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अपरा या प्लेसेन्टा (PLACENTA) | अपरा के प्रमुख कार्य

नमस्कार दोस्तों कैसे हो आप सब उम्मीद करता हूँ कि आप सब अच्छे होंगे तो दोस्तों आज में आपके लिए एक महत्वपूर्ण विषय पर बात करने आया हूँ, जिसका नाम है अपरा। क्या है अपरा तो चलिए शुरू करते हैं।

अपरा

अपरा या प्लेसेन्टा स्तनधारियों का एक प्रमुख लक्षण है जोकि भ्रूण के कोरियोन (foetal chorion) तथा मातृक गर्भाशयी (materal uterus) ऊतक की विलाई (villi) के परस्पर जुड़ जाने से बनता है।

प्लेसेन्टा बन जाने के कुछ समय उपरान्त भ्रूण तथा प्लेसेन्टा के बीच एक नाभि नाल (umbilical cord) बन जाती है जिसमें स्थित धमनियों व शिराओं द्वारा भ्रूण के पोषण, श्वसन व उत्सर्जन जैसे कार्य सम्पन्न होते हैं।

प्लेसेन्टा का वर्गीकरण (Classification of Placenta) –

बाह्य भ्रूण कलाओं के आधार पर (Based on Extra-embryonic membranes) – अपरा में पाई जाने वाली भ्रूण कलाओं के आधार पर प्लेसेन्टा तीन प्रकार होता है-

  • पीतक कोश प्लेसेन्टा (Yolk sac placenta ) — इस प्रकार का अपरा पीतक कोश व कोरियोन से बना होता है। उदाहरण- मेटाथीरिया (कंगारू)
  • अपरापोषिकीय प्लेसेन्टा (Allanto-chorionic placenta ) – अधिकांश यूथीरियन स्तनियों में ऐलेन्टायस व कोरियोन के मिलने से अपरा (placenta) का निर्माण होता है।
  • कोरियोनिक प्लेसेन्टा (Chorionic placenta ) – मनुष्य तथा कपियों में केवल जरायु (chorion) से ही प्लेसेन्टा बनता है।

रंसाकुरों के वितरण के आधार पर (Based on Distribution of villi) – अपरा की सतह पर रंसाकुरों (villi) के वितरण के अनुरूप प्लेसेन्टा निम्न प्रकार का होता है—

रंसाकुरों के वितरण
रंसाकुरों के वितरण
  1. अपाती या नॉन-डेसिडुएट प्लेसेन्टा (Non-desiduate Placenta )— अधिकांश स्तनधारियों में विलाई साधारण व अशाखित होती हैं जिससे भ्रूण व गर्भाशय की एन्डोमीट्रियम के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध नहीं होता है। इस प्रकार के अपरा में प्रसव (parturition) के समय गर्भाशयी ऊतक का कोई भाग क्षतिग्रस्त नहीं होता तथा रक्तस्राव भी नहीं होता। अपाती प्लेसेन्टा के तीन अवप्ररूप होते हैं—
    • विसरित अपरा (Diffused Placenta ) — इस प्रकार के प्लेसेन्टा में जरायु की पूरी सतह पर विलाई फैली रहती है। उदाहरण- सुअर, घोड़ा व लिमुर।
    • दलीय अपरा (Cotyledonary Placenta ) — इसमें विलाई छोटे-छोटे समूहों में (cotyledons) फैली होती है। उदाहरण- गाय, भेड़, बकरी आदि।
    • मध्यवर्ती अपरा (Intermediate Placenta ) — इस प्रकार के प्लेसेन्टा में विलाई कॉटिलिडन्स व विसरित दोनों ही प्रकार की होती है। उदाहरण- ऊँट व जिराफ।
  2. पाती या डेसिडुएट प्लेसेन्टा (Deciduate Placenta)— जब अपरा की विलाई जटिल, शाखित तथा गर्भाशय के ऊतक से घनिष्ठता से जुड़ी होती हैं तब प्रसव के समय मातृक ऊतक रुधिक सहित शिशु के साथ बाहर खिंच आता है। यह प्लेसेन्टा भी तीन प्रकार का होता है—
    • वलय अपरा (Zonary Placenta ) –— इस प्लेसेन्टा से विलाई एक मेखला या घेरे (girdle) के रूप में होती है। उदाहरण- कुत्ता, बिल्ली, सील व हाथी।
    • बिंबाम या डिस्कायडल अपरा (Discoidal Placenta) –विलाई ब्लास्टोडिसक की सतह पर एक डिस्क से रूप में पाई जाती है। उदाहरण- चमगादड़, कीटहारी, शशक व भालू।
    • मैटाडिस्कायडल अपरा (Metadiscoidal Placenta)— ऐसे अपरा में आरम्भ में विलाई पूरी सतह पर फैली रहती है किन्तु बाद में ये एक या दो डिस्क पर सीमित हो जाती है। मनुष्यों में यह एक बिंबाम (monodiscoidal) तथा कपियों व बन्दरों में द्विबिंबाम (bidiscoidal) होता है।
  3. औतिकी के आधार पर (Based on histology)- अपरा में भ्रूण और मातृक ऊतक की 6 अवरोधी (barrier) परतें पाई जाती हैं जिनमें 3 मातृक ऊतक की (रुधिर वाहिनियाँ, गर्भाशयी संयोजी ऊतक व गर्भाशय की एपिथीलियम) तथा ३ भ्रूणीय ऊतक की (भ्रूणीय रुधिर वाहिनियाँ, भ्रूणीय कोरियो-ऐलेन्टाइल मीसोडर्म तथा कोरियोनिक एपिथीलियम) होती है। इन परतों के आधार पर प्लेसेन्टा 5 प्रकार का होता है-
    • उपकला जरायु अपरा (Epithelio-Chorial Placenta) – इस प्लेसेन्टा में सभी छः ऊतक रोधिकायें पाई जाती है। उदाहरण- सुअर, लिमुर आदि।
    • जरायु-योजी अपरा (Syndesmo- Chorial Placenta ) – इसमें गर्भाशयी एपीथीलियम उपरदित हो जाती है अत: केवल पाँच स्तर ही शेष रहते हैं। उदाहरण- भेड़, बकरी व गाय।
    • अंत:स्वर जरायु अपरा (Endothelio-Chorial Placenta)— ऐसे प्लेसेन्टा में गर्भाशयी एपीथीलियम व संयोजी ऊतक विलुप्त हो जाते हैं। उदाहरण- कुत्ता, बिल्ली, श्रूज व मोल।
    • रुधिर-जरायु अपरा (Haemo-Chorial Placenta ) — ऐसे प्लेसेन्टा में मातृक ऊतक के तीनों ही स्तर विलुप्त हो जाते हैं इस प्रकार भ्रूण विलाई सोधे मातृक रुधिर के सम्पर्क में रहती हैं। उदाहरण- मनुष्य, काप (apes) व बन्दर।
    • रुधिरांत-स्तरी अपरा (Haemo- endothelial Placenta ) – रुधिरांत-स्तरी अपरा में जरायु एपीथीलियम व मीसीडर्म भी लुप्त हो जाती है तथा इस प्रकार भ्रूण केशिकायें सीधे मातृत्व रुधिर के सम्पर्क में आ जाती हैं। उदाहरण- चुहा, शशक व गिनी पिग।
औतिकी के प्रकार
औतिकी के प्रकार

