटनाएँ (Main Events of Menstrual Cycle)
- 1-5 दिन तक रक्त स्राव।
- 5-13 दिन तक फॉलिकल का परिपक्वन तथा नई एन्डोमीट्रियम का निर्माण।
- 14वें दिन अण्डोत्सर्ग।
- 15वें दिन कार्पस लूटियम का निर्माण व अण्डवाहिनी में अण्डाणु का निषेचन (luteal phase)।
- 20-25 वें दिन तक (निषेचन अण्ड का गर्भाशय में रोपण)।
- निषेचन न होने पर आर्तव चक्र का आरम्भन।
गर्भावस्था के लिए आवश्यक स्थितियाँ (Conditions Necessary for Pregnancy)
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- 14वें दिन के लगभग अण्डोत्सर्ग होता है और अण्डाणु 24-72 घंटे तक सक्रिय रहता है। यदि 48 घंटों के मध्य निषेचन न हो तो अण्डाणु की निषेचन क्षमता समाप्त हो जाती है।
- शुक्राणु 48-72 घंटे तक सक्रिय होते हैं, अतः स्खलन के 72 घंटे में निषेचन न होने पर ये नष्ट हो जाते हैं।
- अण्डवाहिनी में किसी प्रकार की सूजन न होनी चाहिए। सूजन के कारण अण्डाणु अण्डवाहिनी में प्रवेश नहीं कर सकते अतः गर्भाधारण नहीं हो पाता है।
- अण्डवाहिनी व गर्भाशय किसी भी प्रकार के संक्रमण से मुक्त होना चाहिए।
- वीर्य में शुक्राणु स्वस्थ होने चाहिए। सामान्यतः एक बार स्खलन में लगभग 40 करोड़ शुक्राणु होते हैं परन्तु यदि शुक्राणुओं की संख्या 2 करोड़ से कम हो जाये तो निषेचन सम्भव नहीं है। इस अवस्था को ओलिगोस्पर्मिया कहा जाता है।
आर्तव चक्र में हार्मोन का नियन्त्रण (HORMONAL CONTROL OF MENSTRUAL CYCLE)
- आर्तव अवस्था में एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रॉन का स्तर कम हो जाता है। यह एडिनोहाइपोफाइसिस (अग्र पिट्यूटरी) को FSH तथा LH के स्रवण करने के लिए प्रेरित करता है।
- छटे दिन FSH की बढ़ी मात्रा ग्राफियन फॉलिकल को वृद्धि के लिए प्रेरित करती है। यही हार्मोन फॉलिकल कोशिकाओं को एस्ट्रोजन तथा इन्हिबिन हार्मोन के स्रवण के लिए प्रेरित करती है। रक्त में एस्ट्रोजन की मात्रा क्रमिक रूप से बढ़ती है तथा आर्तव चक्र के 12वें दिन सर्वाधिक होती है। एस्ट्रोजन की अधिक मात्रा से FSH का स्राव कम होता है जिससे 12 घण्टों के अन्दर अर्थात् 13वें दिन रक्त में LH की मात्रा सर्वाधिक हो जाती है। FSH तथा LH संकर्मी का कार्य करते हैं।
- LH की मात्रा बढ़ने से ग्रॉफियन फालीकल से एस्ट्रोजन का स्राव बढ़ जाता है। अन्ततः ग्रॉफियन फॉलिकल के फटने से अण्डोत्सर्ग होता है तथा कार्पस लूटियम बनता है।
- 15-28वें दिन तक कार्पस लूटियम प्रोजेस्ट्रॉन का स्रवण करता है। LH में वृद्धि के पश्चात् रक्त में प्राजेस्ट्रॉन की मात्रा बढ़ती है जो लगभग एक सप्ताह तक रहकर आर्तव अवस्था से तीन दिन पहले इसकी मात्रा निम्नतम हो जाती है। इस समय एस्ट्रोजन की मात्रा भी न्यूनतम होती है।
- एस्ट्रोजन व प्रोजेस्ट्रॉन की न्यूनतम मात्रा अगले आर्तव चक्र के लिए FSH व LH के स्राव को प्रेरित करती है।
- निषेचन के पश्चात् आर्तव चक्र में होने वाले परिवर्तन निम्न हैं-
- कार्पस लूटियम गर्भावस्था की अवधि में प्रोजेस्ट्रॉन तथा एस्ट्रोजन का स्त्राव करता है। यदि प्रोजेस्ट्रॉन के स्तर में गर्भावस्था के प्रारम्भिक महीनों मे कमी हो जाए तो गर्भ गिर जाता है।
- निषेचित अण्ड में परिवर्धन आरम्भ होने के पश्चात् यह गर्भाशय में आकर रोपित हो जाता है। रोपित भ्रूण के प्लेसेन्टा से मानव कोरिओनिक गोनेडोट्रापिन (HCG) हार्मोन का स्राव होता है। जिसके कारण कार्पस लूटियम अधिक सक्रिय हो जाता है।

मद चक्र (ESTROUS CYCLE)
मानव व प्राइमेट्स के अतिरिक्त अन्य सभी स्तनियों में मादा जनन तन्त्र में चक्रीय परिवर्तन होते हैं जिसे मद चक्र (oestrous or estrous cycle) कहते हैं। मद चक्र के अन्त में ऊतक के विघटित होने पर भी रक्त स्राव नहीं होता है।
मद चक्र के मध्य में लगभग अण्डोत्सर्ग के समय रक्त में एस्ट्रोजन्स की अधिकता से मादा जन्तु में मैथुन के लिए अत्यधिक इच्छा होती है। इस अवस्था को कामोन्माद (estrous or sexual heat) कहते हैं।
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