अमरनाथ यात्रा यह कश्मीर राज्य के श्रीनगर जिले में स्थित है। यह भारत की सबसे बड़ी यात्रा है। यह मंदिर समुद्र तल से 13500 फीट की ऊंचाई पर स्थित है। यह जम्मू श्रीनगर से 140 से 336 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यह एक शिव का प्राचीन मंदिर है। तथा यहां पर लाखों की संख्या में प्रत्येक वर्ष दर्शन करने के लिए आते हैं। तथा यह भारत की सबसे लंबी यात्रा हैं।
यह एक हिंदू मन्दिर हैं। अमरनाथ यात्रा पर एक पुस्तक भी लिखी गयी है जिसका नाम है। वैली आँफ कश्मीर तथा इसके लेखक लारेंस है। सबसे पहले यहां पर ब्राह्मण समाज के तीर्थ पुरोहित इस यात्रा को प्रारंभ करते थे। तथा बिटकुट के मालिक इस रास्ता काे बनाता था।

शिव की गुफा
यहां पर एक शिव गुफा है। जो बर्फ से ढका हुआ है। तथा यह शिवलिंग 10 फुट ऊंचा बना रखा है। तथा यहां पर अपार पूर्णिमा से लेकर से रक्षाबंधन से लेकर सावन के महीने पूरे लाखों की संख्या में लोग दर्शन करने के लिए आते हैं तथा यहां पर गणेश पार्वती और भैरवनाथ जैसे अलग-अलग हिमखंड है।
अमरनाथ यात्रा का परारम्भ 17 वीं 18 वीं शताब्दी से हुआ था। तथा उस समय जाे गुजर समाज का एक गडरिया था जिसे बूटा समाज का मालिक भी कहा जाता था। जहाँ पर ऑक्सीजन बहुत कम मात्रा में मिलती हैं। वहां पर वह आदमी सबसे पहले बकरियां चराने के लिए ले गया था।
1869 में गर्मियों के समय इस गुफा की खोज उस आदमी के द्वारा किया गया था। 3 साल बाद यहां पर 1872 मे यहाँ तीर्थ यात्रियों का शुरू हो गई थी। स्वामी विवेकानंद द्वारा यहां पर 8 अगस्त 1898 में इनके द्वारा भी यात्रा की गई थी । राज्य काे मिला था यह सबसे पहले मंदिर तब से आज तक यह मंदिर जाना जाता है।
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अमरनाथ का इतिहास
माना जाता है कि अमरनाथ यह धाम शिव के लिए प्रसिद्ध है। तथा यहां पर शिव ने पार्वती को अमर कथा सुनाई थी। यहां पर सुखदेव ऋषि एक महान ऋषि अमर हुए थे। तथा मंदिर में दो कबूतरों का जाैड़ा दिखाई देता है। जिन्हें लोग शिव और पार्वती का रूप पक्षी भी बताते हैं।
तथा जिन लाेगाें काे यह पक्षी दिखाई देतें हैं। उन लोगों को माना जाता है कि भगवान शिव और पार्वती के दर्शन हो गए हैं। माना जाता है कि यहाँ पर मोक्ष की प्राप्ति के लिए लोग यहां पर आते हैं। मान्यता के अनुसार कश्मीर घाटी में सबसे पहले यहां पर एक पानी की झील बन गई थी। जिसमें सभी प्राणी लोग रक्षा के लिए एक कश्य ऋषि ने इस पानी को छोटे-छोटे अस्तर में बांट दिया। तभी वहीं से एक ऋषि गुजार थे जिनका नाम भृगु ऋषि था।
जो हिमालय पर्वत की ओर जा रहे थे। तभी वहां से बाबा बर्फानी अमरनाथ यात्रा की पवित्र गुफा दिखी। तब से यह देवस्थान बन गया। तथा सभी प्रकार के कष्ट की पीड़ा सहन करके भोले के जयकारों से हिमालय पर्वत की और बढ़ते हैं। तब से आज तक इस यात्रा का नाम अमरनाथ यात्रा भी कहा जाता हैं।
अमरनाथ यात्रा का रास्ता

जम्मू कश्मीर श्रीनगर से पहलगाम करीबन 92 किलोमीटर और बालटाल से करीबन 93 किलो०मीटर की दूरी पर स्थित हैं। यहां पर बस और टैक्सी के द्वारा भी पहुँचा जा सकता है। तथा यहाँ दिल्ली से अमरनाथ के बस सेवा भी उपलब्ध है यहां पर हवाई सेवा उपलब्ध है। जिससे आपका समय बच सकता है।
जहां बस से आपको तीन-चार दिन में यात्रा होनी थी। वह यात्रा 2 दिन में पूरी कर सकते हाे हवाई सेवा के जरिए। और एक ओफसन है आप रेलगाड़ी के जरिए भी जम्मू कश्मीर तक पहुंच सकते हो इसमें भी समय की बचत होगी। और बस से जल्दी पहुंच सकते हो आप।
अमरनाथ का प्राकृतिक सौंदर्य
जैसे-जैसे हम से जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर पहुंचे,फिर वहाँ से पैदल यात्रा करेंगे। वहां से फिर भोले के जयकारों के साथ हम आगे बड़े ,बीच बीच काफी लाेगाें से भी मुलाकात भी हुयीं थी लाेग हंसते हंसते नीचे आ रहे थे हम लाेग उपर की और जा रहे थे तथा जंगल के रास्ते से आगे बड़ते रहे।
वैसे वैसे लग रहा था कि हम स्वर्ग स्वर्ग के द्वार तक पहुँचने का रास्ता मिल गया। और आगे बढ़ते बढते हमें पर्वतों काे आनंद लेते हुए जगह जगह झरनाें, बर्फ के आनंद लेते हुए आगे बढ़ रहे। बीच-बीच माैज मजें मस्ती कर रहे थे।
चलते-चलते रास्ते का कुछ पता ही नहीं लगा और हम बाबा बफानी मन्दिर में पहुंच गए। जैसे ही बाबा बफानी मन्दिर पर पहुंचे तो वहाँ का नजारा देखकर हम बहुत खुश हुए। ऐसा लग रहा था कि हम स्वर्ग के द्वार पर पहुंच गए है। और पीछे का नजारा में हिमालय पर्वत पार बर्फ दिखाई दे रही थी। यहां से एक नदी निकलती है तथा यह नदी दक्षिण में कई राज्यों को पानी भी देती हैं।
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