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आवृतबीजी पादपों में लैंगिक जनन

नमस्कार दोस्तों आज के इस लेख में हम आवृतबीजी पादपों में लैंगिक जनन के बारे में आपको बताएँगे। तो चलिए शुरू करते हैं।

आवृतबीजी पौधे का जीवन इतिहास जानने के लिए आवश्यक है कि हम उसके हर पहलू से परिचित हों। सही अर्थ में भ्रूण विज्ञान (embryology) भ्रूण के बनने से लेकर उसके विकास की सभी अवस्थाओं के अध्ययन से सम्बन्धित है। इसके अन्तर्गत पुष्प के महत्वपूर्ण अंगों पुंकेसर (stamen), स्त्रीकेसर (carpel); पुंबीजाणुजनन (microsporogenesis), स्त्रीबीजाणुजनन (megasporogenesis), नर युग्मकोद्भिद् (male gametophyte), परागण (pollination), निषेचन (fertilization), भ्रूणपोष (endosperm) तथा भ्रूण (embryo) की संरचना तथा विकास आदि का अध्ययन करते हैं।

पुष्पी पौधों में भ्रूण बीज के अन्दर सुरक्षित रहता है। भ्रूण के भोजन की व्यवस्था उसके विकास काल में बीजपत्रों (cotyledons) अथवा भ्रूणपोष (endosperm) द्वारा की जाती है। आवृतबीजी पौधों (angiospermic plants) में बीज, बीज चोल (seed coat) से ढका होता है। ये बीज फल में सुरक्षित रहते हैं। बीजपत्रों की संख्या द्विबीजपत्री (dicotyledon) पौधों में दो, तथा एकबीजपत्री (monocotyledon) पौधों में एक होती है।

बीज एक अत्यन्त जटिल संरचना है। इसका विकास परागण (pollination) तथा निषेचन (fertilization) के बाद होता है। एक निषेचित अण्ड (fertilized egg) से भ्रूण (embryo) का विकास होता है। बीजाण्ड (ovule) से बीज तथा अण्डाशय (ovary) से फल का निर्माण होता है। यही भ्रूण विकास की अगली अवस्था में बीज रोपित किये जाने पर अंकुरण द्वारा नवोद्भिद् (seedling) बनता है जो विकसित होकर पौधा बनाता है। इन सभी क्रियाओं को अच्छी तरह जानने के लिए सर्वप्रथम पुष्प की विस्तृत संरचना की जानकारी आवश्यक है। पुष्प पौधे का प्रजनन अंग है

सामान्य आवृतबीजी पुष्प की संरचना (STRUCTURE OF GENERAL ANGIOSPERMIC FLOWER)

पुष्प को दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है–

  1. अतिरिक्त अंग (Accessory organs); जैसे बाह्यदल पुंज, दल पुंज।
  2. आवश्यक अंग (Necessary organs); जैसे पुमंग, जायांग।

पुष्प के विभिन्न अंग (Different Parts of Flower)

पुष्प के विभिन्न अंग (Different Parts of Flower)
पुष्प के विभिन्न अंग (Different Parts of Flower)
  1. पुष्पवृन्त (Pedicel): पुष्प जिस डंठल से तने या शाखा से जुड़ा होता है उसे पुष्पवृन्त कहते हैं।
  2. पुष्पासन (Receptacle or Thalamus): पुष्पवृन्त का अग्रस्थ भाग पुष्पासन है। इसके ऊपर पुष्प के अन्य भाग लगे होते हैं।
  3. बाह्यदल पुंज (Calyx): यह पुष्प का सबसे बाहरी चक्र है। इसकी इकाई को बाह्यदल (sepal) कहते हैं। यह कली (bud) में जननांगों की सुरक्षा करता है।
  4. दल-पुंज (Corolla): यह पुष्प का दूसरा चक्र है तथा बाह्यदल पुंज के भीतर की तरफ होता है। यह प्राय: रंगीन तथा सुन्दर होता है। इसका मुख्य कार्य परागण के लिए कीड़ों को आकर्षित करना है। इसकी इकाई को दल (petal) कहते हैं।
  5. परिदल पुंज (Perianth): जिन पुष्पों में बाह्यदल पुंज व दल पुंज में अन्तर अस्पष्ट होता है, वह परिदल पुंज कहलाता है। इसकी इकाई को परिदल (tepal) कहते हैं। परिदल पुंज रंगीन हो तो दलाभ (petaloid) अथवा रंगहीन हो तो सेपलोइड अथवा बाह्यदलाभ (sepaloid) कहलाता है।
  6. पुमंग (Androecium, Androsmale): पुंकेसरों (stamens or microsporophylls) के समूह को पुमंग कहते हैं। पुंकेसर पुष्प का नर जननांग है। प्रत्येक पुंकेसर के तीन भाग होते हैं— लम्बा पुतन्तु (filament), अग्रस्थ परागकोश (anther), तथा दोनों को जोड़ने वाली योजि (connective)। प्रत्येक परागकोश में एक (mono) या दो कोष्ठ (dithecous) होते हैं। इन कोष्ठों में परागधानियाँ (microsporangia) होती हैं। प्रत्येक कोष्ठ में दो परागधानियाँ होती हैं। इस प्रकार एक द्विकोष्ठी परागकोश (dithecous anther) में चार परागधानियाँ मिलती हैं।
  7. जायांग (Gynoecium, Gyne female): यह पुष्प का चौथा और अन्तिम चक्र है। यह पुष्प का सबसे सुरक्षित भीतरी भाग है। इसकी इकाई को स्त्रीकेसर (carpel or pistil) अथवा अण्डप कहते हैं। यह पुष्प का मादा जननांग है। प्रत्येक अण्डप (carpel or megasporophyll) तीन भागों से मिलकर बनता है। इसका निचला भाग अण्डाशय (ovary) है जिसमें बीजाण्ड (ovule or megasporangium) होता है। अण्डाशय से जुड़ी एक पतली नलीनुमा संरचना होती है जिसे वर्तिका (style) कहते हैं। इसके अन्त में वर्तिकाग्र (stigma) स्थित होता है। वर्तिकाग्र का कार्य परागकणों को ग्रहण करना है। इन परागकणों से जो पराग नली (pollen tube) निकलती है वह वर्तिका में होकर ही बीजाण्ड तक पहुँचती है।

एक आवृतबीजी पुष्प के उन अंगों के नाम बताइए जहाँ नर व मादा युग्मकोद्भिद् का विकास होता है

नर युग्मकोद्भिद का विकास परागकण में होता है जब वह परागकोश से मुक्त होता है। मादा युग्मकोद्भिद् का विकास बीजाण्ड के भीतर गुरुबीजाणु में होता है।

अनिषेक फलन किसे कहते हैं ?

बिना निषेचन द्वारा फल के विकास को अनिषेक फलन कहते हैं।

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