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आचरण का विकास | कक्षा-12 अपठित गद्यांश

मनुष्य का जीवन इतना विशाल है कि उसके आचरण को रूप देने के लिए नाना प्रकार के ऊँच-नीच और भले-बुरे विचार, अमीरी और गरीबी, उन्नति और अवनति इत्यादि सहायता पहुँचाते हैं। पवित्र अपवित्रता उतनी ही बलवती है, जितनी कि पवित्र पवित्रता। जो कुछ जगत् में हो रहा है वह केवल आचरण के विकास के अर्थ हो रहा है। आचरण का विकास जीवन का परमोद्देश्य है। आचरण के विकास के लिए नाना प्रकार की सामग्रियों का, जो संसार-सम्भूत शारीरिक, प्राकृतिक, मानसिक और अध्यात्मिक जीवन में वर्तमान हैं,

उन सबकी (सबका?) क्या एक पुरुष और क्या एक जाति के आचरण के विकास के साधनों के सम्बन्ध में विचार करना होगा। आचरण के विकास के लिए जितने कर्म हैं उन सबको आचरण के संगठनकर्त्ता धर्म के अंग मानना पड़ेगा। चाहे कोई कितना ही बड़ा महात्मा क्यों न हो, वह निश्चयपूर्वक यह नहीं कह सकता कि यों ही करो और किसी तरह नहीं। आचरण की सभ्यता की प्राप्ति के लिए वह सबको एक पथ नहीं बता सकता।

आचरणशील महात्मा स्वयं भी किसी अन्य की बनाई हुई सड़क से नहीं आया, उसने अपनी सड़क स्वयं ही बनाई थी। इसी से उसके बनाए हुए रास्ते पर चलकर हम भी अपने आचरण को आदर्श के ढाँचे में नहीं ढाल सकते। हमें अपना रास्ता अपने जीवन की कुदाली की एक-एक चोट से रात-दिन बनाना पड़ेगा और उसी पर चलना भी पड़ेगा। हर किसी को अपने देश-कालानुसार राम-प्राप्ति के लिए अपनी नैया आप ही बनानी पड़ेगी और आप ही चलानी भी पड़ेगी।

प्रश्न: (क) आचरण का विकास जीवन का परम उद्देश्य है।इस कथन की पुष्टि कीजिए।

प्रश्न: (ख) आचरण की सभ्यता की प्राप्ति के लिए हमें क्या करना चाहिए?

प्रश्न: (ग) क्या बड़ा महात्मा प्रत्येक व्यक्ति को आचरणशील होने के लिए एक ही रास्ता बता सकता है? यदि नहीं तो क्यों?

प्रश्न: (घ) ‘जीवन की कुदाली’ का आशय स्पष्ट कीजिए।

प्रश्न: (ङ) उपर्युक्त गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक लिखिए।

उत्तर: (क) व्यक्ति के जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य उन्नति करके 1 महान् बनना है और व्यक्ति उन्नति तभी कर सकता है, जब उसका आचरण सब प्रकार से पवित्र और शुद्ध हो। आचरणहीन व्यक्ति अपने जीवन में न उन्नति कर पाता है और न विकास; क्योंकि ऐसे व्यक्ति से सभी लोग घृणा करते हैं, जिस कारण वह स्वयं से ग्लानि करने लगता है। जिस व्यक्ति को स्वयं पर ग्लानि हो वह कुण्ठित होकर अपने विकास को अवरुद्ध कर लेता है। इसीलिए आचरण के विकास को जीवन का परम उद्देश्य कहा गया है।

उत्तर: (ख) आचरण की सभ्यता की प्राप्ति के लिए हमें अपने आदर्श-मार्ग का चयन भी स्वयं करना पड़ेगा और स्वयं ही अपना मार्ग प्रशस्त भी करना पड़ेगा। उस मार्ग की ऊबड़-खाबड़ कठिनाइयों को स्वयं के परिश्रम और प्रयत्नों की कुदाल से स्वयं ही समतल बनाकर उसे सुगम बनाना होगा। अर्थात् देश-काल और परिस्थितियों के अनुसार हमें अपनी नैया आप ही बनानी पड़ेगी और उसे खेना (चलाना) भी अपने आप ही पड़ेगा।

उत्तर: (ग) कोई बड़ा महात्मा प्रत्येक व्यक्ति को आचरणशील होने के लिए एक ही रास्ता नहीं बता सकता; क्योंकि देश-काल और परिस्थिति के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति के लिए आचरण के विकास का एक अलग मार्ग होता है।

उत्तर: (घ) ‘जीवन की कुदाली’ का आशय परिश्रम अथवा प्रयत्न से है। इस परिश्रम अथवा प्रयत्न की चोट से ही व्यक्ति अपने मार्ग की कठिनाईरूपी ऊबड़-खाबड़ता को समतल बनाकर अपने मार्ग को सुगम बनाता है।

उत्तर: (ङ) शीर्षक – ‘आचरण का विकास’

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