अपरा के प्रमुख कार्य (MAIN FUNCTION OF PLACENTA)

  1. कार्यिक आदम्यूदान (Physiological exchange)- प्लेसेन्टा एक डबल वैस्कुलर स्पंज की भाँति भ्रूण एवं मातृक करि के बीच कार्यिक आदान प्रदान (physiological exchange) का कार्य करता है। विकसित हो रहे भ्रूण तथा मातृक परिचरण में यह आदान-प्रदान विसरण द्वारा होता है जिसके लिये प्लेसेन्टा परानिस्यंदक (Ultrafilter) की भूमिका भी निर्वाह करता है।
  2. पोषण (Nutrition)- अपरा मातृक रुधिर से पोषक तत्वों को भ्रूण में पहुंचाता है। इसके अतिरिक्त प्लेसेन्टा वसा, लाइकोजन और लौह जैसे पोषक पदार्थों का संचय भी करता है।
  3. श्वसन (Respiration)- प्लेसेन्टा गर्भ व मातृक रुधिर के बीच आक्सीजन व कार्बन डाइऑक्साइड का आदान-प्रदान करता है।
  4. उत्सर्जन (Excretion)- भ्रूण में बने मैटाबोलिक ऊत्सर्जी पदार्थों को भी अपरा द्वारा भ्रूण से माता के रुधिर में विसरित किया जाता है।
  5. प्रतिरक्षा (Immunity)- प्लेसेन्टा द्वारा माता के रुधिर में बनी एन्टीबॉडीज़ को भ्रूण के शरीर में पहुंचा कर उसे प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
  6. हॉर्मोन्स का स्त्रावण (Secretion of hormones) – गर्भकाल में प्लेसेन्टा एक महत्वपूर्ण अंतःस्रावी ऊतक का कार्य करता है। इससे उत्पन्न होने वाले प्रमुख हॉर्मोन्स प्लेसेन्टल लैक्टोजन (placental lactogen), कोरियोनिक गोनेडोट्रोपिन tellorionic gonadotropin), एस्ट्रेडियोल ( estradiol) तथा प्रोजेस्टेरॉन (progesterone) हैं।

प्रसव व दुग्धस्रवण (DELIVERY AND LACTATION)

मानव में सगर्भता की अविध लगभग 9.5 माह है इसे गर्भावधि (Gestation period) कहते हैं। सगर्भता के अन्त में गर्भाशय के तीव्र के कारण गर्भ बाहर आ जाता है। इस क्रिया को प्रसव (Parturition) कहते है। प्रसव जटिल तन्त्रि अन्तःस्रावी ((Neuro endocrine) क्रिया विधि से प्रेरित क्रिया है।

पूर्ण विकसित गर्भ व प्लेसेन्टा से उत्पन्न हल्के गर्भाशय संकुचन को प्रेरित करते है इसे गर्भ उत्थोपन प्रतिवर्त (fetal injection reflex) कहते हैं। यह मातृ पियूष ग्रन्थि से ऑक्सीटोसिन के निकलने की क्रिया को सक्रिय करती है।

प्रसव (Parturition)
प्रसव (Parturition)

ऑक्सीटोसिन के लिए गर्भाशय में निरन्तर संकुचन होते हैं। यह तीव्र से तीव्रतर होने पर शिशु माँ के गर्भाशय से जनन नाल द्वारा बाहर आ जाता है तथा प्रसव क्रिया सम्पन्न हो जाती है। शिशु जन्म के तुरन्त बाद प्लेसेन्टा भी गर्भाशय से बाहर आ जाता है।

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